वनवासी योद्धा सिद्धू और कान्हू जिन्होंने 1855 में ही कर दिया था अंग्रेज़ों के खिलाफ झंडा बुलंद

वनवासी योद्धा सिद्धू और कान्हू जिन्होंने 1855 में ही कर दिया था अंग्रेज़ों के खिलाफ झंडा बुलंद

राशिद अयाज़ (रांची रिपोर्टर)

रांची : संथाल परगना को पहले जंगल तराई के नाम से जाना जाता था। संथाल आदिवासी लोग संथाल परगना क्षेत्र में 1790 ई0 से 1810 ई0 के बीच बसे। संथाल परगना को अंग्रेजो द्वारा दामिन ए कोह कहा जाता था और इसकी घोषणा 1824 को हुई।

और इसी संथाल परगाना में संथाल आदिवासी परिवार में दो विर भईयों का जन्म हुआ जिसे हम सिदो-कान्हू मुर्मू के नाम से जानते हैं जिसने अंग्रेजो के आधुनिक हथियारों को अपने तीर धनुष के आगे झुकने पर मजबूर कर दिया था।

परिचय :-
सिदो-कान्हू मुर्मू का जन्म भोगनाडीह नामक गाँव में एक संथाल आदिवासी परवार में हुआ था जो कि वर्तमान में झारखण्ड के साहेबगंज जिला के बरहेट प्रखंड में है। सिदो मुर्मू का जन्म 1815 ई0 में हुआ था एवं कान्हू मुर्मू का जन्म 1820 ई0 में हुआ था।

संथाल विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाने वाले इनके और दो भाई भी थे जिनका नाम चाँद मुर्मू और भैरव मुर्मू था। चाँद का जन्म 1825 ई0 में एवं भैरव का जन्म 1835 ई0 में हुआ था। इनके अलावा इनकि दो बहने भी थी जिनका नाम फुलो मुर्मू एवं झानो मुर्मू था। इन 6 भाई-बहनो का पिता का नाम चुन्नी माँझी था। Sidhu Kanhu

वनवासी योद्धा सिद्धू और कान्हू जिन्होंने 1855 में ही कर दिया था अंग्रेज़ों के खिलाफ झंडा बुलंद

जन्म स्थान :-
इन छः भाई बहनो का जन्म भोगनाडी गाँव मे हुआ था जो कि वर्तमान में झारखण्ड राज्य के संथाल परगाना परमण्ल के साहेबगंज जिला के बरहेट प्रखण्ड के भोगनाडीह में है।

संथाल विद्रोह ( Santhal Hul ) :-
सिदो-कान्हू ने 1855-56 मे ब्रिटिश सत्ता, साहुकारो, व्यपारियों व जमींदारो के अत्याचारों के खिलाफ एक विद्रोह कि शुरूवात कि जिसे संथाल विद्रोह या हूल आंदोलन के नाम से जाना जाता है। संथाल विद्रोह का नारा था करो या मरो अंग्रेजो हमारी माटी छोड़ो ।

सिदो ने अपनी दैवीय शक्ति का हवाला देते हुए सभी मांझीयों को साल की टहनी भेजकर संथाल हुल में शामिल होने के लिए आमंत्रन भेजा। 30 जून 1855 को भेगनाडीह में संथालो आदिवासी की एक सभा हुई जिसमें 400 गांवों के 50000 संथाल एकत्र हुए।

वनवासी योद्धा सिद्धू और कान्हू जिन्होंने 1855 में ही कर दिया था अंग्रेज़ों के खिलाफ झंडा बुलंद

जिसमें सिदो को राजा, कान्हू को मंत्री, चाँद को मंत्री एवं भैरव को सेनापति चुना गया। संथाल विद्रोह भोगनाडीह से शुरू हुआ जिसमें संथाल तीर-धनुष से लेस अपने दुश्मनो पर टुट पड़े।

जबकि अंग्रेजो मे इसका नेतृत्व जनरल लॉयर्ड ने किया जो आधुनिक हथियार और गोला बारूद से परिपूर्ण थे इस मुठभेड़ में महेश लाल एवं प्रताप नारायण नामक दरोगा कि हत्या कर दि गई इससे अंग्रेजो में भय का माहोल बन गया।

संथालो के भय से अंग्रेजो ने बचने के लिए पाकुड़ में मार्टिलो टावर का निर्माण कराया गया था जो आज भी झारखण्ड के पाकुड़ जिले में स्थित है। अंततः इस मुठभेड़ में संथालो कि हार हुई और सिदो-कान्हू को फांसी दे दी गई। Sidhu Kanhu

मृत्यु:-
इस भयंकर मुठभेड़ में संथालो हार हुई क्योंकि ये लोग तीर धनुष से लड़ रहे थे जबकि अंग्रेजो के पास आधुनिक हथियार था। सिदो को अगस्त 1855 में पकड़कर पंचकठिया नामक जगह पर बरगद के पेड़ पर फांसी दे दि गई वह पेड़ आज भी पंचकठिया में स्थित है जिसे शहिद स्थल कहा जाता है।

जबकि कान्हू को भोगनाडीह में फांसी दे दी गई पर आज भी वह संथालो के दिलो में आज भी जिन्दा है एवं याद किए जाते है। संथालो के इस हार पर भी अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से हिला कर रख दिया था।

कार्ल मार्क्स ने इस विद्रोह को ‘भारत का प्रथम जनक्रांति’ कहा था। आज भी 30 जून को भोगनाडीह में हूल दिवस पर सरकार द्वारा विकस मेला लगाया जाता है एवं विर शहिद सिदो-कान्हू को याद किया जाता है।