झारखंड के पसमांदा मुस्लमान क्यों करते हैं पलायन?

राशिद अयाज़ (रांची रिपोर्टर)

झारखंड : वर्तमान में, झारखण्ड के पसमांदा मुसलमानों के पास शिक्षा, नौकरियों, महत्वपूर्ण पदों, उद्योग के उद्घाटन, भूमि आदि तक पहुंच नहीं है। दुर्भाग्य से,16 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के पास किसी विशेष व्यवसाय या संगठित क्षेत्र में किसी भी प्रकार का रोजगार नहीं है।

सबसे महत्वपूर्ण भूमिकाएँ संभालने के बाद, अशरफ़ नेताओं और धार्मिक मौलवियों ने एक अखंड मुस्लिम पहचान की कहानी चलाई, जिससे पसमांदा मुसलमानों को अपने जाति-आधारित व्यवसाय छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। पसमांदा मुसलमानों की दुर्दशा समय के साथ खराब होने लगी, क्योंकि उनकी गरीबी और अशिक्षा का स्तर बढ़ गया। अंततः उन्हें अपनी महंगी संपत्ति देने के लिए मजबूर होना पड़ा।

झारखंड के पसमांदा मुस्लमान क्यों करते हैं पलायन?

झारखंड में रोटी के लिए काम करने वाले लोगों का पलायन आम बात है. हर साल लाखों कर्मचारी रोजगार के लिए राज्य से बाहर जाते हैं और विदेश भी जाते हैं. इस दौरान कर्मचारियों के शोषण की खबरें सामने आई हैं. इसके बावजूद कर्मचारी भाग जाते हैं।

झारखंड सरकार के श्रमधन पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा पलायन गिरिडीह जिले से होता है. इसके बाद संथाल के पाकुड़, दुमका और साहिबगंज आते हैं. खूंटी और गुमला में भी यही स्थिति है. श्रम मंत्रालय के संयुक्त श्रम आयुक्त राजेश प्रसाद ने बताया कि 25 अप्रैल तक राज्य में 1 लाख 70 हजार 800 पंजीकृत प्रवासी मजदूर थे उनमें पसमांदा मुसलमानों की संख्या सबसे अधिक थी . 

झारखंड में बेरोजगारी, गरीबी, और भ्रष्टाचार कर रहे हैं मजदूरों को पलायन करने के लिए मजबूर

झारखंड के मजदूरों की डिमांड ना केवल देश के विभिन्न शहरों में है बल्कि विदेश में भी है ऐसे में ये कर्मचारी नौकरी मिलने के बाद घर छोड़ देते हैं. ये कर्मचारी स्थानीय दलालों के शिकार बन जाते हैं, जो बिना किसी नियंत्रण के शहर में घूमते रहते हैं। ऐसे में वे रजिस्ट्रेशन के नियमों का पालन करना उचित नहीं समझते हैं. झारखंड में काम करने वाले ज्यादातर लोग कृषि क्षेत्र में काम करते हैं. धान की फसल के दौरान वे दूसरे राज्यों में चले जाते हैं। ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों की भी बहुतायत है, जो खेती से मौका मिलते ही इस काम में लग जाते हैं। पूरा परिवार इस समय दूसरे राज्य में चला जाता है। सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक कर्मचारी पलायन करते हैं।

झारखंड में पेट की खातिर पसमांदा मुस्लमान मजदूरों का पलायन आम बात है. हर साल लाखों मजदूर रोजी रोजगार के लिए ना केवल दूसरे राज्य की ओर रुख करते हैं बल्कि विदेश तक की यात्रा करते हैं. इस दौरान श्रमिकों के शोषण की घटना खबरों में आती रही हैं. इसके बावजूद मजदूर पलायन करने के लिए मजबूर होते हैं.

हर जिले में प्रवासी श्रमिक सहायता केंद्र

राज्य के हर जिले में प्रवासी मजदूरों की सहायता के लिए प्रवासी श्रमिक सहायता केंद्र खोले गए हैं. इसके अलावे राज्य स्तर पर श्रम विभाग के द्वारा स्वयंसेवी संस्था के सहयोग से सहायता केंद्र बनाए गए हैं. श्रम विभाग के कर्मी मृत्युंजय कुमार झा कहते हैं कि निबंधित प्रवासी मजदूरों को सरकार की विभिन्न योजनाओं का जहां लाभ मिलता है, वहीं सरकार के पास भी इनका रिकॉर्ड रहता है, जिससे विकट परिस्थिति में भी उनके और उनके परिवार तक सहायता पहुंचाई जा सके.

मजदूरों के लिए झारखंड सरकार की योजना

झारखंड असंगठित कर्मकार मृत्यु या दुर्घटना सहायता योजना

मुख्यमंत्री असंगठित श्रमिक औजार सहायता योजना

मातृत्व प्रसुविधा योजना

अंत्येष्टि सहायता योजना

कौशल उन्नयन योजना

उपचार आजीविका सहायता योजना

सिलाई मशीन सहायता योजना

विवाह सहायता योजना

साइकिल सहायता योजना

झारखण्ड में पसमांदा मुसलमानो की हालत इतनी खराब है की वो अपना घर बार, रिश्तेदार , दोस्त व अहबाब सब कुछ छोड़ कर अच्छी तालीम, सेहत , रोज़गार के लिए पलायन करने पर विवश हैं। कितनी सरकारें आयीं कागज़ी नीति बने पर धरातल पर कुछ भी काम नहीं हुआ। झारखण्ड के पसमांदा मुसलमानों के पास शिक्षा, नौकरी, गरीबी सबसे बड़ा मुद्दा है , इसे हल करने में न तो मौजूदा सरकार को या मंत्री , विधायक को रूचि है। इन्ही सब कमियों के कारण पसमांदा मुसलमानों को पलायन होने पर मजबूर होना पड़ रहा है।