“अर्जला मुस्लिम”: नई परिभाषा या पुरानी साजिश? – पसमांदा आंदोलन के विरुद्ध एक विभाजनकारी प्रयोग
भारत के बहुसंख्यक मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा — जिसे पसमांदा कहा जाता है — ऐतिहासिक रूप से सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक रूप से वंचित रहा है। यह आंदोलन केवल सत्ता में भागीदारी की माँग नहीं है, बल्कि सम्मान, समानता और सामाजिक न्याय की साझी लड़ाई है।
ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ इस आंदोलन का एक संगठित, वैचारिक और राष्ट्रीय मंच है, जो हर पसमांदा जाति — अंसारी, सलमानी, कुरैशी, धोबी, नाई, कुंजड़ा, मल्लाह, बंजारा, लालबेगी, हलालखोर, नट, मीरासी, घांची, आदि — की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए, उन्हें हक़ और इज़्ज़त दिलाने के लिए संघर्षरत है।
“अर्जला मुस्लिम”: संवैधानिक लड़ाई या सामाजिक फितना?
हाल के दिनों में कुछ समूहों द्वारा “अर्जला मुस्लिम” नामक एक नई परिभाषा को प्रचारित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य पसमांदा समाज के भीतर दलित और आदिवासी मुस्लिम वर्ग की पहचान को अलग से उभारना बताया जा रहा है।
यह तथ्यात्मक रूप से सही है कि पसमांदा समाज के भीतर सफाईकर्मी, खेतिहर मजदूर, भूमिहीन, वनों में रहने वाले समुदायों की सामाजिक स्थिति अधिक हाशिए पर रही है। ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ 341 के तहत उनकी SC/ST की श्रेणी में संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है।
लेकिन जब इस वर्गीय यथार्थ को एक नए राजनीतिक पहचान-पथ के रूप में पसमांदा आंदोलन से अलग कर प्रस्तुत किया जाता है — तब यह सिर्फ चेतना नहीं, बल्कि साजिश बन जाती है।
इतिहास से सबक: फूट डालो, राज करो की कोशिशें
यह पहली बार नहीं है जब पसमांदा आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश हुई हो:
जब मरहूम असीम बिहारी साहब ने जमातुल मोमिन का गठन किया, तो उसे सिर्फ “अंसारियों का संगठन” कहकर नीचा दिखाया गया।
पसमांदा मुस्लिम महाज़ के गठन के बाद भी लगातार यह प्रचारित किया गया कि यह संगठन सिर्फ कुछ जातियों तक सीमित है।
अब “अर्जला मुस्लिम” शब्दावली एक नई विभाजनकारी चाल के रूप में सामने आई है — जो पसमांदा समाज को ऊँच-नीच, शुद्ध-अशुद्ध, और उच्च-निम्न जैसे खतरनाक ब्राह्मणवादी खांचों में बाँटने का प्रयास करती है।
हमारा दृष्टिकोण: न कोई बड़ा, न कोई छोटा
ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ का स्पष्ट दृष्टिकोण है:
हम न किसी को ऊँचा मानते हैं, न नीचा।
हम किसी भी जाति, वर्ग या पेशे के आधार पर श्रेष्ठता या हीनता की अवधारणा को खारिज करते हैं।
हमारी विचारधारा इस्लाम के अंतिम पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद (ﷺ) के आख़िरी खुत्बे, सुलह-ए-हुदैबिया, और मीसाक-ए-मदीना की मूल भावना पर आधारित है — जहाँ इंसानियत, बराबरी, और सामाजिक समझौते को सर्वोपरि रखा गया।
हम “लाकुम दीनकुम वलियद्दीन” के उस कुरआनी उसूल के मानने वाले हैं, जिसमें धार्मिक सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान का स्पष्ट संदेश दिया गया है।
“अर्जला” की अवधारणा: एक संवैधानिक विमर्श या सामाजिक तोड़फोड़?
“अर्जल” शब्द, जो संस्कृत के “अवर्जनीय” (घृणित/नीच) शब्द से लिया गया है, भारत की वर्णव्यवस्था में अंतिम श्रेणी (शूद्रातिशूद्र) के लिए प्रयुक्त होता रहा है। जब इस शब्द को मुस्लिम समाज में लाकर कुछ तबकों को “सबसे निचला” साबित किया जाता है, तो यह ब्राह्मणवादी मानसिकता का आयात बन जाता है — जो इस्लामी दृष्टिकोण और पसमांदा आंदोलन दोनों के विरोध में है।
हम मानते हैं: अगर “अर्जला” शब्द दलित व आदिवासी मुस्लिमों के संवैधानिक अधिकारों (जैसे 341 में आरक्षण) की मांग को उभारने के लिए प्रयोग हो रहा है, तो यह स्वीकार्य विमर्श है। लेकिन यदि यह पसमांदा आंदोलन के भीतर भ्रम, असहमति और टकराव को जन्म देने के लिए किया जा रहा है — तो यह फितना है, और संगठन उसे पूरी तरह खारिज करता है।
ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ का विज़न और मिशन
हमारा उद्देश्य केवल राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं है — बल्कि एक पूर्ण सामाजिक क्रांति है:
🔷 विज़न: भारत में पसमांदा मुस्लिम समाज को हर स्तर पर बराबरी, सम्मान और भागीदारी दिलाना — चाहे वह शिक्षा हो, रोजगार हो, स्वास्थ्य, नेतृत्व या सामाजिक स्वीकार्यता।
🔷 मिशन:
1. पसमांदा समाज की 341 जातियों के संवैधानिक अधिकारों की बहाली के लिए संघर्ष।
2. दलित और आदिवासी मुस्लिमों को अनुसूचित जाति और जनजाति की श्रेणी में सम्मिलित कराने की मांग।
3. सभी पसमांदा जातियों को एक मंच पर लाकर, उनके बीच की जातिगत खाई को मिटाना।
4. धार्मिक, सामाजिक, और राजनीतिक अशरफ़वादी वर्चस्व का अहिंसात्मक, वैचारिक और संवैधानिक विरोध।
5. इस्लामी न्याय, भारतीय संविधान और आधुनिक मानवाधिकार मूल्यों को आधार बनाकर संगठित संघर्ष।
पसमांदा कार्यकर्ताओं, युवाओं और समाज से अपील
हम सभी से अपील करते हैं कि:
“अर्जला मुस्लिम” जैसे नवीन परंतु विभाजनकारी जुमलों से सावधान रहें।
पसमांदा आंदोलन की विरासत को जातीय उपश्रेणियों में बाँटने से बचाएं।
341 की संवैधानिक लड़ाई को एक संपूर्ण पसमांदा समाज की साझी लड़ाई बनाकर आगे बढ़ाएं।
हर जगह – गाँव, कस्बे, शहर – एक ही नारा गूंजना चाहिए:
“हम सब पसमांदा हैं — और हम सब बराबर हैं!”
आज जब पसमांदा आंदोलन नई ऊंचाइयों को छू रहा है, तब उसे कमजोर करने के लिए शब्दजाल, उप-परिभाषाएं, और श्रेणीयां गढ़ी जा रही हैं। यह वक्त सावधानी का है — हमें पहचानना होगा कि कौन हमारे हक़ की लड़ाई को मजबूत कर रहा है और कौन उसे तोड़ने की कोशिश कर रहा है।
हम किसी से न बड़े हैं, न छोटे। हम सब एक समान हैं। और यही पसमांदा आंदोलन की बुनियाद है।
✊🏽 “सत्ता, संसाधन और सम्मान” की लड़ाई में — हम सब एक हैं।
मुहम्मद युनुस
मुख्य कार्यकारी अधिकारी सीईओ
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महा