✊ पसमांदा आंदोलन: एक सामाजिक क्रांति की दस्तक

🐘 हाथी जैसे आंदोलन की पहचान- पसमांदा आंदोलन एक सामाजिक आंदोलन है – और सामाजिक आंदोलन हाथी की तरह होते हैं। वे धीरे-धीरे चलते हैं, मगर अपनी मज़बूत छाप ज़मीन पर छोड़ते जाते हैं। यह आंदोलन तेज़ या उग्र नहीं, बल्कि ठोस और स्थायी है।

यह कोई तात्कालिक चुनावी अभियान नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, बराबरी और हक़दारी का दीर्घकालिक प्रयास है।
🧭 सामाजिक बनाम राजनीतिक आंदोलन: क्या अंतर है?
सामाजिक आंदोलन उन समूहों द्वारा संचालित होते हैं जो किसी विशेष सामाजिक असमानता या अन्याय के विरुद्ध खड़े होते हैं।
राजनीतिक आंदोलन अक्सर इन्हीं सामाजिक आंदोलनों की भूमि पर जन्म लेते हैं।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर भी राजनीतिक आंदोलन से पहले सामाजिक आंदोलन को प्राथमिकता देते थे, क्योंकि वह जानते थे कि समाज में जब चेतना आएगी, तब राजनीति स्वतः बदलेगी।

📜 दलित आंदोलन: पसमांदा के लिए एक प्रेरणा- दलित आंदोलन की यात्रा 100 से 150 वर्षों पुरानी है। वह भी एक सामाजिक चेतना से शुरू हुआ और आज राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरा है।
अब पसमांदा आंदोलन भी उसी राह पर है। लेकिन यह अभी प्रारंभिक अवस्था में है। इसलिए हमें पूरी गंभीरता और समझदारी से इसकी नींव को मज़बूत करना है।

🧱 पसमांदा आंदोलन को मज़बूत बनाने वाली 6 मूल बातें
✅ 1. व्यक्ति नहीं, आंदोलन बड़ा है
कई लोग आएंगे, कई चले जाएंगे — यह स्वाभाविक है।
हमें किसी एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द आंदोलन नहीं बनाना है। आंदोलन की निरंतरता और विचारधारा प्राथमिक है।
✅ 2. संगठन ज़रूरी है, लेकिन संगठन का ‘अहं’ नहीं

हर आंदोलन को एक संगठन चाहिए। और हर संगठन में मतभेद भी होंगे।
परंतु हमारी कोशिश होनी चाहिए कि व्यक्तिगत इच्छाएं या पद की लालसा आंदोलन को क्षति न पहुँचाए। मतभेद मंच के भीतर सुलझाएं, सार्वजनिक विवाद से बचें।

3. विचार का प्रचार सबकी ज़िम्मेदारी है- जो साथी लिख नहीं सकते, वे लेखों को copy-paste करें। केवल “शेयर” करने से वह पहुंच नहीं बनती। हर पोस्ट एक हथियार है — उसका उपयोग होश से करें।

4. भाषा और व्यवहार में संयम आवश्यक- गाली या कटु भाषा से आंदोलन की नैतिक शक्ति नष्ट होती है। हम अगर विरोधियों जैसे ही बन जाएं, तो फिर हमारी बात में क्या फर्क रहेगा? हमें हर हाल में संयम और गरिमा बनाए रखनी है।

5. स्वघोषित ‘अशराफ बुद्धिजीवियों’ से व्यर्थ की बहस न करें- पसमांदा विमर्श ने उनके विशेषाधिकारों को चुनौती दी है — वे विचलित हैं। उनसे सहमति की उम्मीद न रखें। और यदि सहमति दिखाने लगें, तो होशियार हो जाएं — वहाँ कोई चाल भी हो सकती है।

✅ 6. ट्रोल्स से न डरें, न प्रतिक्रिया दें- आंदोलन अगर हाथी है तो ट्रोल्स कुत्ते हैं। कुत्तों के भौंकने से हाथी नहीं रुकता, उल्टा शोर से बाकी लोग जागते हैं और हाथी को देखने लगते हैं। हमें स्थिर और शांत रहकर आगे बढ़ते रहना है।

🏛 AIPMM: आंदोलन से संगठन की ओर

📌 इतिहास की पृष्ठभूमि- मुगल काल में पसमांदा मुसलमानों को धार्मिक-राजनीतिक सत्ता से वंचित रखा गया। अंग्रेज़ों और कांग्रेस काल में भी नेतृत्व ‘अशराफ’ वर्ग के हाथ में रहा। लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा पसमांदा विमर्श को मंच दिए जाने से यह विषय राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बन सका।

🌍 AIPMM का विस्तार और दिशा- ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ (AIPMM) अब न केवल एक आंदोलन है, बल्कि एक संगठित सामाजिक ताकत भी बन चुका है।

वर्तमान उपलब्धियाँ:
✅ 4 कार्यालय देश में सक्रिय ✅ 13 जिलों में सक्रिय इकाइयाँ ✅ शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक न्याय, राजनीतिक भागीदारी जैसे विषयों पर केंद्रित कार्य ✅ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पसमांदा मुसलमानों की आवाज़ बनना

🗣 हमारा स्पष्ट दृष्टिकोण- हम किसी भी राजनीतिक दल से नफ़रत नहीं करते, और न ही किसी से लालच रखते हैं।
“जो सत्ता में है, संगठन उनसे समाजहित में संवाद करेगा, परंतु किसी भी दल का प्रचारक नहीं बनेगा।”

📢 निष्कर्ष: हम किस ओर जा रहे हैं?- पसमांदा आंदोलन न सत्ता के लिए है, न पद के लिए — यह आंदोलन है इंसाफ़, बराबरी और पहचान के लिए।

हमें धैर्य रखना है, एकता को बनाए रखना है और पसमांदा विचारधारा को साफ़, सशक्त और सतत बनाए रखना है।
जो हमसे छीना गया — वह हमें केवल चेतना, संगठन और निरंतरता से ही वापस मिलेगा।

मुहम्मद युनुस
मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO)
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ (AIPMM)