भारतीय संविधान के अनुसार 1936 में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की मांग पर खानदानी पेसे की बुनियाद पर आरक्षण दिया गया था जिसमें सभी धर्मो के दलित समाज के लोग शामिल थे आरक्षण तीन कैटेगरी में है।
340 ओबीसी के लिए
341 एसी के लिए 342
एसटी के लिए 1936 से लेकर 9 अगस्त 1950 तक देश का दलित मुस्लिम भी शामिल था लेकिन 10 अगस्त 1950 को अनुच्छेद 15 का कत्ल करके मज़हब के नाम पर पाबंदी लगा दिया गया।
यह पाबंदी लगने की वजह से मुस्लिम झल्ली पाली रेडी रिक्शा ठेला नींबू धनिया मिर्चा मुर्गी मुर्गा अंडा बाल काटना पर पहुंच गया सरकारी कुर्सी सरकारी कलम से दूर हो गया अत्याचार निवारण एक्ट से भी बाहर कर दिया गया जिस वजह से मैबलिनचिंग हो रही है?
दलित मुस्लिमों ने पसमांदा के नाम से कई संगठन बनाए जिनमें से कुछ ने 2004 में मुकदमा नंबर 180 बात 2004 देश की सर्वोच्च न्यायालय मानवीय सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल किया जो कुछ ही लोग आए दिन धरना देकर सरकार को ज्ञापन देते हैं और प्रेस कॉन्फ्रेंस करते रहते हैं क्योंकि यह पाबंदी गैर कानूनी तरीके से लगाई गई जिस वजह से देश का मुस्लिम पिछड़ों के पीछे जा चुका है।
2005 की सरकारी रिपोर्ट सच्चर कमेटी रंगनाथ मिश्रा आयोग ने सरकार को बताया देश का मुस्लिम पिछड़ों दलितों के पीछे जा चुका है अब कुछ संगठन यह लड़ाई कोर्ट से लेकर रोड तक लड़ रहे हैं जिसमें अभी तक खुलकर दलित मुस्लिमों का तन मन धन से किसी तरह का सहयोग नहीं मिला अब बहुत से संगठनों के दबाव देने पर सरकार ने के जी बाला कृष्ण आयोग बनाया जो इस समय बिहार में सर्वे कर रही है कि देश के पसमांदा मुस्लिमों की क्या हालत है।
पसमांदा मुस्लिम की मांग है जिस तरह 1956 में सिख मज़हब के लोगों को दोबारा शामिल किया गया 1990 में बौद्ध धर्म के लोगों को दोबारा शामिल किया गया ठीक उसी तरह दलित मुस्लिमों को भी शामिल किया जाए ।
जय हिंद जय पसमांदा