भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर: एक सादगी और ईमानदारी का प्रतीक

कर्पूरी ठाकुर भारतीय राजनीति में एक ऐसी शख्सियत के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने अपनी सादगी, ईमानदारी, और जनता के प्रति समर्पण से राजनीति को नई ऊंचाई दी। वे उन दुर्लभ नेताओं में से एक थे, जो राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करने के बाद भी अपनी जड़ों से जुड़े रहे। उनकी 101वीं जयंती पर, हम न केवल उनके योगदान को याद करते हैं बल्कि उनके सिद्धांतों और विचारों को आत्मसात करने का प्रण लेते हैं।

कर्पूरी ठाकुर: संघर्ष से सफलता तक का सफर- कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव (अब कर्पूरीग्राम) में हुआ। एक साधारण नाई परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने गरीबी और संघर्ष के बीच अपनी राह बनाई। उनके पिता की सीमित आय के बावजूद, उन्होंने पढ़ाई की और अपने समाज के लिए कुछ करने का सपना देखा। उन्होंने राजनीति में कदम स्वतंत्रता संग्राम के समय रखा और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेते हुए जेल गए। इसके बाद उन्होंने खुद को समाजवादी राजनीति में समर्पित कर दिया। वे डॉ. राममनोहर लोहिया के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे।

मुख्यमंत्री और जननेता के रूप में योगदान- कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री दो बार (1970-71 और 1977-79) बने। उनकी राजनीति का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर और उपेक्षित वर्गों का उत्थान करना था। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक निर्णय लिए, जिनमें पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण, शिक्षा में सुधार, और उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देना शामिल था। उनकी सरकार में शिक्षा मंत्री गुलाम सरवर का विशेष योगदान उल्लेखनीय है। सरवर साहब ने बिहार में मैट्रिक तक की शिक्षा को मुफ्त करने के लिए संघर्ष किया। कर्पूरी ठाकुर ने इस पहल का समर्थन करते हुए शिक्षा को गरीब और पिछड़े वर्गों तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया। यह कदम न केवल सामाजिक समानता की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ, बल्कि बिहार में शैक्षिक जागरूकता को भी बढ़ावा दिया।

उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा- कर्पूरी ठाकुर के शासनकाल में बिहार ने उर्दू भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया। यह निर्णय न केवल मुस्लिम समुदाय के लिए बल्कि उन सभी के लिए महत्वपूर्ण था, जिनकी सांस्कृतिक और साहित्यिक पहचान उर्दू से जुड़ी थी। इसके बाद, मुसलमानों की बस्तियों में सरकारी उर्दू विद्यालय खुलने शुरू हुए, जिससे शैक्षिक अवसर बढ़े और समुदाय में एक नई उम्मीद जगी।

सादगी और ईमानदारी का जीवन- कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी और सादगी उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी। मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने अपने जीवन को सामान्य बनाए रखा। वे हमेशा जनता के लिए सुलभ थे और उनकी समस्याओं को अपनी प्राथमिकता मानते थे। उनकी सादगी का उदाहरण यह था कि मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने कभी सरकारी सुविधाओं का निजी उपयोग नहीं किया।

कर्पूरी ठाकुर और उनकी विरासत- आज भी बिहार के समस्तीपुर, दलसिंहसराय, रोसड़ा, उजियारपुर, और ताजपुर जैसे क्षेत्रों में बच्चे-बच्चे उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के चर्चे करते हैं। यहां तक कि उनके धुर-विरोधी भी उनके नेतृत्व और विचारों की तारीफ किए बिना नहीं रहते थे।कर्पूरी ठाकुर की राजनीति केवल सत्ता के लिए नहीं थी; यह समाज के कमजोर वर्गों को मुख्यधारा में लाने का एक मिशन था। उनके आदर्श और काम आज भी हमारे लिए प्रेरणा हैं। कर्पूरी ठाकुर का जीवन हमें यह सिखाता है कि सादगी और ईमानदारी से बड़ी कोई ताकत नहीं है। उनके आदर्शों और सिद्धांतों पर चलकर हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। उनकी 101वीं जयंती पर, आइए हम उनके संघर्षों और उपलब्धियों को याद करें और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने का संकल्प लें। “कर्पूरी ठाकुर केवल एक नाम नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, सादगी, और मानवता का प्रतीक हैं।”