पसमांदा मुस्लिम समाज उनकी सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक स्थिति

पसमांदा मुस्लिम समाज और उनकी सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक स्थिति को समझने के लिए भारतीय मुस्लिम समाज की संरचना, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, और वर्तमान चुनौतियों पर गहराई से विचार करना आवश्यक है। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ (AIPMM) पसमांदा मुस्लिम समाज के मुद्दों को उठाने और सामाजिक न्याय, समानता, तथा इस्लाम के मूल सिद्धांतों पर आधारित दृष्टिकोण को रेखांकित करने वाला एक महत्वपूर्ण संगठन है। यह लेख पसमांदा मुस्लिम समाज की स्थिति, उनके संघर्ष, AIPMM की भूमिका, और सामाजिक-आर्थिक सुधार की दिशा में उनके प्रयासों को विस्तार से प्रस्तुत करता है।
पसमांदा मुस्लिम समाज: एक जातीय समूह और सामाजिक न्याय की मांग

‘पसमांदा’ की परिभाषा और संरचना- ‘पसमांदा’ शब्द फारसी मूल का है, जिसका अर्थ है “जो पीछे छूट गए” या “दबे-कुचले लोग”। भारतीय मुस्लिम समाज में पसमांदा उन समुदायों को संदर्भित करता है जो सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं। इसमें मुख्य रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), और अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणियों में आने वाले मुस्लिम समुदाय शामिल हैं। इनमें अंसारी (बुनकर), मंसूरी (कपड़ा व्यापारी), कुरैशी (कसाई), सलमानी (नाई), बखो, धोबी, लालबेगी, मीरासी, बंजारा, तड़वी आदि शामिल हैं। ये समुदाय भारतीय मूल के हैं और इन्हें अजलाफ (पिछड़े मुस्लिम) और अरज़ाल (दलित मुस्लिम) के रूप में भी जाना जाता है।

भारतीय मुस्लिम समाज में जातीय संरचना स्पष्ट रूप से मौजूद है, भले ही कुछ लोग इसकी उपस्थिति को नकारते हों। मुस्लिम समाज को तीन प्रमुख वर्गों में बांटा जाता है:
1. अशरफ: उच्च वर्ग के मुस्लिम, जो सैय्यद, शेख, पठान, और मुगल जैसे समुदायों से आते हैं। ये समुदाय विदेशी मूल (अरब, तुर्क, अफगान) का दावा करते हैं और मुस्लिम समाज का लगभग 15% हिस्सा हैं।
2. अजलाफ: सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर मुस्लिम समुदाय, जैसे अंसारी, कुरैशी, सलमानी आदि, जो पेशेवर या कारीगरी से जुड़े हैं।
3. अरज़ाल: सबसे निचले सामाजिक स्तर पर मौजूद दलित मुस्लिम समुदाय, जैसे धोबी, लालबेगी, मीरासी आदि।

पसमांदा आंदोलन इन अजलाफ और अरज़ाल समुदायों को एकजुट करता है, जो भारतीय मुस्लिम समाज की कुल आबादी का लगभग 85% हिस्सा हैं। यह आंदोलन इन समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने और उनके हक-अधिकारों की रक्षा करने के लिए समर्पित है।

पसमांदा समाज की ऐतिहासिक उपेक्षा- पसमांदा मुस्लिम समाज की उपेक्षा का इतिहास स्वतंत्रता से पहले का है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति का विरोध करने वाले नेताओं, जैसे अब्दुल कय्यूम अंसारी, मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी, नियमितुल्लाह अंसारी, और भैयाजी कुरैशी ने पसमांदा हितों की वकालत की। उन्होंने मोमिन कॉन्फ्रेंस जैसे संगठनों के माध्यम से मुस्लिम समाज में सामाजिक समानता की मांग उठाई। 1980 के दशक में, महाराष्ट्र में अखिल भारतीय मुस्लिम ओबीसी संगठन ने पसमांदा मुस्लिमों को ओबीसी सूची में शामिल करने की लड़ाई लड़ी, जिसके परिणामस्वरूप कई समुदायों को आरक्षण का लाभ मिला। 1990 के दशक में, डॉ. एजाज अली, अली अनवर, और शब्बीर अंसारी जैसे नेताओं ने इस आंदोलन को और बल प्रदान किया।

पसमांदा विमर्श को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर लाने का मुख्य श्रेय भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को जाता है। उन्होंने विभिन्न मंचों, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अन्य सरकारी मंचों के माध्यम से पसमांदा मुस्लिम समाज के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया। उनकी सरकार ने पसमांदा समाज को राजनीतिक हिस्सेदारी प्रदान करने की दिशा में कदम उठाए हैं, जैसे पसमांदा नेताओं को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करना। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ (AIPMM) को उम्मीद है कि श्री नरेन्द्र मोदी जी भविष्य में पसमांदा समाज के हित में और भी प्रभावी कदम उठाएंगे, जिससे उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीतिक हिस्सेदारी, आर्थिक विकास, और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा मिलेगा।

हालांकि, अशरफ मुस्लिम वर्ग ने पसमांदा समाज को हमेशा हाशिए पर रखा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, और अन्य बड़े मुस्लिम संगठनों, जो वास्तव में अशरफ-प्रधान हैं, में पसमांदा प्रतिनिधित्व नगण्य है। इन संगठनों ने पसमांदा समाज को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास की उपेक्षा की।

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ (AIPMM) की भूमिका- ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ की स्थापना 1998 में अली अनवर ने पटना में की थी। हालांकि, अली अनवर के एनडीए गठबंधन द्वारा राज्यसभा सांसद बनाए जाने के बाद संगठन की गतिविधियां कमजोर पड़ गईं। इसके बाद, सितंबर 2021 में, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र नेता मुहम्मद युनुस ने पसमांदा मुस्लिम समाज के कुछ साथियों के साथ मिलकर जूम मीटिंग के माध्यम से देशभर के पसमांदा मुस्लिम समाज के लोगों से संपर्क स्थापित किया। उन्होंने एडवोकेट परवेज़ हनीफ ( जो मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष है), शरिक अदीब अंसारी (जो मौजूदा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष है ), मुख्तार अंसारी ( जो पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष थे)) , वकार हवारी ( जो पहले राष्ट्रीय प्रधान महासचिव थे), कलाम अंसारी (जो राष्ट्रीय महासचिव थे), (नूरुल एन मोमिन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे) (वसीम राइनी जो प्रदेश अध्यक्ष उत्तर प्रदेश थे), और अन्य साथियों के साथ मिलकर अलीगढ़ में AIPMM को पुनर्जनन और पंजीकृत किया। तब से, संगठन ने 12 राज्यों में अपने कार्य का विस्तार किया और चार राज्यों (लखनऊ उत्तर प्रदेश, फुलवारी शरीफ पटना बिहार, रांची झारखंड एवम् दिल्ली) में कार्यालय स्थापित किए।

AIPMM एक राष्ट्रवादी संगठन है, जो पसमांदा मुस्लिम समाज के सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, और राजनीतिक उत्थान के लिए समर्पित है। इसका मुख्य उद्देश्य पसमांदा समाज को मुख्यधारा में लाना और उनके हक-अधिकारों की रक्षा करना है। संगठन की विचारधारा इस्लाम के मूल सिद्धांतों पर आधारित है, जैसे:
– सुलह हुदैबिया: शांति, सह-अस्तित्व, और बातचीत के माध्यम से विवादों का समाधान।
– मीसाक-ए-मदीना: सामाजिक समानता और विभिन्न समुदायों के बीच समरसता।
– नबी करीम का आखिरी खुतबा: जिसमें मानव अधिकार, समानता, और सामाजिक न्याय पर बल दिया गया है।
– लाकुम दीनाकुम वलियादीन: धार्मिक स्वतंत्रता और सह-अस्तित्व का सिद्धांत।

AIPMM का मानना है कि इस्लाम में “तक्वा” (ईश्वर के प्रति भक्ति और नैतिकता) ही श्रेष्ठता का आधार है, न कि जाति, नस्ल, या सामाजिक स्थिति। संगठन अशरफ मुस्लिम समाज के वर्चस्व को चुनौती देता है और पसमांदा समाज को उनके अधिकार दिलाने के लिए जागरूकता अभियान चलाता है। यह व्यक्तिगत संबंधों (जैसे विवाह) में हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन सामुदायिक और सामाजिक निर्णयों में अशरफ वर्ग के दबदबे का विरोध करता है।

पसमांदा समाज की चुनौतियां और भेदभाव
पसमांदा मुस्लिम समाज को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
1. जातीय भेदभाव: मुस्लिम समाज में जातीय भेदभाव गहराई से व्याप्त है। कई क्षेत्रों में पसमांदा मुस्लिमों को मस्जिदों में प्रवेश करने या अशरफ मुस्लिमों के साथ सामाजिक संबंध (रोटी-बेटी) स्थापित करने की अनुमति नहीं दी जाती। उनके लिए अलग कब्रिस्तान बनाए जाते हैं, जो सामाजिक बहिष्कार का प्रतीक है।
2. राजनीतिक उपेक्षा: 1947 से 2019 तक, भारत में चुने गए 400 मुस्लिम सांसदों में से केवल 60 पसमांदा समाज से थे। यह आंकड़ा मुस्लिम नेतृत्व में अशरफ वर्ग के वर्चस्व को दर्शाता है।
3. आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ापन: सच्चर समिति की 2006 की रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम समाज शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे पिछड़ा है, और इसमें पसमांदा समाज की स्थिति सबसे खराब है। उदाहरण के लिए, पसमांदा समुदायों में साक्षरता दर और उच्च शिक्षा का स्तर बहुत कम है।
4. वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग: वक्फ संपत्तियां, जो गरीब मुस्लिमों के कल्याण के लिए बनाई गई थीं, का लाभ अक्सर अशरफ वर्ग को मिलता है। AIPMM और अन्य पसमांदा संगठन वक्फ संशोधन कानून का समर्थन करते हैं, क्योंकि यह पारदर्शिता लाकर पसमांदा समाज के लिए लाभकारी हो सकता है।
5. अशरफ वर्ग द्वारा अपमान: अशरफ मुस्लिम समाज के कुछ लोग पसमांदा समुदायों को अपशब्दों और भेदभावपूर्ण व्यवहार से संबोधित करते हैं, जो सामाजिक एकता के लिए हानिकारक है।

AIPMM की प्रमुख पहल और उपलब्धियां
AIPMM ने पसमांदा समाज के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
1. शैक्षिक जागरूकता: ‘पसमांदा जागरूकता अभियान’ के तहत संगठन ने सैकड़ों गांवों में शिक्षा का प्रचार किया। यह बच्चों की शिक्षा, महिलाओं की साक्षरता, और उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है।
2. स्वास्थ्य शिविर: AIPMM ने गरीब पसमांदा परिवारों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए कई मुफ्त स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए हैं।
3. जातिगत जनगणना की मांग: संगठन ने मुस्लिम समाज में जातिगत जनगणना की मांग उठाई है ताकि पसमांदा समाज की वास्तविक आबादी और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सटीक आकलन हो सके।
4. सामाजिक समानता का संदेश: AIPMM पसमांदा समाज को यह समझाने का प्रयास करता है कि उन्हें अशरफ वर्ग के सामने नतमस्तक होने के बजाय अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए। यह इस्लाम के मूल सिद्धांत “तक्वा” को श्रेष्ठता का आधार मानता है।
5. राष्ट्रवादी दृष्टिकोण: संगठन भारतीय संविधान और राष्ट्रवादी मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बार-बार दोहराता है। यह पसमांदा समाज को देश की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए कार्य करता है।

पसमांदा और अशरफ के बीच तुलना और समाधान
आपके कथन में उठाया गया सवाल कि अगर पसमांदा समाज भी जातियों को तरजीह देता है, तो वह अशरफ समाज से कैसे अलग है, बहुत महत्वपूर्ण है। AIPMM का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि संगठन जातियों को बढ़ावा नहीं देता, बल्कि जातीय भेदभाव को समाप्त करने और सामाजिक समानता की वकालत करता है। यह संगठन अशरफ समाज से उनकी ऐतिहासिक गलतियों को स्वीकार करने और सुधार करने की मांग करता है। इन गलतियों में शामिल हैं:
– पसमांदा समाज को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करना।
– उनकी शिक्षा और आर्थिक प्रगति में बाधा डालना।
– धार्मिक संस्थानों, जैसे मस्जिदों और वक्फ बोर्ड, में उनकी भागीदारी को सीमित करना।
– पसमांदा समुदायों के प्रति अपमानजनक व्यवहार और अपशब्दों का प्रयोग।

AIPMM का मानना है कि मुस्लिम समाज को इस्लाम के मूल सिद्धांतों, विशेष रूप से नबी करीम के आखिरी खुतबे, को अपनाना चाहिए, जिसमें कहा गया है: “कोई अरब गैर-अरब पर, कोई गोरा काले पर, और कोई अमीर गरीब पर श्रेष्ठ नहीं है, सिवाय तक्वा के।” संगठन अपशब्दों या टकराव का समर्थन नहीं करता, बल्कि संवाद, सहयोग, और सुधार की राह अपनाता है। यह चाहता है कि अशरफ समाज अपनी गलतियों को स्वीकार करे और पसमांदा समाज के साथ मिलकर सामाजिक-आर्थिक समानता की दिशा में काम करे।

पसमांदा मुस्लिम समाज भारतीय मुस्लिम आबादी का सबसे बड़ा और सबसे उपेक्षित हिस्सा है। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ जैसे संगठन इस समाज को जागरूक करने, उनके हक-अधिकारों की रक्षा करने, और सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। यह आंदोलन न केवल मुस्लिम समाज के भीतर सुधार की मांग करता है, बल्कि भारतीय संविधान और राष्ट्रवादी मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। पसमांदा समाज को सशक्त बनाने के लिए निम्नलिखित कदम महत्वपूर्ण हैं:
– शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार।
– जातिगत जनगणना के माध्यम से पसमांदा समाज की वास्तविक स्थिति का आकलन।
– वक्फ संपत्तियों के पारदर्शी और समान उपयोग को सुनिश्चित करना।
– पसमांदा समाज को राजनीतिक और धार्मिक नेतृत्व में उचित प्रतिनिधित्व देना।

अंततः इस्लाम के मूल सिद्धांतों, विशेष रूप से तक्वा और सामाजिक न्याय, को अपनाकर ही मुस्लिम समाज में एकता, समृद्धि, और समानता लाई जा सकती है। AIPMM और अन्य पसमांदा संगठन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं, जो न केवल मुस्लिम समाज, बल्कि पूरे भारतीय समाज को अधिक समावेशी और न्यायपूर्ण बनाने में योगदान दे रहे हैं।

 

मुहम्मद युनुस

मुख्य कार्यकारी अधिकारी सीईओ