दिनांक 15 अप्रैल, 2025 को AIPMM के प्रतिनिधिमंडल, जिसमें शाहीन अंसारी (राष्ट्रीय सचिव) और फैज़ अहमद अंसारी (लखनऊ महानगर अध्यक्ष) शामिल थे, ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के अध्यक्ष जगदंबिका पाल सिंह से मुलाकात की। यह बैठक वक़्फ़ संशोधन अधिनियम, 2025 में पसमांदा मुसलमानों की भागीदारी और “वक़्फ़ बाय यूज़र” प्रावधान को लेकर आयोजित की गई थी। श्री पाल ने स्पष्ट किया कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि वक़्फ़ प्रबंधन में सुधार और पारदर्शिता लाने का उद्देश्य रखता है। उन्होंने यह भी कहा कि वक़्फ़ संपत्तियों से होने वाली आय को वंचित वर्गों—पसमांदा, महिलाएँ, बच्चे, और गरीब—तक पहुँचाना सरकार की प्राथमिकता है।
कानून के प्रभाव और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ- यह अधिनियम वक़्फ़ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता की दिशा में एक ठोस पहल है। भारत में वक़्फ़ संपत्तियाँ अरबों रुपये की हैं, लेकिन पूर्व में उनके प्रबंधन को लेकर गंभीर आरोप लगे हैं। 2006 की सचर समिति रिपोर्ट ने भी इन खामियों को उजागर किया था।
हालाँकि, यह अधिनियम राजनीतिक विवादों से अछूता नहीं रहा है: सरकार का पक्ष: पारदर्शिता, समावेशिता और पसमांदा समुदायों के लिए विशेष अवसर।
विपक्ष का आरोप: संविधान विरोधी और मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप। AIPMM ने इसे पसमांदा समाज के लिए एक सकारात्मक बदलाव बताया है, वहीं कुछ अन्य संगठनों ने इसे “आधे-अधूरे सुधार” कहते हुए आलोचना की है। वक़्फ़ संशोधन अधिनियम, 2025 एक ऐसा कानून है, जो वक़्फ़ संपत्तियों के पारदर्शी प्रबंधन की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा सकता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पसमांदा मुसलमानों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है, जिससे वंचित तबकों को मुख्यधारा से जोड़ने का रास्ता खुलता है। हालाँकि, कानून की कुछ धाराओं को लेकर भ्रम और असहमति भी बनी हुई है। इसलिए जरूरी है कि समाज के सभी वर्गों को इसकी सही जानकारी दी जाए, और इसे राजनीति का हिस्सा न बनाकर, समुदाय के सुधार का माध्यम बनाया जाए।