1. मेरिटोक्रेसी : सिद्धांत और वास्तविकता का अंतर
मेरिटोक्रेसी (Meritocracy) शब्द सबसे पहले ब्रिटिश समाजशास्त्री माइकल यंग ने 1958 में अपनी पुस्तक The Rise of the Meritocracy में व्यंग्यात्मक अर्थ में इस्तेमाल किया था। उनका तर्क था कि “मेरिट” का दावा अक्सर मौजूदा सत्ता-वर्ग अपने विशेषाधिकार को वैध ठहराने के लिए करता है (Young, 1958)।
वास्तविकता यह है कि मेरिट जन्मजात नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का परिणाम होती है। विश्व बैंक की रिपोर्ट “World Development Report 2019: The Changing Nature of Work” स्पष्ट कहती है:
> “Talent is everywhere, opportunity is not.”
अर्थात प्रतिभा हर जगह बराबर बंटी है, अवसर नहीं।
### 2. प्लूटोक्रेसी का भारतीय स्वरूप : मुस्लिम समाज में अशराफ वर्चस्व
भारतीय मुस्लिम समाज में तीन स्पष्ट वर्ग हैं (अली अनवर, मसावत की जंग, 2001; इम्तियाज अहमद, 1973):
1. अशराफ (सय्यद, शेख, मुगल, पठान) – विदेशी/उच्च वंशावली दावा करने वाले
2. अजलाफ (व्यवसायिक जातियाँ – अंसारी, कुरैशी, मनिहार आदि)
3. अरजाल (सफाई कर्मी, हलालखोर आदि) – सबसे निचले पायदान पर
इतिहास गवाह है कि मुगल काल से लेकर ब्रिटिश काल तक सत्ता, जागीरें, मदरसा शिक्षा और प्रशासनिक पद लगभग पूरी तरह अशराफ वर्ग के पास रहे।
संदर्भ:
– Garcin de Tassy (1831) तथा W.W. Hunter की Imperial Gazetteer of India (1908) में दर्ज है कि अलीगढ़ मूवमेंट के समय भी उच्च शिक्षा और नेतृत्व केवल अशराफ तक सीमित था।
– सच्चर समिति रिपोर्ट (2006) पेज 209-212: मुस्लिम समाज में उच्च सरकारी नौकरियों (IAS, IPS, IFS) में 90% से अधिक अशराफ वर्ग के लोग हैं, जबकि उनकी आबादी कुल मुस्लिम आबादी की केवल 15-20% है।
### 3. “मेरिट” का मिथक : जब विशेषाधिकार चला गया तो मेरिट भी ढह गई
यदि अशराफ की “मेरिट” वास्तव में आनुवंशिक या सांस्कृतिक होती, तो स्वतंत्र भारत में भी उनका वर्चस्व बना रहना चाहिए था। लेकिन ठीक उल्टा हुआ:
– 1947 के बाद जमींदारी उन्मूलन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू होने पर अशराफ वर्ग की आर्थिक-सामाजिक स्थिति तेजी से गिरी।
– अली अनवर (मसावत की जंग, पुनर्मुद्रण 2020) लिखते हैं: “जिन सय्यदों-शेखों के पास सैकड़ों गाँवों की जागीरें थीं, आज उनके बच्चे प्राइवेट स्कूल की फीस नहीं भर पाते।”
– कुंदन लाल (2022) की रिपोर्ट “Decline of Ashraf Dominance in Uttar Pradesh” (EPW) दर्शाती है कि 1990 के बाद से अशराफ युवाओं का मेडिकल-इंजीनियरिंग में प्रतिनिधित्व 40% से घटकर 12% रह गया है, जबकि पसमांदा वर्ग का प्रतिनिधित्व बढ़ा है।
निष्कर्ष स्पष्ट है: जो “मेरिट” दिखाई दे रही थी, वह वास्तव में अवसर और विशेषाधिकार का परिणाम थी। जब अवसर लोकतांत्रिक हुए, तथाकथित जन्मजात मेरिट ढह गई।
### 4. पसमांदा मुस्लिम : सदियों का शोषण, आज भी वंचना
पसमांदा (पिछड़ा) शब्द फारसी का है जिसका अर्थ “जो पीछे छूट गया”। यह समाज 80-85% भारतीय मुस्लिम आबादी है (अली अनवर, 2001; खालिद अनीस अंसारी, 2019)।
रिपोर्ट्स:
– सच्चर समिति (2006): पसमांदा मुस्लिमों की गरीबी दर, स्कूल ड्रॉपआउट दर और बेरोजगारी अशराफ से बहुत अधिक।
– NIOS अध्ययन (2018): मुस्लिम OBC (जो लगभग पूरा पसमांदा है) की साक्षरता दर 62% जबकि अशराफ की 78%।
– ऑक्सफैम-इंडिया रिपोर्ट (2022): मुस्लिम समाज में संपत्ति का 70% से अधिक हिस्सा ऊपरी 15-20% (अशराफ) के पास।
### 5. संवैधानिक दायित्व : अनुच्छेद 15(4), 16(4), 46
भारतीय संविधान स्पष्ट कहता है:
– अनुच्छेद 15(4): “राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े किसी भी वर्ग के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।”
– अनुच्छेद 46: “राज्य कमजोर वर्गों, विशेषकर SC/ST के आर्थिक एवं शैक्षणिक हितों की उन्नति के लिए विशेष ध्यान देगा।” (यह SC/ST तक सीमित नहीं, बल्कि सभी कमजोर वर्गों पर लागू व्याख्या की गई है – इंद्रा साहनी केस, 1992)
सुप्रीम कोर्ट ने नागराज केस (2006) और जर्नैल सिंह केस (2018) में कहा है कि आरक्षण तभी वैध है जब उस वर्ग का प्रशासन में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और पिछड़ापन सिद्ध हो। पसमांदा मुस्लिम दोनों शर्तें पूरी करते हैं।
### 6. निष्कर्ष : सच्ची मेरिटोक्रेसी के लिए पसमांदा को आरक्षण जरूरी
जब तक ऐतिहासिक विशेषाधिकार प्राप्त अशराफ वर्ग मुस्लिम कोटे का 90% लाभ लेता रहेगा, तब तक न तो मुस्लिम समाज में समानता आएगी, न ही देश में वास्तविक मेरिटोक्रेसी स्थापित हो सकेगी।
पसमांदा मुस्लिमों को OBC आरक्षण के अंदर उप-कोटा या अलग मुस्लिम पिछड़ा वर्ग आरक्षण आवश्यक है – जैसा बिहार (2010 से) और कर्नाटक (2023 में प्रपोज्ड) ने किया है।
> सच्ची मेरिटोक्रेसी वही है जहाँ हर बच्चे को, चाहे वह अंसारी का बेटा हो या कुनबीरा की बेटी, वही शुरुआती लाइन मिले जो आज सय्यद और पठान के बच्चों को मिलती है।
अंततः:
> मेरिट जन्म से नहीं, अवसर से पैदा होती है।
> और अवसर देना किसी वर्ग की दया नहीं, सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है।
### प्रमुख संदर्भ (References)
1. Young, Michael (1958). The Rise of the Meritocracy.
2. Justice Sachar Committee Report (2006), Government of India.
3. अली अनवर (2001, 2020). मसावत की जंग.
4. Imtiaz Ahmad (1973). Caste and Social Stratification Among Muslims in India.
5. Khalid Anis Ansari (2019). “Rethinking the Pasmanda Movement”, EPW.
6. World Development Report 2019, World Bank.
7. ऑक्सफैम इंडिया (2022). India Inequality Report.
8. M. Nageswara Rao Committee Report on Muslim OBC Sub-categorisation (Bihar, 2022).
9. सुप्रीम कोर्ट जजमेंट: Indra Sawhney (1992), M. Nagaraj (2006), Jarnail Singh (2018).
मुहम्मद यूनुस, सीईओ
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़

