पसमांदा मूवमेंट, इस बार राजनीतिक गलियारों में अपना संदेश पहुंचाने में कामयाब :  शमीम अंसारी 

राशिद अयाज़ , रांची रिपोर्टर

shamim-ansari

लखनऊ।  उत्तर प्रदेश।  ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय संयोजक शमीम अंसारी ने कहा है पसमांदा मूवमेंट, इस बार राजनीतिक गलियारों में अपना संदेश पहुंचाने में कामयाब रही है, जो राजनीतिक पार्टियां मुस्लिम को सिर्फ अल्पसंख्यक के चश्मे से देखती थी वो आज मुस्लिम का डिविजन 15%,बनाम 85% के आधार पर आंकलन कर रही हैं। यह बड़ी उपलब्धि है. 

जो मुस्लिम राजनीतिक घराने चुनाव के वक्त बराबरी , और एक सफ़ का नारा लगा कर हमारा वोट लूट कर सालों से मलाई खा रहे थे उनकी जागीरें खतरे में नज़र आ रही हैं, 15% को कोई भी पार्टी ज्यादा भाव नहीं दे रही.

पसमांदा मूवमेंट ने 15% को पीछे धकेल कर रास्ते से एक स्पीड ब्रेकर हटा दिया है मगर अभी जश्न मनाने का वक़्त नहीं है क्योकि ये 15% वाले लोग कुशल सपेरे हैं इनके पिटारे में इतने जहरीले और पुराने सांप मौजूद हैं ये पसमांदा के मजमे में एक सांप छोड़ कर पूरे मजमे को खराब कर सकते हैं लिहाजा उनकी राजनीतिक जमीन इतनी तंग कर दो कि कोई भी पार्टी इन पर यकीन न करे इनके झांसे में न आए.

इस चुनाव के बाद ये 15% वाले लोग बैकवर्ड में जाति कार्ड ले कर आएंगे बस यही एक हथियार बचा है इन पर इससे बचने की जरूरत है. सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर सभी लोग सिर्फ पसमांदा बने रहे जातियों में नहीं बटे तो वो दिन दूर नहीं अब हर राज्य में उम्मीदवार पसमांदा का मूड भांप कर उतारे जाएंगे और पसमांदा लीडर को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दल सर के बल दौड़ते नज़र आएंगे।

पसमांदा कार्यकर्ताओं का तर्क है कि मुसलमानों की धार्मिक  पहचान और मुसलमानों/अल्पसंख्यकों की राजनीति ने केवल उच्च जाति के अशराफ़ मुसलमानों के हितों को प्राथमिकता दी है। वे पसमांदा मुसलमानों के रूप में अपनी सामाजिक पहचान पर जोर देते हैं और उसी रूप में अपनी पहचान की मांग करते हैं। हालांकि पसमांदा आंदोलन का सामाजिक और राजनीतिक विमर्श चर्चा से अनुपस्थित है, लेकिन यह पहला चुनाव है, जिसमें पसमांदा मुसलमानों ने खुद को एक राजनीतिक समुदाय के रूप में इस्तेमाल होते देखा है।