कुरआन की सूरह अल हुजुरात आयत 13 के आइने हिंदुस्तानी तथाकथित नस्लवादी अशरफिया मुस्लिमों पर एक नजर
कुरआन के सुरह 49अल हुजुरात “आयत 13” विरोधी कौन?
إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِندَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ
[ الحجرات: 13]
इसमें कोई शक नहीं कि खुदा के नज़दीक तुम सबमें बड़ा इज्जतदार वही है जो परहेजगार हो बेशक खुदा सब कुछ जानने वाला है इसके विपरित जाकर अशरफिया मुस्लिम ने कुरआन के इस सुरह के साथ बगावत की,
एशियाई मुस्लिम समाज की हकीकत एक नजर में
मुस्लिम समाज में जाति व्यवस्था एक विवादास्पद और जटिल विषय है। इस्लामिक सिद्धांतों के अनुसार, इस्लाम में जाति, वर्ण या सामाजिक श्रेणियों का कोई स्थान नहीं है और सभी मुसलमान बराबर होते हैं। हालांकि, एशियाई तथाकथित अशराफिया मुस्लिम समाज में यह व्यवहारिक रूप में अलग है।
इतिहास बताता है कि जब 12वीं शताब्दी में मुस्लिम विजेता भारतीय उपमहाद्वीप में आए, तो वे पहले से ही वर्गों में विभाजित थे। उन्होंने भारतीय मुस्लिम समाज में उच्च और निम्न जातियों की धारणा को अपनाया। यह विभाजन मुख्यतः तीन श्रेणियों में होता है:
- अशरफ – जो खुद को उच्च वर्ग का मानते हैं और विदेशी मूल के वंशज हैं, जैसे कि सैयद, शेख, पठान आदि।
- अजलाफ – जो परिवर्तित उच्च जातियों से आते हैं।
- अरज़ल – जो निम्न जातियों और अछूत जातियों से परिवर्तित हुए हैं और अक्सर समाज में सबसे निचले स्तर पर माने जाते हैं
यह जातिगत भेदभाव सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी देखा जा सकता है, जैसे कि उच्च जातियों के मुसलमान सरकारी नौकरियों और संसदीय प्रतिनिधित्व में अधिक हावी होते हैं। निचली जातियों के मुसलमान अक्सर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का सामना करते हैं। इसके अलावा, निचली जातियों को कभी-कभी नियमित कब्रिस्तानों में दफनाने की अनुमति नहीं दी जाती और उन्हें कब्रिस्तानों के बाहर अपने मृतकों को दफनाना पड़ता है
यहां तक कि पसमांदा मुसलमान (निचली जातियों के मुसलमान) इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन समस्या आज भी व्यापक है। कुरान और इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत, व्यवहार में मुस्लिम समाज में जातिगत भेदभाव एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है!
इस मुद्दे को समझने और इसके समाधान के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि इस्लाम की मूल शिक्षाओं के अनुसार पसमांदा मुसलमानों को समानता और न्याय मिल सके।
✍ सरफराज अंसारी(Sarfaraz Ansari)