“बीजेपी की B टीम” का आरोप: राजनीति, पूर्वाग्रह और चयनात्मक नैरेटिव

भारतीय राजनीति के वर्तमान परिदृश्य में “बीजेपी की B टीम” जैसा आरोप एक प्रचलित राजनीतिक हथियार बन चुका है। यह शब्द उन राजनीतिक दलों, संगठनों या व्यक्तियों पर लगाया जाता है जिन्हें यह आरोपित किया जाता है कि वे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को लाभ पहुँचा रहे हैं—विशेषकर विपक्षी वोटों को विभाजित करके।

यद्यपि यह आरोप कभी-कभी वास्तविक राजनीतिक गणित पर आधारित हो सकता है, किंतु गहन और निष्पक्ष विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि इसका उपयोग अत्यधिक चयनात्मक ढंग से किया जाता है। यह राजनीतिक सुविधा, वोट बैंक की सुरक्षा और कुछ मामलों में स्पष्ट पूर्वाग्रह से प्रेरित होता है। इस लेख में हम इस आरोप की प्रकृति, इसके चयनात्मक उपयोग और इसके पीछे के कारणों की विस्तृत समीक्षा करेंगे।

1. “B टीम” शब्द का उद्भव और राजनीतिक अर्थ- “बीजेपी की B टीम” या संक्षेप में “B टीम” शब्द का प्रयोग राजनीतिक भाषा में उस इकाई के लिए किया जाता है जो स्वयं को स्वतंत्र, विपक्षी या वैकल्पिक बताती है, किंतु उसके राजनीतिक क्रियाकलापों या चुनावी प्रभाव से सत्ताधारी दल (यहाँ बीजेपी) को अप्रत्यक्ष लाभ मिलता है। यह शब्द 2010 के दशक के प्रारंभ में मीडिया बहसों, टेलीविजन डिबेट्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लोकप्रिय हुआ। विशेष रूप से 2014 के बाद यह विपक्षी खेमे में एक सामान्य आरोप बन गया। व्यवहारिक रूप से देखें तो यह लेबल मुख्यतः मुस्लिम नेतृत्व वाली या मुस्लिम-बहुल वोट आधार वाली पार्टियों एवं संगठनों पर लगाया जाता रहा है।

उदाहरणस्वरूप: – ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM)   पीस पार्टी  – इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (कुछ संदर्भों में)  – उलेमा काउंसिल  – ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ जैसे पसमांदा संगठन – अन्य छोटे मुस्लिम-केंद्रित दल जैसे ASP, AIP आदि इसके विपरीत, वे राजनीतिक दल जो खुले तौर पर या बार-बार बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुके हैं, या जिन्होंने बीजेपी को प्रत्यक्ष समर्थन दिया है, उन्हें इस लेबल से लगभग पूर्णतः मुक्ति मिली हुई है।

कुछ प्रमुख उदाहरण: – जनता दल (यूनाइटेड) – JDU    – तेलुगु देशम पार्टी – TDP   – बीजू जनता दल – BJD   – जनता दल (सेक्युलर) – JDS  – तृणमूल कांग्रेस – TMC (कुछ अवधियों में अप्रत्यक्ष समर्थन)  – भारत राष्ट्र समिति – BRS  – आम आदमी पार्टी – AAP (कुछ मुद्दों पर समान स्टैंड)  – राष्ट्रीय लोक दल – RLD  – बहुजन समाज पार्टी – BSP   – निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (राजभर), अपना दल (S) आदि यह चयनात्मकता ही इस आरोप की विश्वसनीयता पर सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है।

2. मुस्लिम-आधारित दलों पर केंद्रित आरोप के कारण

(क) वोट विभाजन का राजनीतिक तर्क- भारत के कई राज्यों—विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक आदि में—मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। जब कोई स्वतंत्र मुस्लिम या पसमांदा मुस्लिम राजनीतिक मंच उभरता है और चुनाव लड़ता है, तो वह पारंपरिक रूप से मुस्लिम वोटों पर निर्भर “सेकुलर” दलों (जैसे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राजद आदि) के वोट बैंक में सेंध लगाता है। ऐसे में इन पारंपरिक दलों के लिए सबसे सरल रक्षा-युक्ति यही होती है कि नवउभरते दल को “बीजेपी की B टीम” करार दे दिया जाए। इससे उनके अपने समर्थकों में यह नैरेटिव स्थापित होता है कि उक्त दल को वोट देना व्यर्थ है, क्योंकि यह अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी को ही मजबूत करेगा।

(ख) स्वतंत्र मुस्लिम नेतृत्व से असहजता- भारतीय राजनीति में दशकों से मुस्लिम समुदाय को मुख्य रूप से “वोट बैंक” के रूप में देखा जाता रहा है, न कि एक स्वतंत्र राजनीतिक शक्ति के रूप में। मुस्लिम वोटों को कांग्रेस या क्षेत्रीय “सेकुलर” दलों के पक्ष में एकत्रित रखना एक स्थापित रणनीति रही है। जब कोई मुस्लिम या विशेष रूप से पसमांदा (पिछड़ा, दलित एवं अति पिछड़ा मुस्लिम) नेतृत्व अपना स्वतंत्र एजेंडा, अपनी अलग राजनीतिक भाषा और अपनी प्राथमिकताएँ लेकर मैदान में उतरता है, तो यह पारंपरिक व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाता है। ऐसे नेतृत्व को तुरंत संदेहास्पद घोषित कर दिया जाता है।

(ग) मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका- मुख्यधारा के मीडिया तथा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर मुस्लिम-केंद्रित पार्टियों को प्रायः “सांप्रदायिक” या “कट्टरपंथी” फ्रेम में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि जाति-आधारित (जैसे यादव, जाट, कुर्मी आदि) या क्षेत्रीय दलों के गठबंधनों को “व्यावहारिक राजनीति”, “सामाजिक न्याय की लड़ाई” या “क्षेत्रीय हितों की रक्षा” के रूप में वैध ठहराया जाता है। यह दोहरा मापदंड समाज में एक पक्षपातपूर्ण नैरेटिव को मजबूत करता है और “B टीम” जैसे आरोपों को आसानी से स्वीकार्य बनाता है।

3. अन्य दलों पर यह आरोप क्यों नहीं लगता?

– जो दल खुले तौर पर NDA का हिस्सा हैं या रहे हैं, उनके संबंध सार्वजनिक और स्वीकार्य हैं, इसलिए उन्हें “B टीम” कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
– जाति-आधारित, क्षेत्रीय या अवसरवादी गठबंधन भारतीय राजनीति की स्वाभाविक एवं स्वीकृत प्रक्रिया माने जाते हैं।
– कई दल समय-समय पर बीजेपी के साथ और विपक्ष के साथ रहे हैं (उदाहरण: नीतीश कुमार, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू आदि), किंतु उन पर “B टीम” का स्थायी लेबल नहीं चिपकाया जाता।

इससे स्पष्ट है कि “B टीम” का आरोप कोई निश्चित सैद्धांतिक मानदंड नहीं है, बल्कि एक लचीला राजनीतिक औजार है जिसका प्रयोग आवश्यकता अनुसार किया जाता है।

4. ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ का सिद्धांतपूर्ण दृष्टिकोण

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ स्पष्ट रूप से मानता है कि: – भारत में सभी राजनीतिक दल पूर्णतः स्वतंत्र हैं।  – प्रत्येक दल को अपने विचारधारा, एजेंडा और संगठनात्मक ढांचे के अनुरूप चुनाव लड़ने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।   – गठबंधन लोकतंत्र की स्वाभाविक प्रक्रिया है और समान विचारधारा वाले दलों का आपसी सहयोग अस्वाभाविक नहीं है।

महाज़ यह भी जोर देकर कहता है कि: – राजनीति आपसी सौहार्द, भाईचारा तथा संविधान की गरिमा के दायरे में रहनी चाहिए।  – किसी दल या संगठन को केवल उसकी सामुदायिक पहचान या धार्मिक आधार पर संदेह की दृष्टि से देखना लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है।  – देशहित में केवल वही राजनीति स्वीकार्य है जो संविधान, सामाजिक न्याय, समानता और लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पूर्ण सम्मान करती हो। “बीजेपी की B टीम” जैसे आरोप प्रायः राजनीतिक असहजता, वोट बैंक की रक्षा की चिंता तथा स्वतंत्र एवं नवीन नेतृत्व के उदय से उत्पन्न भय का परिणाम होते हैं। सच्चा लोकतंत्र मतदाता की सर्वोच्चता में विश्वास रखता है। किसी भी राजनीतिक दल की वैधता एवं स्वीकार्यता का अंतिम निर्णय मतदाताओं का जनसमर्थन तथा उसका संवैधानिक आचरण तय करता है—न कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा चस्पाँ किए गए लेबल। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ इसी लोकतांत्रिक भावना के साथ आगे बढ़ता है और सभी राजनीतिक दलों से अपेक्षा करता है कि वे राष्ट्रहित, सामाजिक न्याय तथा संवैधानिक मूल्यों की रक्षा में अपनी जिम्मेदार भूमिका निभाएँ।

मुहम्मद युनुस, सीईओ
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़