मोहसिन-ए-क़ौम: बतख मियाँ अंसारी – एक गुमनाम नायक

वह नायक, जिसे इतिहास ने भुला दिया

भारत की आज़ादी की लड़ाई कई गुमनाम नायकों के बलिदान की गाथा है, जिन्हें इतिहास में वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे हक़दार थे। उन्हीं में से एक नाम “बतख मियाँ अंसारी” का है। वे एक साधारण इंसान थे, लेकिन उनकी हिम्मत और कुर्बानी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खासतौर पर, महात्मा गांधी की जान बचाकर उन्होंने एक ऐसा कार्य किया, जिसे इतिहास में अमर रहना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें भुला दिया गया।

गांधी जी की जान बचाने वाले नायक- 25 जून 1869 को बिहार के मोतिहारी में मुहम्मद अली अंसारी और रुखसाना खातून के घर जन्मे बतख मियाँ अंसारी एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे। 19वीं और 20वीं सदी में अंग्रेज़ों का ज़ुल्म अपने चरम पर था, खासतौर पर जबरन नील की खेती किसानों पर थोपी जा रही थी। मोतिहारी इस दमन का प्रमुख केंद्र था, जहां अंग्रेज़ नीलहों (नील की खेती करवाने वाले अंग्रेज़ मालिकों) का राज था। बतख मियाँ अंसारी, अंग्रेज़ों के नील के खेतों के मैनेजर इर्विन के यहां खानसामा (रसोइया) के तौर पर काम करते थे। लेकिन वे सिर्फ एक खानसामा नहीं थे, बल्कि उनके भीतर न्याय और स्वतंत्रता की ललक थी।

1917 में जब महात्मा गांधी चंपारण के किसानों की दुर्दशा देखने के लिए मोतिहारी आए, तब अंग्रेज़ों को डर था कि उनका प्रभाव किसानों को जागरूक कर देगा और नील की खेती का विरोध तेज़ हो जाएगा। इसी डर के कारण अंग्रेज़ों ने गांधी जी को मारने की साज़िश रची और उनके भोजन में ज़हर मिलाने की योजना बनाई। बतख मियाँ अंसारी ने इस साज़िश को समय रहते भांप लिया और अपनी जान की परवाह किए बिना गांधी जी को सतर्क कर दिया। उन्होंने उनके खाने में ज़हर मिला होने की सूचना दी और इस तरह महात्मा गांधी की जान बचा ली। यह एक साधारण व्यक्ति का असाधारण बलिदान था, लेकिन अफ़सोस कि यह कहानी इतिहास के पन्नों में कहीं खो गई।

अंग्रेज़ों की यातनाएँ और बलिदान- महात्मा गांधी की जान बचाने के बाद अंग्रेज़ों ने बतख मियाँ अंसारी को सख्त यातनाएँ दीं।

1. गिरफ्तारी और यातनाएँ – अंग्रेज़ों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और क्रूरतापूर्वक कोड़े मारे।

2. ज़मीन की ज़ब्ती – उनकी खेती की ज़मीन ज़ब्त कर ली गई, जिससे उनका परिवार दर-दर भटकने को मजबूर हो गया।

3. परिवार पर अत्याचार – उनके परिवार को उजाड़ दिया गया, जिससे वे समाज में हाशिये पर चले गए।

4. जेल की सज़ा – कई वर्षों तक उन्हें जेल में रखा गया और उनकी कोई सुध नहीं ली गई।

इसके बावजूद उन्होंने अपने ईमान और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। नील की खेती के ज़बरदस्ती थोपे गए आदेशों के ख़िलाफ़ वे किसानों के साथ खड़े रहे और हर अन्याय का विरोध किया।-

क्यों भुला दिया गया बतख मियाँ अंसारी को?

भारत की आज़ादी के बाद जिनका ओहदा ऊँचा था, उन्हें इतिहास में जगह मिल गई, लेकिन जो वास्तव में जमीनी स्तर पर कुर्बानियाँ दे रहे थे, वे गुमनामी के अंधेरे में खो गए।

1. जातिगत वर्चस्व और अशराफवाद – बतख मियाँ अंसारी पसमांदा समाज से आते थे। इतिहास में कई बार देखा गया है कि पसमांदा मुस्लिम समाज के संघर्षों और योगदान को जानबूझकर हाशिये पर रखा गया।

2. राजनीतिक उपेक्षा – स्वतंत्रता संग्राम के कई नायकों को सिर्फ इसलिए भुला दिया गया, क्योंकि वे सत्ता से जुड़े नहीं थे।

3. इतिहास लेखन में भेदभाव – जिन लोगों ने आज़ादी के बाद सत्ता संभाली, उन्होंने अपने-अपने लोगों को महिमा मंडित किया, जबकि असली नायकों को हाशिये पर डाल दिया गया।

4. संगठन और सामुदायिक पहचान की कमी – पसमांदा समाज में अपने इतिहास को संरक्षित करने की कोशिशें सीमित रहीं, जिससे बतख मियाँ जैसे नायक भुला दिए गए।

बतख मियाँ अंसारी के योगदान को याद रखना क्यों ज़रूरी है?

1. इतिहास को पुनः लिखने की ज़रूरत – हमें अपने असली नायकों को पहचानना होगा और उनकी कहानियों को मुख्यधारा में लाना होगा।

2. पसमांदा समाज के लिए प्रेरणा – बतख मियाँ अंसारी जैसे नायक यह साबित करते हैं कि संघर्ष और बलिदान से ही समाज आगे बढ़ सकता है।

3. राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान – सरकार और सामाजिक संगठनों को चाहिए कि वे बतख मियाँ अंसारी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को उचित मान्यता दें और उनके नाम पर स्मारक स्थापित करें।

4. आने वाली पीढ़ियों के लिए सीख – उनकी बहादुरी और बलिदान की कहानी आने वाली पीढ़ियों को इंसाफ और इंसानियत के लिए खड़े होने की प्रेरणा देती रहेगी।

निष्कर्ष- बतख मियाँ अंसारी जैसे नायकों का योगदान भारत की आज़ादी की लड़ाई में अविस्मरणीय है। उनकी बहादुरी, ईमानदारी और निस्वार्थ सेवा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। आज जब हम आज़ादी के 75 से अधिक वर्षों के बाद अपने इतिहास को देखते हैं, तो हमें यह समझना होगा कि जब तक हम अपने असली नायकों को नहीं पहचानेंगे, तब तक हमारा इतिहास अधूरा रहेगा। बतख मियाँ अंसारी की बहादुरी और ईमानदारी की कहानी को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना ही उनका सच्चा सम्मान होगा।

मुहम्मद युनुस
चीफ़ एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़