क्या वक्फ मज़हबी मामला है और अनुच्छेद 341 गैर-मज़हबी?
भूमिका: हाल ही में संसद में प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर मुस्लिम समाज में दो स्पष्ट ध्रुव बन गए हैं। एक ओर वे लोग हैं, जो वक्फ से सीधे जुड़े हैं और इस संशोधन का विरोध कर रहे हैं, जबकि दूसरी ओर समाज का एक बड़ा तबका, खासकर पसमांदा मुसलमान, इस पर या तो चुप्पी साधे तमाशा देख रहा है या फिर यह मानकर चल रहा है कि इसका उनसे कोई सीधा लेना-देना नहीं है। लेकिन अगर इस पूरे मामले को तटस्थ दृष्टिकोण से देखा जाए, तो वक्फ संशोधन विधेयक से पसमांदा समाज को होने वाला नुकसान, संविधान के अनुच्छेद 341 में लागू धार्मिक पाबंदी के मुकाबले कुछ भी नहीं है।
अनुच्छेद 341 की असंवैधानिकता और 75 वर्षों का अन्याय- अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों (SC) को मिलने वाले संवैधानिक लाभों से मुसलमानों और ईसाइयों को 10 अगस्त 1950 को एक राष्ट्रपति आदेश (SC आदेश, 1950) के तहत बाहर कर दिया गया। यह एक ऐसा भेदभावपूर्ण निर्णय था, जिसका असर आज भी करोड़ों पसमांदा मुसलमानों की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति पर पड़ा हुआ है।
इस धार्मिक पाबंदी के कारण:
पसमांदा समाज को आरक्षण का लाभ नहीं मिला। उनकी शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति बदहाल रही। सरकारी नौकरियों और प्रतिनिधित्व में उन्हें बराबरी का अवसर नहीं मिला। उनके उत्थान से संबंधित योजनाओं में उन्हें उचित भागीदारी नहीं मिली।
वक्फ संपत्तियों का असली हकदार कौन? – वक्फ संपत्तियां मूल रूप से गरीब और जरूरतमंद मुसलमानों, खासकर पसमांदा समाज के कल्याण के लिए थीं। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन संपत्तियों पर हमेशा समाज के उच्च वर्ग के लोगों का कब्जा रहा।आज जब वक्फ संपत्तियों को लेकर संशोधन विधेयक लाया गया है, तो इसका सबसे अधिक विरोध वही लोग कर रहे हैं, जो वर्षों से इन संपत्तियों का निजी लाभ उठा रहे थे।
वक्फ का असली फायदा किसे मिला?- क्या गरीब पसमांदा मुसलमानों को कभी वक्फ से कोई सीधा लाभ मिला? क्या वक्फ संपत्तियों से स्कूल, अस्पताल, या रोज़गार के अवसर पैदा हुए? क्या कभी वक्फ संपत्तियों का पारदर्शी उपयोग हुआ?
सच्चाई: वक्फ बोर्ड पर क़ब्ज़ा रखने वाले वही लोग हैं, जो सदियों से पसमांदा समाज को हाशिए पर रखकर, उनके नाम पर राजनीति और संपत्तियों का लाभ उठाते आए हैं।
AIMPLB, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ओवैसी, मदनी और बुखारी की असलियत
दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए धरने और विरोध प्रदर्शनों से यह साफ हो गया कि:
1. AIMPLB, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ओवैसी, मदनी, और बुखारी जैसे सियासी-मजहबी ठेकेदारों के लिए “वक्फ संशोधन विधेयक” बड़ा मुद्दा है, लेकिन अनुच्छेद 341 कोई मुद्दा नहीं!
2. इन संगठनों और नेताओं ने आज तक अनुच्छेद 341 की भेदभावपूर्ण धार्मिक पाबंदी हटाने की मांग नहीं उठाई।
3. वक्फ संपत्तियों के लिए सड़कों पर उतरने वाले लोग, SC आरक्षण से मुस्लिम दलितों को बाहर किए जाने पर क्यों खामोश हैं?
4. क्या इनका असली मकसद सिर्फ खुद के फायदे के लिए राजनीति करना है?
पसमांदा समाज को उठाने चाहिए ये सवाल: 1. अगर मुस्लिम समाज की 85% आबादी पसमांदा है, तो इनका नेतृत्व सिर्फ उच्च जाति के कुछ लोग ही क्यों करते हैं?
2. AIMPLB और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कभी पसमांदा समाज के हक के लिए आवाज़ क्यों नहीं उठाई?
3. वक्फ संपत्तियों से गरीब पसमांदा मुसलमानों को क्या फायदा मिला?
4. अगर अनुच्छेद 341 की धार्मिक पाबंदी आपके लिए कोई मुद्दा नहीं, तो पसमांदा समाज को अब जातिवादी और कुनबापरस्त रहनुमाओं की ज़रूरत नहीं।
क्या वक्फ मज़हबी मुद्दा है और अनुच्छेद 341 गैर-मजहबी?
वक्फ: वक्फ संपत्तियां इस्लामी धर्मार्थ कार्यों के लिए थीं, लेकिन इसका पूरा नियंत्रण एक विशेष वर्ग के हाथों में चला गया। यह मजहबी मामला माना जाता है, लेकिन इसका आर्थिक और सामाजिक असर बहुत बड़ा है।
अनुच्छेद 341: अनुच्छेद 341 के तहत SC आरक्षण से केवल मुसलमानों और ईसाइयों को बाहर रखना पूरी तरह असंवैधानिक और धार्मिक भेदभाव का उदाहरण है। यह मज़हबी मामला नहीं बल्कि संवैधानिक समानता और सामाजिक न्याय का मुद्दा है।
निष्कर्ष: अब समय आ गया है कि पसमांदा समाज इन सियासी-मजहबी ठेकेदारों से सवाल करे: ✅ वक्फ संपत्तियों का मुद्दा उठाने वाले अनुच्छेद 341 पर खामोश क्यों हैं?
✅ पसमांदा समाज को इन रहनुमाओं की ज़रूरत नहीं, बल्कि अपने संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई लड़नी होगी।
✅ वास्तविक मुद्दा वक्फ नहीं, बल्कि अनुच्छेद 341 का भेदभावपूर्ण प्रावधान है, जो पसमांदा समाज को सामाजिक और आर्थिक न्याय से वंचित करता है।
अब फैसला आपके हाथ में है:
क्या पसमांदा समाज अब भी इन सियासी-मजहबी ठेकेदारों की गुलामी करेगा?
या फिर अपनी आवाज़ बुलंद कर संविधान में बराबरी के अपने हक की लड़ाई लड़ेगा?
मुहम्मद युनुस
चीफ़ एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़
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