धर्म और राजनीति का गठजोड़: अल्पसंख्यकों के लिए अभिशाप और बहुसंख्यकों के लिए वरदान

धर्म और राजनीति का संबंध हमेशा से सामाजिक और राजनीतिक बदलावों का कारण रहा है। यह गठजोड़ अक्सर सत्ता के लिए बहुसंख्यकों के हित साधने और अल्पसंख्यकों को हाशिए पर डालने का माध्यम बनता है। इस लेख में धर्म और राजनीति के गठजोड़ से उत्पन्न वैश्विक प्रभावों का विश्लेषण किया गया है।

धर्म और राजनीति का ऐतिहासिक और वैश्विक परिप्रेक्ष्य: धर्म और राजनीति का संगम प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक लोकतंत्रों तक देखा जाता है। यह गठजोड़ सामाजिक स्थिरता और सांस्कृतिक पहचान का आधार बनता है, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी उतने ही गहरे हैं।

1. यूरोप: मध्यकालीन यूरोप में कैथोलिक चर्च ने राजनीतिक सत्ता पर एकाधिकार कर रखा था। प्रोटेस्टेंट सुधार आंदोलन ने इस प्रभुत्व को चुनौती दी, जिससे सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ।

2. मध्य पूर्व: इस्लामी देशों में शरिया कानून ने राजनीति और धर्म को गहराई से जोड़ा। यहां बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय सशक्त है, लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यकों को भेदभाव और असमानता का सामना करना पड़ता है।

3. दक्षिण एशिया: भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में धर्म और राजनीति का संबंध अत्यंत संवेदनशील है। धर्म को सत्ता के साधन के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिए पर धकेला जाता है।

4. पश्चिमी देश: चर्च और राज्य के अलगाव के सिद्धांत के बावजूद, पश्चिमी देशों में ईसाई धर्म का राजनीतिक प्रभाव स्पष्ट है। धार्मिक अल्पसंख्यकों को अक्सर सांस्कृतिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

धर्म और राजनीति का गठजोड़: बहुसंख्यकों के लिए वरदान

धर्म और राजनीति का गठजोड़ बहुसंख्यक समुदायों को शक्ति, पहचान और विशेषाधिकार प्रदान करता है।

1. यूरोप में ईसाई प्रभाव: कई यूरोपीय देशों में ईसाई धर्म से जुड़े त्योहारों को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। इसके विपरीत, अल्पसंख्यक धर्मों के त्योहारों को सीमित महत्व मिलता है।

2. भारत में हिंदुत्व राजनीति: “हिंदू राष्ट्र” की विचारधारा ने बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभुत्व प्रदान किया है। धार्मिक प्रतीकों और परंपराओं को राजनीतिक शक्ति के रूप में उपयोग किया गया।

3. मध्य पूर्व में इस्लामी प्रभुत्व: इस्लामी देशों

में मुस्लिम बहुसंख्यकों को सामाजिक और कानूनी प्राथमिकता दी जाती है। धर्म के आधार पर नीतियां बनाई जाती हैं, जिससे अल्पसंख्यकों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

धर्म और राजनीति का गठजोड़: अल्पसंख्यकों के लिए अभिशाप: धर्म और राजनीति का गठजोड़ अल्पसंख्यकों के लिए असुरक्षा, भेदभाव और हिंसा का कारण बनता है।

1. मध्य पूर्व में गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक: सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों में ईसाई, यहूदी, और बहाई समुदायों को धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है।

2. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक भेदभाव: अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और उनके अधिकारों की अनदेखी आम बात है। धार्मिक आधार पर नीतियां उन्हें शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक अवसरों से वंचित करती हैं।

3. म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिम संकट: बौद्ध बहुसंख्यक शासन के कारण रोहिंग्या मुसलमानों को नरसंहार और जबरन विस्थापन का सामना करना पड़ा।

4. पश्चिमी देशों में इस्लामोफोबिया: 9/11 के बाद पश्चिमी देशों में मुस्लिम समुदायों के प्रति संदेह और भेदभाव बढ़ा। धार्मिक पहनावे और परंपराओं को लेकर उन्हें सामाजिक अस्वीकार्यता झेलनी पड़ी।

धर्म और राजनीति के गठजोड़ का समाधान: वैश्विक दृष्टिकोण

1. धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना: धर्म और राजनीति के बीच स्पष्ट विभाजन सुनिश्चित करना और सभी धर्मों को समान दर्जा देना।

2. अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा: विशेष नीतियों और कानूनों के माध्यम से अल्पसंख्यकों की शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक भागीदारी को सुनिश्चित करना।

3. सांप्रदायिकता का उन्मूलन: धार्मिक असमानता और हिंसा रोकने के लिए सख्त कानून बनाना और संवाद को बढ़ावा देना।

4. वैश्विक मानवाधिकार मानकों का पालन: संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को धार्मिक भेदभाव के मामलों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

धर्म और राजनीति का गठजोड़ बहुसंख्यकों के लिए वरदान और अल्पसंख्यकों के लिए अभिशाप बनता रहा है। यह गठजोड़ विभाजन, असमानता, और हिंसा को बढ़ावा देता है। धर्मनिरपेक्षता, समानता, और मानवाधिकार आधारित नीतियों को अपनाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। धर्म को व्यक्तिगत आस्था तक सीमित रखते हुए मानवता, सद्भाव, और समानता को प्राथमिकता देना आवश्यक है। यही सच्चे धर्म और सही राजनीति का उद्देश्य होना चाहिए।

मोहम्मद यूनुस

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