पसमांदा मुस्लिम समाज: आत्मनिर्भरता की ओर एक नई शुरुआत

परिचय- पसमांदा मुस्लिम समाज, जो भारतीय मुस्लिम समाज का 85% से अधिक हिस्सा है, लंबे समय से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार रहा है। इस उपेक्षा का मुख्य कारण अशरफ वर्ग (सैयद, शेख, पठान, मुगल आदि) का सत्ता पर प्रभुत्व रहा है। अशरफ उलमा, बुद्धिजीवी, और राजनेताओं ने पसमांदा समाज को धार्मिक और राजनीतिक रूप से नियंत्रित किया, उनका वोट हासिल कर अपने निजी लाभ के लिए सौदेबाजी की। आज जब कुछ हिंदू संगठन पसमांदा समाज को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे हैं, तो अशरफ वर्ग में बेचैनी स्पष्ट है।

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज जैसे संगठन इस परिस्थिति में पसमांदा समाज के लिए एक नई राह दिखा रहे हैं। यह संगठन पसमांदा समाज को उनकी शक्ति, अधिकार और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ राष्ट्रीयता को सर्वोपरि मानने पर जोर दे रहा है।

अशरफ वर्ग द्वारा पसमांदा का शोषण

1. धार्मिक शोषण: अशरफ उलमा ने फतवों और धार्मिक उपदेशों के माध्यम से पसमांदा समाज को सदियों तक नियंत्रित किया। पसमांदा को सिखाया गया कि उनकी भूमिका केवल धार्मिक कर्तव्यों का पालन करना है, जबकि अशरफ वर्ग ने धार्मिक नेतृत्व के नाम पर सामाजिक और आर्थिक संसाधनों पर कब्जा किया।

2. राजनीतिक उपेक्षा: अशरफ राजनेताओं ने पसमांदा समाज को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने पसमांदा समाज को “मुस्लिम” के समग्र संदर्भ में प्रस्तुत किया, जिससे उनकी विशिष्ट समस्याओं को कोई मंच नहीं मिला। पसमांदा की समस्याओं को हल करने के बजाय, उन्होंने अपने पद और प्रभाव का लाभ केवल अपने समुदाय के लिए उठाया।

3. शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ापन: अशरफ वर्ग ने शिक्षा और आर्थिक संसाधनों पर अपना वर्चस्व बनाए रखा। पसमांदा समाज को उनके सामाजिक और आर्थिक उत्थान के साधनों से वंचित रखा गया, ताकि वे हमेशा निर्भर बने रहें।

आज की स्थिति और अशरफ वर्ग की बेचैनी

आज जब कुछ हिंदू संगठन पसमांदा समाज को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे हैं, तो अशरफ वर्ग इस बदलाव से परेशान है। इसका मुख्य कारण यह है कि:

1. पसमांदा का आत्मनिर्भर बनना: पसमांदा समाज अब धर्म और जाति के नाम पर दिए गए झूठे वादों से भ्रमित नहीं हो रहा। वे अब अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझ रहे हैं।

2. अशरफ वर्ग की पकड़ कमजोर होना: पसमांदा समाज की राजनीतिक चेतना बढ़ने के साथ, अशरफ वर्ग के वर्चस्व को चुनौती मिल रही है। फतवों और धार्मिक आदेशों की वैधता पर सवाल उठने लगे हैं।

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज की भूमिका: ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज एक ऐसा संगठन है, जो पसमांदा समाज को जागरूक और सशक्त बनाने के लिए कार्यरत है। यह संगठन न केवल पसमांदा समाज को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक कर रहा है, बल्कि यह भी सिखा रहा है कि राष्ट्रहित और समाजहित में विवेकपूर्ण निर्णय कैसे लिया जाए।

1. राष्ट्रीयता को सर्वोपरि मानना: महाज का मानना है कि धर्म से अधिक महत्वपूर्ण राष्ट्रीयता है। एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए पसमांदा समाज को अपनी भूमिका समझनी होगी।

2. धार्मिक नियंत्रण का विरोध: महाज ने साफ किया है कि पसमांदा समाज को किसी भी अशरफ उलमा या बुद्धिजीवी के फतवे पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। पसमांदा समाज को अपने विवेक का उपयोग करके अपने और अपने बच्चों के भविष्य के लिए सही निर्णय लेना चाहिए।

3. राजनीतिक चेतना का प्रसार: महाज चुनावों के समय पसमांदा समाज को कट्टरता और धार्मिक उन्माद से दूर रहने की सलाह देता है। संगठन यह स्पष्ट करता है कि जो भी नेता पसमांदा समाज के उत्थान के लिए ठोस काम करेगा, पसमांदा समाज को उसी का समर्थन करना चाहिए।

आगे का रास्ता: पसमांदा समाज के लिए एक नई दृष्टि

1. शिक्षा पर ध्यान: शिक्षा ही वह साधन है, जो पसमांदा समाज को सशक्त बना सकता है। पसमांदा समाज को अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने और उन्हें ज्ञान से सशक्त बनाने पर ध्यान देना चाहिए।

2. राजनीतिक आत्मनिर्भरता: पसमांदा समाज को अपनी राजनीतिक ताकत को पहचानना होगा और ऐसे नेताओं का समर्थन करना होगा, जो उनकी समस्याओं को समझते हैं और उनके समाधान के लिए प्रतिबद्ध हैं।

3. धार्मिक कट्टरता से बचाव: धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति को समझने और उसका विरोध करने की जरूरत है। धार्मिक फतवों और आदेशों का पालन तभी करना चाहिए, जब वे पसमांदा समाज के व्यापक हित में हों।

4. सामाजिक एकता: पसमांदा समाज के विभिन्न जातियों और समूहों को संगठित होकर अपनी लड़ाई लड़नी होगी। केवल एकजुटता से ही वे अपनी आवाज को प्रभावी बना सकते हैं।

निष्कर्ष: पसमांदा मुस्लिम समाज अब बदलाव के दौर से गुजर रहा है। अशरफ वर्ग द्वारा सदियों तक शोषित और उपेक्षित रहने के बाद, पसमांदा समाज अपनी आवाज को पहचान रहा है। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज जैसे संगठन इस जागरूकता और सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह समय पसमांदा समाज के लिए आत्मनिर्भरता और विवेक का है। उन्हें धर्म और जाति के नाम पर बांटने वालों से सतर्क रहकर अपने और अपने बच्चों के भविष्य के लिए सही निर्णय लेना होगा। जब पसमांदा समाज अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को पूरी तरह समझेगा, तभी वह अपनी खोई हुई पहचान और गरिमा को पुनः प्राप्त कर सकेगा।

मोहम्मद यूनुस
मुख्य कार्यकारी अधिकारी
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