मौलाना महमूद मदनी का ताज़ा छिपा हुआ धमकी भरा बयान सुनकर कि “अगर मुसलमान क़ानून अपने हाथ में ले लें तो मुल्क को अंदाज़ा भी नहीं होगा कि क्या होने वाला है”, मुझमें सिर्फ़ ग़ुस्सा नहीं, बल्कि गहरी तिरस्कार की आग भड़क उठी है। यह किसी बेबस मौलवी का भावुक बचाव नहीं है। यह एक सोची-समझी सियासी चाल है, एक ऐसे संगठन की चाल जिसने तीन पीढ़ियों में सत्ता के गलियारों में अपरिहार्य बने रहने का हुनर सीख लिया है। मदनी ख़ानदान के नेतृत्व वाली जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस दोमुँहे खेल को पूर्णता दी है कि एक तरफ़ सेकुलर दलों का चहेता बने रहना, और दूसरी तरफ़ मुस्लिम पहचान का एकमात्र ठेकेदार बनकर दबदबा कायम रखना।
सियासत और सौदागरी की असली कहानी- मैं वह कड़वी सच्चाई पूरे अधिकार और नज़दीक से देखी हुई हक़ीक़त के साथ कह रहा हूँ। मौलाना असद मदनी (महमूद मदनी के वालिद) को कांग्रेस ने बार-बार राज्यसभा भेजा। बदले में जमीयत को आज़ादी के बाद से हर चुनाव में उत्तर प्रदेश, बिहार और असम में कम-से-कम एक लोकसभा और कई विधानसभा सीटें “गिफ़्ट” की जाती रही हैं। मेरा अपना शहर मुरादाबाद इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है— दशकों से कांग्रेस ने लोकसभा या अहम विधानसभा सीटें बिना किसी आंतरिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जमीयत के हवाले कर दीं। संदेश हमेशा साफ़ रहा कि मदनी ख़ानदान और उसके संरक्षण-तंत्र को खुश रखो, “मुस्लिम वोट” थोक के भाव मिल जाएँगे।
यह प्रतिनिधित्व नहीं, धार्मिक आवरण में ढका हुआ एक सामंती सौदा है।
विभाजन के समय भी सत्ता ही थी असली धुरी 1947 में जब पाकिस्तान बना, जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी इसी सत्ता-समीकरण पर बँट गई। विभाजन समर्थक और मुस्लिम लीग से गठजोड़ वाला धड़ा — मौलाना शब्बीर अहमद उस्मानी (नजीबाबाद, बिजनौर) के नेतृत्व में पाकिस्तान में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम बन गया। आज वही संगठन मौलाना फ़ज़लुर रहमान के हाथों पाकिस्तान की धार्मिक-दक्षिणपंथी सियासत का केंद्र है। फ़ज़लुर रहमान के वालिद मुफ़्ती महमूद मुरादाबाद की मदरसा शाही के छात्र थे। यानि पाकिस्तानी जमीयत का सड़क-ताक़त, मदरसा नेटवर्क और फ़ौज के साथ टैक्टिकल गठजोड़ वाला मॉडल, भारतीय जमीयत के लिए एक दर्पण है। बस अंतर इतना है कि भारत में यह खेल “सेकुलरिज़्म” और “अल्पसंख्यक अधिकारों” के सुविधाजनक पर्दे में खेला जाता है।
भड़काऊ बयान: दबाव की पुरानी रणनीति- मौलाना महमूद मदनी के भड़काऊ बयान किसी भूल का नतीजा नहीं हैं। ये पूरी तरह से सोची-समझी दबाव-राजनीति है — दिल्ली के सत्ता-गलियारों को यह याद दिलाने के लिए कि जमीयत के पास अभी भी इतनी क्लेरिकल पकड़ और वोट-बैंक है कि ज़रूरत पड़ने पर “नियंत्रित अशांति” पैदा की जा सकती है।
जैसे ही कोई सरकार — किसी भी रंग की हो — जमीयत की माँगों (मदरसा ग्रांट, वक़्फ़ बोर्ड की कुर्सियाँ, टिकटों की हिस्सेदारी) को अनदेखा करने की हिम्मत दिखाती है, तुरन्त एक आग उगलती तकरीर होती है, एक जलूस निकलता है, और टीवी चैनल ग़ुस्साए भीड़ की तस्वीरों से भर जाते हैं। कुछ ही दिनों में सत्ताधारी दल के दूत नई गारंटियाँ लेकर पहुँच जाते हैं। पचहत्तर वर्षों से यही स्क्रिप्ट चल रही है।
पसमांदा मुद्दों पर पर्दा डालने की राजनीति- इसी बीच असली मसले पसमांदा बच्चों का भयावह शैक्षिक पिछड़ापन, अधिकांश राज्यों में मुस्लिम OBC सब-कोटा का अभाव, कारीगरों और मज़दूरों का रोज़ाना सामाजिक-आर्थिक अपमान “इस्लाम ख़तरे में” के कृत्रिम शोर में दब जाते हैं। 85% पसमांदा मुसलमान चुपचाप तमाशाई बने रहते हैं, जबकि अशराफ़ कुलीन वर्ग कुछ संसदीय टिकटों के बदले उनकी इज़्ज़त की नीलामी करता रहता है।
जमीयत किसकी नुमाइंदगी करती है?
मैं अपनी हैसियत और जीते-जागते तजुर्बे के पूरे वज़न के साथ कहता हूँ:
जमीयत उलेमा-ए-हिंद मदनी नेतृत्व के हाथों भारतीय मुसलमानों की नुमाइंदगी नहीं करती।
वह सिर्फ़ अपनी सत्ता, संरक्षण और राजनीतिक प्रासंगिकता की भूख की प्रतिनिधि है — उससे ज़्यादा कुछ नहीं।
पसमांदा समुदाय का साफ़ संदेश
हम पसमांदा करोड़ों इस डर और सौदेबाज़ी की राजनीति को पूरी तरह ख़ारिज करते हैं।
हम अपने भविष्य को किसी वंशवादी मौलवी के हाथों बंधक नहीं बनने देंगे जो बुलेटप्रूफ़ मंचों से धमकियाँ देते हैं और तनाव की पहली चिंगारी पर हमारी बस्तियाँ जलने के लिए छोड़ देते हैं।
मौलाना महमूद मदनी को अपने लापरवाह बयान पर बिना शर्त सार्वजनिक माफ़ी माँगनी चाहिए।
भारत सरकार को एक परिवार-नियंत्रित संगठन को “मुस्लिमों की एकमात्र प्रामाणिक आवाज़” मानना बंद करना चाहिए और संसदीय सीटें गिफ़्ट करने की शर्मनाक परंपरा समाप्त करनी चाहिए।
और पसमांदा आंदोलन इस गठजोड़ को बेनक़ाब करता रहेगा जब तक भारतीय इस्लाम के भीतर का अंतिम सामंती अवशेष ध्वस्त नहीं हो जाता।
हमारी निष्ठा संविधान के साथ है
हमारी वफ़ादारी भारत के संविधान के साथ है, किसी खुद-गढ़े धार्मिक माफ़िया के साथ नहीं।
जय हिंद, जय पसमांदा, जय संविधान।
शारिक अदीब अंसारी, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष,
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़
ईमेल: s.adeebansari@gmail.com

