राशिद अयाज़ , रांची रिपोर्टर
लखनऊ , उत्तर प्रदेश। पैगम्बर ए इस्लाम मुहम्मद साहब के सामाजिक सद्भाव, सामाजिक समानता एवं संपूर्ण मानवता के सशक्तिकरण को लक्षित एवं व्यवहृत सिद्धांतों के आधार पर ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ भारतीय संविधान प्रदत्त नियमावली के अंतर्गत पंजीकृत एक सामाजिक संगठन है। तमाम संगठनों की भीड़ में इस संगठन की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि हिन्दू मुस्लिम पैटर्न की राजनीति ने देश, समाज और स्वयं मुस्लिम समुदाय का बहुत नुकसान किया है।
मुस्लिम शब्द को एक ऐसी वस्तु (commodity ) बना दिया गया है जिसे वक्त जरूरत पर मुस्लिम धर्म एवं राजनीति के ठेकेदार बेचते रहते हैं लेकिन विडंबना ये है कि बेचने वाले सब व्यापारी विदेशी मूल के मुसलमान हैं जबकि बिकने वाले सब भारतीय मूल के मुसलमान हैं। भारतीय मूल के मुसलमानों के अधिकार सुरक्षित रहें और वो भारतीय संविधान के अंतर्गत मुख्य धारा के समाज में सम्मिलित हो सकें, इसी पृष्ठभूमि में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ का जन्म एवं उदय होता है।
राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए पसमांदा मुसलमानों को सभी राजनीतिक दलों ने सिर्फ अपने फायदे के लिए वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल तो किया लेकिन पसमांदा मुसलमानों को उनके हाल पर छोड़ दिया. जब भी कुछ देने की बात आई तो मुस्लिम समाज के कुछ तथाकथित ठेकेदारों को रेवड़ी खिला कर इन पसमांदा मुसलमानों को इनके मूल मुद्दों से भटकाने का काम किया.
आजादी के बाद 77 साल मे पसमांदा मुसलमान हाशिये पर आ चुका हैं. आजादी के बाद से पिछले 77 साल में देश व प्रदेशों में राजनीतिक पार्टियों समेत अन्य तथाकथित सेक्युलर दलों ने पसमांदा मुस्लिमों को गुमराह किया है. इन दलों ने अपने फायदे के लिए मुस्लिम समाज का भरपूर इस्तेमाल किया है. सिर्फ वोट बटोरने के लिए मुस्लिम समाज को गुमराह किया जाता है. अब सही समय है कि अपने खोए हुए राजनैतिक सम्मान को वापस लाने, पिछड़ेपन को दूर करने , शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ा जाए.
पिछड़े मुस्लिम समाज को सभी योजनाओं का लाभ पहुंचाते हुए उनके पिछड़ेपन को दूर करने का काम किया जाये. पसमांदा मुस्लिम समाज को अब किसी भी दल के बहकावे में नहीं आना चाहिए. ये पार्टियां सिर्फ़ गुमराह करके अपने फायदे के लिए सिर्फ मुस्लिम समाज का इस्तेमाल करते हैं, और अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं. मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए और आबादी के अनुसार राजनीति में हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।