भारत के सामाजिक ताने-बाने में पसमांदा मुस्लिम समाज की स्थिति को समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम इतिहास के उन पहलुओं पर विचार करें, जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। विशेष रूप से, यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि क्या मुग़ल शासक वास्तव में पसमांदा मुस्लिम समाज के हितैषी थे, या वे भी उसी जातिवादी और वर्गीय भेदभाव के समर्थक थे, जो भारतीय समाज में पहले से मौजूद था।
1. मुग़ल शासक: विदेशी मूल और उनकी शासन नीति- मुग़ल शासक मूल रूप से तुर्क-मंगोल नस्ल के थे और बाबर के नेतृत्व में भारत आए। उन्होंने यहाँ एक साम्राज्य की स्थापना की, जिसे बाद में अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगज़ेब ने मजबूत किया। मुग़लों ने अपने शासन को स्थायी बनाने के लिए स्थानीय राजाओं और समाज के प्रभावशाली वर्गों को साथ मिलाकर शासन किया। हालांकि, एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये शासक भारत के बाहर से आए थे और उन्होंने भारतीय समाज की संरचना को अपने अनुसार ढालने की कोशिश की। वे अपने प्रशासनिक ढांचे में अशरफ (सैयद, शेख, मुग़ल, पठान) जातियों को प्राथमिकता देते थे, जबकि पसमांदा मुस्लिम समाज को निम्न स्तर पर रखा गया।
2. पसमांदा मुस्लिम समाज पर मुग़ल शासन का प्रभाव- पसमांदा मुस्लिम समाज, जो कि अधिकांशतः दलित, पिछड़ी जातियों और स्थानीय रूप से परिवर्तित मुसलमानों से बना था, मुग़ल शासन के दौरान भी हाशिए पर ही रहा।
(i) प्रशासनिक उपेक्षा और सामाजिक भेदभाव- मुग़ल प्रशासन में ऊँचे पदों पर केवल सैयद, शेख, मुग़ल और पठान जातियों को रखा जाता था। पसमांदा मुसलमानों को प्रशासन, सेना, या शासन की अन्य महत्वपूर्ण व्यवस्थाओं में स्थान नहीं दिया गया। समाज में उनकी भूमिका मजदूरी, दस्तकारी, कृषि और अन्य निम्न माने जाने वाले कार्यों तक सीमित थी।
(ii) धार्मिक प्रतिष्ठानों में भेदभाव- मुग़ल शासनकाल में जो मदरसों, सूफ़ी खानकाहों और धार्मिक संस्थानों को बढ़ावा मिला, वे मुख्य रूप से उच्च वर्गीय मुसलमानों के नियंत्रण में थे। पसमांदा मुस्लिम समाज के लोगों को इन संस्थानों में प्रवेश की सीमित ही अनुमति थी, और उन्हें धार्मिक प्रतिष्ठान चलाने की स्वतंत्रता भी नहीं थी।
(iii) जबरन श्रम और आर्थिक शोषण- मुग़लों ने भव्य इमारतों, महलों, किलों और मस्जिदों का निर्माण कराया, जिनमें पसमांदा समाज के कारीगरों और मजदूरों का व्यापक शोषण किया गया। ताजमहल, लाल किला, फतेहपुर सीकरी जैसी संरचनाएँ मुख्यतः पसमांदा समाज के मजदूरों और कारीगरों के श्रम का परिणाम थीं, लेकिन इनकी कोई प्रशंसा नहीं हुई।
3. क्या मुग़ल शासक केवल अच्छे कार्यों के लिए याद किए जा सकते हैं? इतिहास में यह धारणा बनाई गई कि मुग़ल शासकों ने भारत की संस्कृति और समाज को समृद्ध किया। यह बात आंशिक रूप से सही हो सकती है, लेकिन यह भी सच है कि उनके शासन में कई कुरीतियाँ थीं: सत्ता के लिए रक्तपात और अत्याचार। धार्मिक असहिष्णुता (विशेषकर औरंगज़ेब के शासनकाल में)। प्रशासनिक भेदभाव और जातिवाद। अगर कोई यह कहता है कि मुग़लों ने कला, स्थापत्य, संगीत और साहित्य को बढ़ावा दिया, तो यह भी स्वीकार करना होगा कि उनके शासन में समाज के निचले तबके (जिसमें पसमांदा भी शामिल थे) का शोषण हुआ।
4. पसमांदा मुस्लिम समाज के लिए ऐतिहासिक शिक्षा- आज पसमांदा मुस्लिम समाज को मुग़ल शासकों से अपनी ऐतिहासिक दूरी बनाए रखनी चाहिए और अपनी असली पहचान को पुनः स्थापित करना चाहिए। पसमांदा मुसलमानों को यह समझना होगा कि वे इस देश के मूल निवासी हैं और उन्हें अपनी विरासत को बाहरी शासकों से जोड़ने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें जातिगत और वर्गीय शोषण के खिलाफ संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए। इतिहास के नायक और खलनायक दोनों पक्षों को निष्पक्ष रूप से देखना आवश्यक है। मुग़ल शासक भारत के लिए न तो संपूर्ण रूप से अच्छे थे और न ही संपूर्ण रूप से बुरे। उन्होंने कुछ सकारात्मक कार्य किए, लेकिन उनके शासन में वर्गीय भेदभाव, सत्ता के लिए षड्यंत्र, और आर्थिक व सामाजिक असमानता भी देखी गई। पसमांदा मुस्लिम समाज को यह समझने की ज़रूरत है कि मुग़ल शासन उनके उत्थान के लिए नहीं था, बल्कि वह एक राजशाही सत्ता थी, जो विशेष वर्गों के हितों की रक्षा करती थी। इसलिए, पसमांदा समाज को अपनी असली पहचान को अपनाकर, सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा में काम करना चाहिए। यह विश्लेषण इतिहास के एक निष्पक्ष दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है और पसमांदा समाज को अपनी वास्तविक स्थिति को समझने की प्रेरणा देता है।