बंदे मातरम् और जिहाद पर दिए बयान को महाज़ ने बताया नुकसानदेह
विवादित बयान पसमांदा समाज के हितों के विरुद्ध
बयान से तनाव बढ़ा, पसमांदा मुद्दे दबे
पसमांदा के असली मुद्दों पर क्यों चुप्पी?
भावनात्मक मुद्दों से समाज का नुकसान
शिक्षा, रोजगार और 341 हटाने पर ध्यान दें नेता
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने भोपाल में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के कार्यक्रम के दौरान अमीर-ए-जमात मौलाना महमूद मदनी द्वारा “बंदे मातरम्” और “जिहाद” पर दिए गए बयान का खंडन किया है। महाज़ का कहना है कि यह बयान गैर-ज़रूरी, अनुपयोगी और पसमांदा समाज के हितों के विरुद्ध है। इससे देश की पहले से तनावपूर्ण परिस्थितियाँ और भड़कती हैं तथा उन ताकतों को फ़ायदा मिलता है जो लंबे समय से मुस्लिम समुदाय, खासकर पसमांदा मुसलमानों, के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाते रहे हैं। यह बयान समाज के वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने वाला और आत्मघाती जैसा है।
महाज़ का कहना है कि “बंदे मातरम्” को बार-बार धार्मिक विवादों में घसीटना केवल भ्रम फैलाता है। यह राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है और उसका सम्मान करना हर नागरिक का नैतिक दायित्व है, लेकिन इसे धर्म के संदर्भ में खड़ा कर देने से किसी को लाभ नहीं होता, बल्कि नुकसान अधिक होता है, विशेषकर पसमांदा समाज को। जिस धरती पर हम रहते हैं और जिससे जीवन संचालित होता है, उसे मां कहने में किसी भी धर्म को आपत्ति नहीं हो सकती—चाहे इसे संस्कृत में कहा जाए या उर्दू में “मां तुझे सलाम” कहा जाए। महाज़ का कहना है कि इस बहस से समाज का कोई भला नहीं होता।
इसी तरह “जिहाद” शब्द को बिना स्पष्ट परिभाषा के सार्वजनिक मंचों पर इस्तेमाल करना भी नुकसानदेह है। यदि आशय अन्याय के खिलाफ खड़ा होने से है, तो इसे स्पष्ट रूप से कहना चाहिए, लेकिन केवल “जिहाद” शब्द बोल देने से मीडिया और कट्टर समूह इसे गलत अर्थ में पेश करते हैं, जिससे समाज में गलतफहमियाँ फैलती हैं और सबसे अधिक नुकसान पसमांदा समाज को झेलना पड़ता है।
महाज़ ने यह भी सवाल उठाया कि इतने बड़े मंच और संसाधन होने के बावजूद पसमांदा समाज की शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, छात्रवृत्ति, आवास और सामाजिक न्याय जैसे असली मुद्दों पर जमीयत या मदनी परिवार क्यों बात नहीं करते। वैज्ञानिक सोच, आधुनिक शिक्षा और सरकारी जनकल्याण योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाने जैसी जरूरतों पर भी चुप्पी साधी जाती है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि अब तक किसी ने संविधान के आर्टिकल 341 पर लगे धार्मिक प्रतिबंध को हटाने के लिए आवाज़ क्यों नहीं उठाई—जो कि पसमांदा समाज के लिए सबसे बड़ी संवैधानिक असमानता है। हिंदू धर्म में अनुसूचित जाति का हक रखने वाला व्यक्ति यदि इस्लाम या ईसाई धर्म अपना ले तो उसके अधिकार समाप्त हो जाते हैं, जबकि उसकी जाति खत्म नहीं होती। यह भेदभाव सीधे पसमांदा मुसलमानों के खिलाफ जाता है, लेकिन इसके विरुद्ध कोई आंदोलन नहीं किया गया।
महाज़ का कहना है कि पसमांदा समाज की प्राथमिकताएँ भावनात्मक मुद्दे नहीं, बल्कि विकास, शिक्षा और सामाजिक न्याय हैं। समाज को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट, रोजगार के अवसर, सरकारी योजनाओं तक पहुंच, स्वास्थ्य सेवाएँ, समान प्रतिनिधित्व और आर्टिकल 341 के धार्मिक प्रतिबंध को हटाने की जरूरत है—न कि ऐसे बयान जिनसे समाज में तनाव बढ़े और धार्मिक-राजनीतिक लाभ उठाने वालों को अवसर मिले।
अंत में महाज़ ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम समाज को समझना होगा कि नारों और धार्मिक विवादों से तरक्की नहीं मिलती। असली प्रगति शिक्षा, रोजगार और संवैधानिक अधिकारों की प्राप्ति से आती है। इसलिए नेतृत्व को विवादित बयानों से दूरी बनाकर राष्ट्र निर्माण की रचनात्मक दिशा में कार्य करना चाहिए और पसमांदा समाज के वास्तविक विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए। पसमांदा मुसलमान न राष्ट्र के खिलाफ हैं न किसी धर्म के—वे केवल बराबरी, अवसर और सम्मान की मांग कर रहे हैं।


अगर देश में मुसलमानो पर जुल्म बढ़ेगा जेहाद होगा में महमूद मदनी के बयान का विरोध कर रहा हूं,जेहाद परिवार में बच्चों को सही तरीके से शिक्षा तालीम देना और घर को चलाना ये भी जेहाद होता है मौलाना महमूद मदनी के बयान का खंडन करता हूं इसतरह का बयान देश में नफरत फैलाने वाला है और आपस में भाईचारा को दीवार कि तरह है इस तरह के बयान पर मदनी पर कार्यवाही होनी चाहिए।।। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ओबीसी सलीम गरासिया प्रदेश अध्यक्ष गुजरात 🙏