यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है। ओखला में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम/AIMIM) की अस्वीकृति यह दर्शाती है कि मुस्लिम मतदाता केवल पहचान की राजनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अधिक रणनीतिक चुनावी फैसले ले रहे हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) की जीत यह संकेत देती है कि मतदाताओं ने “कम बुरे” विकल्प को चुना है, लेकिन साथ ही यह भी दर्शाता है कि वे केवल बयानबाजी से संतुष्ट नहीं हैं—वे सुशासन और विकास की अपेक्षा रखते हैं।
यह बदलाव तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों पर अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने का दबाव डाल सकता है। यदि वे केवल पहचान आधारित अपीलों पर निर्भर रहते हैं और ठोस प्रगति नहीं करते हैं, तो वे अपनी प्रासंगिकता खो सकते हैं। इसी तरह, भाजपा (BJP) इसे अपने विस्तार के अवसर के रूप में देख सकती है, लेकिन क्या वह पसमांदा मुस्लिम मतदाताओं के बीच महत्वपूर्ण पकड़ बना सकती है, यह उसकी नीतियों और दृष्टिकोण पर निर्भर करेगा।
बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में, जहां धर्मनिरपेक्ष दल पसमांदा मुस्लिम वोटों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, यह पैटर्न एक नए राजनीतिक संतुलन को जन्म दे सकता है। यदि पसमांदा मुस्लिम मतदाता शासन और विकास को प्राथमिकता देना जारी रखते हैं और शिकायत-आधारित राजनीति से परे सोचते हैं, तो सभी दलों को अपनी रणनीतियों में बदलाव करना होगा।
शारिक अदीब अंसारी
राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष,
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज,
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