पसमांदा मुसलमान विशेषांक। पसमांदा मुसलमान– ऐतिहासिक और समकालीन परिपेक्ष में, पसमांदा मुसलमान का इतिहास सामाजिक राजनीतिक परिस्थितियों और उनके आने वाले चुनौतियां का गठन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
डॉ अयूब राईन द्वारा पसमांदा समुदाय ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन उसकी इस कार्य को उचित स्थान नहीं मिल सका।
देव राष्ट्र के सिद्धांत ने पसमांदा मुस्लिम मोमिन कॉन्फ्रेंस के संघर्ष ने पसमांदा मुस्लिम की समस्या को और जटिल बना दिया, पाकिस्तानी समर्थक विदेशी मुसलमान एवं देसी मुसलमान के विचार को सामने ला दिया। पसमांदा मुसलमान की सामाजिक और राजनीतिक पहचान को लेकर सरदार पटेल एवं मौलाना आजाद के दृष्टिकोण में बुनियादी भिन्नताएं थी। जहां पटेल पसमांदा की हालत को रोजगार उन्मुख करना चाहते वहीं मौलाना आजाद ने धार्मिक एकता एवं धार्मिक शिक्षा पर बल देते हुए सामाजिक न्याय से पसमांदा को पीछे धकेल दिया।
डॉ साबिर जमाल अंसारी एवं डॉ प्रदीप के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि इन नेताओं की दृष्टिकोण का पसमांदा मुसलमान पर गहरा प्रभाव असर पड़ा।
समाज के भीतर अशरफ अजलाफ,अरजल के विभाजन पर प्रोफेसर अबू हुरैरा की टिप्पणी उसमें पसमांदा मुसलमान और सामाजिक संरचना की जटिलता का उजगार करता है वह संवेदनशील मुद्दा बनकर उभरा है। संविधान सभा में पृथक निर्वाचन बनाम आरक्षण पर श्री राम बहादुर राय ने भी पक्ष प्रस्तुत किया है वह आज भी प्रासंगिक है।
डॉक्टर औहिदिन (असम) का लेख कई आयामों पर सोचने को मजबूर करता है। डॉक्टर अलीशा बानो के अध्ययन मुस्लिम महिलाओं की विशेष परिस्थितियों और संघर्ष को उजागर किया है। मुस्लिम लीग की दो राष्ट्रीय सिद्धांत के विरोध अल्लाह बख्श सुमरो के पहले शहादत पर डॉक्टर रोहिल अहमद का आलेख प्रकाश डालता है जो पढ़ने लायक़ है आशीष शुक्ला ने पसमांदा समाज के प्रतिनिधित्व की खोज का प्रयास किया है।
आधुनिक राजनीति में माननीय आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री ने पसमांदा मुसलमान के संबंध में सचर आयोग का अध्ययन किया और हैदराबाद, भुनेश्वर एवं दिल्ली के जनसभाओं में अपने कार्यकर्ताओं के बीच पसमांदा मुसलमानों समस्याओं का उल्लेख करते हुए विश्व व्यापक बनाया।
हिंदी साहित्य में डॉक्टर कहकशां प्रवीन की लेख पढ़ने लायक़ है
,। अतः पसमांदाओं की पहचान संघर्ष और उनकी स्थिति को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण से भी अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है इसलिए मंथन का यह विशेषण न केवल आधुनिक दृष्टिकोण से बलिक समग्र भारतीय समाज के बेहतर समझ के लिए भी आवश्यक।
डॉ कलीम अंसारी
राष्ट्रीय महासचिव
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज।