परिचय एवं प्रारंभिक जीवन- स्वतंत्रता सेनानी श्री नियमतुल्ला अंसारी का जन्म 28 सितंबर 1903 को गोरखपुर में हुआ था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन गुमनाम नायकों में से एक थे, जिन्होंने केवल अंग्रेजों के विरुद्ध ही नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त भेदभाव और अन्याय के विरुद्ध भी संघर्ष किया। वे कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख नेता थे और अपने जीवनकाल में कई सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी संघर्षों का नेतृत्व किया।
राजनीतिक और सामाजिक योगदान- नियमतुल्ला अंसारी का राजनीतिक जीवन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से गहरे रूप से जुड़ा रहा। उन्होंने गोरखपुर में न केवल स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित किया, बल्कि पसमांदा मुस्लिम समाज के अधिकारों के लिए भी सतत संघर्षरत रहे। वे गोरखपुर से नगरपालिका के सदस्य (मलाए) भी रहे और इस पद पर रहते हुए उन्होंने आम जनता की समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया।
रज़ील टैक्स के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष- उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना “रज़ील टैक्स” के खिलाफ उनका संघर्ष था। यह टैक्स विशेष रूप से पसमांदा मुस्लिम समाज के गरीब तबके से वसूला जाता था और इसे स्थानीय प्रशासन “घरद्वारी टैक्स” कहकर लगाता था। यह कर क़ाज़ी तस्ददुक हुसैन के प्रशासनिक आदेशों के तहत वसूला जाता था, जो समाज के कमजोर वर्गों पर एक अन्यायपूर्ण आर्थिक बोझ था। नियमतुल्ला अंसारी ने इस अन्यायपूर्ण टैक्स के खिलाफ न्यायालय में मुकदमा दायर किया और लगातार कानूनी लड़ाई लड़ी। अंततः 1929 में उन्होंने यह मुकदमा जीत लिया और इस टैक्स को समाप्त कर दिया गया। उनके इस ऐतिहासिक संघर्ष की रिपोर्ट “मोमिन गजट” के 1929 के अंक में प्रकाशित हुई थी, जिससे उनकी इस उपलब्धि का दस्तावेजी प्रमाण भी मिलता है।
पसमांदा समाज के लिए योगदान- नियमतुल्ला अंसारी ने केवल राजनीतिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी पसमांदा समाज की बेहतरी के लिए कार्य किया। वे शिक्षा, आर्थिक सुधार, और सामाजिक जागरूकता के पक्षधर थे। उन्होंने कई सार्वजनिक सभाओं में इस बात को उठाया कि जातिगत भेदभाव केवल हिंदू समाज की समस्या नहीं है, बल्कि मुस्लिम समाज में भी ऊँच-नीच की भावना मौजूद है, जिसे समाप्त करना आवश्यक है।
निष्कर्ष- श्री नियमतुल्ला अंसारी केवल एक स्वतंत्रता सेनानी नहीं, बल्कि पसमांदा समाज के एक सच्चे मसीहा थे। उनकी कानूनी जीत और सामाजिक कार्यों ने समाज में समानता और न्याय की नींव रखी। आज, जब हम पसमांदा मुस्लिम समाज के अधिकारों की बात करते हैं, तो हमें ऐसे महान नेताओं के योगदान को नहीं भूलना चाहिए। उनके संघर्ष से प्रेरणा लेकर हमें भी समाज में समानता और न्याय के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
स्रोत:
मोमिन गजट (1929) का शुमार
गोरखपुर के ऐतिहासिक दस्तावेज
स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक न्याय से जुड़े लेख