मौलाना अली हुसैन “आसिम बिहारी” (15 अप्रैल 1890 – 6 दिसंबर 1953)
मौलाना अली हुसैन “आसिम बिहारी” का जन्म 15 अप्रैल 1890 को बिहार के नालंदा जिले के बिहारशरीफ के खासगंज मोहल्ले में एक धार्मिक और गरीब पसमांदा बुनकर परिवार में हुआ था। उन्होंने 16 वर्ष की आयु में कोलकाता में उषा कंपनी में काम करना शुरू किया, साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। बाद में, उन्होंने बीड़ी बनाने का कार्य शुरू किया और अपने साथियों के साथ मिलकर सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए ‘दारुल मुजाकरा’ नामक अध्ययन केंद्र की स्थापना की।
1914 में, मात्र 24 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपने गृह नगर में ‘बज़्म-ए-अदब’ नामक साहित्यिक संस्था की स्थापना की, जिसके अंतर्गत एक पुस्तकालय भी संचालित किया गया। 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद, उन्होंने गिरफ्तार नेताओं की रिहाई के लिए एक राष्ट्रव्यापी पत्राचारिक विरोध (पोस्टल प्रोटेस्ट) शुरू किया, जिसमें देशभर से लगभग डेढ़ लाख पत्र और टेलीग्राम वायसराय और रानी विक्टोरिया को भेजे गए। यह अभियान सफल रहा और सभी स्वतंत्रता सेनानियों को जेल से मुक्त कर दिया गया।
1920 में, कोलकाता के तांती बाग में, उन्होंने ‘जमीयतुल मोमिनीन’ नामक संगठन की स्थापना की, जिसका पहला अधिवेशन 10 मार्च 1920 को आयोजित हुआ। अप्रैल 1921 में, उन्होंने ‘अल-मोमिन’ नामक दीवारी अखबार की शुरुआत की, जिसमें बड़े कागज पर लिखकर दीवार पर चिपकाया जाता था ताकि अधिक से अधिक लोग इसे पढ़ सकें।
मौलाना आसिम बिहारी ने पसमांदा मुसलमानों के सामाजिक और शैक्षिक उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित किया। उन्होंने ‘बिहार वीवर्स एसोसिएशन’ की स्थापना की और देशभर में इसकी शाखाएं खोलीं। उनकी सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे बिहार में जन्मे, कोलकाता से आंदोलन की शुरुआत की, और उनकी मृत्यु उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में हुई। 6 दिसंबर 1953 को इलाहाबाद में उनका निधन हुआ।
मौलाना आसिम बिहारी का जीवन संघर्ष और समर्पण की मिसाल है, जिन्होंने पसमांदा समाज के उत्थान के लिए अनवरत कार्य किया