ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ एक राष्ट्रवादी सामाजिक संगठन है, जो देश के 14 राज्यों में सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। संगठन का मुख्य उद्देश्य पसमांदा मुस्लिम समाज को जागरूक करना, उनके अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाना और उन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा में सशक्त रूप से आगे बढ़ाना है।
संगठन किसी भी दल की सरकारों के साथ सकारात्मक सहयोग और समन्वय बनाते हुए यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षा, रोज़गार, सामाजिक न्याय, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आर्थिक विकास और सरकारी योजनाओं के लाभ सही मायने में पसमांदा समाज तक पहुँचें। इसी सोच के साथ महाज़ लगातार रचनात्मक और राष्ट्रहितकारी भूमिका निभा रहा है।
बिहार चुनाव—क्यों नहीं थे चौंकाने वाले परिणाम
बिहार चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले नहीं थे।
कुछ नेताओं के बयानों का मामूली असर पड़ा होगा और कुछ प्रभाव SIR की बातों का भी हुआ होगा, लेकिन चुनाव की दिशा तय करने वाला सबसे बड़ा कारण था—
✔ लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में समाज के बड़े हिस्से के साथ हुई नाइंसाफी
लालू शासन के दौरान—
बिहार के प्रशासन और सत्ता संरचना में लगातार एक ही जाति विशेष का प्रभाव बढ़ता गया,
एक जाति विशेष तथा अशराफ मुसलमानों ने सत्ता, पद और सरकारी लाभों में अपना प्रभुत्व जमाया,
अशराफ वर्ग ने ‘मुसलमान’ नाम का उपयोग कर लाभ लिया,
जबकि 85% पसमांदा मुसलमानों को न राजनीतिक हिस्सा मिला, न आर्थिक-सामाजिक उन्नति।
नतीजा यह हुआ कि बदनामी पूरी मुस्लिम समाज को मिली, लेकिन लाभ सिर्फ कुछ चुनिंदा अशराफ परिवारों तक सीमित रहा।
इसी ऐतिहासिक अनुभव ने पसमांदा समाज में NDA के प्रति भरोसा और झुकाव बढ़ाया।
✔ लॉ एंड ऑर्डर की खराब स्थिति
लालू शासनकाल में कानून-व्यवस्था की गिरावट, अपराध, और अव्यवस्था ने जनता में असंतोष पैदा किया—जिसका असर आज तक देखने को मिलता है।
✔ चुनावों में अशराफ नेतृत्व की नकारात्मक भूमिका
अशराफ नेतृत्व से जुड़े कई संगठन, मौलाना, मौलवी, बुद्धिजीवी और राजनीतिक चेहरे—
RJD, SP, TMC आदि दलों के पक्ष में फ़तवे, अपील और प्रचार करते रहते हैं,
BJP और RSS का डर दिखाकर मुस्लिम समाज में भय का माहौल बनाने की कोशिश करते हैं,
और तथाकथित सेक्युलर दल इनके सहारे लगातार पसमांदा समाज का वोट लेते रहते हैं।
यही डर की राजनीति ध्रुवीकरण को बढ़ाती है, जिसका लाभ भी अंततः अशराफ वर्ग को मिलता है, और नुकसान उठाना पड़ता है 85% पसमांदा मुसलमानों को।
UP में 2027—बदलाव की संभावना क्यों कम
उत्तर प्रदेश में 2027 में भी बड़ा राजनीतिक बदलाव होता नहीं दिखता, क्योंकि—
बिहार में RJD की जो छवि और पसमांदा विरोधी छाया थी, लगभग वही छवि UP में SP की है,
SP के साथ भी लंबे समय से वही अशराफ नेतृत्व जुड़ा रहा है जिसने सत्ता और लाभ में मलाई खाई,
वहीं पसमांदा मुसलमानों को न तो सही प्रतिनिधित्व मिला और न वास्तविक विकास।
महाज़ की नई रणनीति—और उसका असर
इन परिस्थितियों को देखते हुए ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने बिहार चुनाव में अपनी रणनीति बदली।
संगठन ने अपने कार्यकर्ताओं को खुली छूट दी—
> “यदि आप NDA के साथ हैं, तो समाज के हित में पूरी स्वतंत्रता के साथ पार्टी के लिए कार्य कर सकते हैं।”
यह निर्णय पसमांदा समाज के विकास और वास्तविक हितों को ध्यान में रखकर लिया गया।
✔ इस नई रणनीति का परिणाम
बिहार में NDA को जितना मुस्लिम वोट मिला, उसमें लगभग 90% वोट पसमांदा मुसलमानों का था।
यह वोट धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि
नीतीश कुमार के विकास कार्यों, शिक्षा व रोज़गार पर ध्यान, तथा शांति-व्यवस्था के आधार पर दिया गया।
पसमांदा समाज की नई राजनीतिक सोच
आज पसमांदा मुसलमान— धर्म या जाति के नाम पर नहीं, भय या भावनाओं के नाम पर नहीं, बल्कि अपने बच्चों की शिक्षा, रोज़गार, सामाजिक न्याय,
राजनीतिक हिस्सेदारी, और आर्थिक उन्नति को प्राथमिकता देकर वोट कर रहा है। यह परिवर्तन ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के नेतृत्व, गरूकता अभियानों और निरंतर संघर्ष के कारण संभव हुआ है। आने वाला समय—अधिक जागरूकता, अधिक सशक्तिकरण
पसमांदा समाज अब— और अधिक जागरूक होगा, राजनीतिक रूप से संगठित होगा, सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बनेगा, और भारतीय लोकतंत्र में सार्थक, सशक्त और निर्णायक योगदान देता रहेगा। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ इस नए सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन का नेतृत्व कर रहा है और आगे भी पसमांदा समाज के हक, हुकूक और इज़्ज़त के लिए संघर्षरत रहेगा।
Muhammad Yunus, CEO
All India Pasmanda Muslim Mahaz

