कैसे आजादी से आजतक पसमांदा मुसलमानों की अवहेलना करता रहा अशराफ समाज
पसमांदा आन्दोलन मुगल काल/अशराफ काल में सर नहीं उठा सका था, क्योंकि मुगल जालिम और पसमांदा विरोधी थे और पसमांदा मुस्लिम समाज से नफ़रत करते थे तथा उनको गुलाम बनाकर रखते थे, परन्तु जब भारत में अंग्रेजों की हुकूमत आई और अंग्रेजी शासन ने कुछ राजनीतिक व सामाजिक सुधार करना शुरु किया तो इससे अशराफ जातियों में एक बेचैनी पैदा हो गई, क्योंकि अशराफ मुस्लिम समाज का मानना था कि अगर भारत में लोकतंत्र आ गया, तो पसमांदा मुस्लिम समाज में जागरूक्ता आयेगी और जिसकी संख्या ज्यादा होगी, उन्हीं को राजनीतिक हिस्सेदारी मिलेगी और वही समाज शासन और प्रशासन में भागीदार बनेंगे।
पहले तो अशराफ बुद्धिजीवियों ने लोकतंत्र का विरोध किया, लेकिन जब बात नहीं बनी, तो पसमांदा मुस्लिम समाज को मसलक, मस्जिद, मदरसों, मजारों आदि में जोड़ना शुरु कर दिया और पसमांदा मुस्लिम समाज को धर्म कर्म में फंसाकर रखने की भरपूर कोशिश की परन्तु पसमांदा आन्दोलनकारियों ने हार नहीं मानी और समाज को निरंतर जगाते रहे। अशरफ मुस्लिम समाज ने पसमांदा आन्दोलन को दबाने तथा पसमांदा मुस्लिम समाज को आंदोलन से दूर करने का भरसक प्रयास किया परन्तु पसमांदा आंदोलन इन्हीं परिस्थितियों में उभरा। जैसे-जैसे जातीय चेतना बढ़ी, वैसे-वैसे कुछ जातियां अपने उत्पीड़न के खिलाफ इकट्ठा होने लगीं। जैसे अब्दुस्समद और अब्दुल लतीफ के नेतृत्व वाली जमीयतुल राइन, भैय्या जी राशिदुद्दीन के नेतृत्व वाली जमीयतुल कुरैश आदि प्रमुख थे। परन्तु मोमिन कान्फ्रेंस उस वक्त सबसे मुखर होकर सामने आई। मोमिन कान्फ्रेंस उस वक्त मुस्लिम लीग के खिलाफ भी खड़ी हुई। मुस्लिम और मोमिन शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं। पर मोमिन कहने से यह पिछड़ों का संगठन नजर आता है और मुस्लिम कहने से अशराफ संगठन। मोमिन कान्फ्रेंस के जनक मौलाना अली हुसैन उर्फ आसिम बिहारी (15 अप्रैल 1890-6 दिसम्बर 1953) मुस्लिम लीग के दो-राष्ट्र सिद्धांत के खिलाफ थे। अब्दुल कय्यूम अंसारी (1 जुलाई 1905 – 18 जनवरी 1973) ने इस आंदोलन को और तेज किया। उन्होंने जिन्ना के ‘दो राष्ट्र’ के खिलाफ खुलकर कांग्रेस को समर्थन भी दिया था और अपने संगठन को कांग्रेस में विलय कर लिया।
जब समय बदलता है, तो सियासत भी बदल जाती है। मुस्लिम लीग के नारे ‘मुस्लिम है तो लीग में आ, पाकिस्तान का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह’ से लड़ने के लिए अब्दुल कय्यूम अंसारी ने कहा ‘ मोमिन (बुनकर, अंसारी) को किसी पाकिस्तान की जरूरत नहीं है।’ पसमांदा मुसलमान आजादी के बाद भी गाँधी जी की गाय और कांग्रेस के बंधुआ मजदूर बने रहे, लेकिन जब मंडल से जाति की बहस छिड़ी, तो नारे बदले ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।’ यह नारे हिंदू समाज में सामाजिक न्याय के नाम पर लगाए जा रहे थे, पर अपनी समकक्ष जातियों पर यह असर डाले बिना नहीं रह सकता था।
मंडल आयोग द्वारा पिछड़े मुसलमानों को ओबीसी में शामिल करने से मुसलमानों के भीतर चल रहे जातिगत अंतर्विरोधों को एक नया आयाम मिला। इससे ‘जाति से जमात की ओर जाने’ की बात समझ में आने लगी। इसी दौरान शब्बीर अंसारी ने महाराष्ट्र राज्य मुस्लिम ओबीसी आर्गेनाइजेशन (बाद में आल इंडिया मुस्लिम ओबीसी आर्गेनाइजेशन) नामक संगठन बनाया परंतु मोमिन कान्फ्रेंस के बाद, बिहार में फिर से सामाजिक न्याय की यह लड़ाई ज्यादा मुखर दिखी। श्री अली अनवर अंसारी और श्री एजाज अली ने मिलकर यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा का गठन किया, परन्तु आपसी सहमति और ताल मेल नहीं होने के कारण अली अनवर अंसारी ने अलग होकर ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज का गठन किया। एजाज अली राइनी और अली अनवर अंसारी का समाज के प्रति प्रतिबद्धता के बजाए राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी। इसलिए दोनो लोगों ने राज्यसभा सांसद बनकर संगठन को पूरी तरह से निष्क्रीय कर दिया। कोरोना काल के दौरान नूरुल एन मोमिन के जरिए मैं मुख्तार अंसारी, वकार हवारी, वसीम अहमद राइनी, कलाम अंसारी एवं शारिक अदीब अंसारी और परवेज़ हनीफ साहब के संपर्क में आया। खाली समय होने के कारण मैंने जूम के जरिए ऑनलाइन मीटिंग शुरू किया और इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए देश के कोने-कोने से पसमांदा मुस्लिम समाज से संपर्क बनाया। इसी बीच परवेज हनीफ, वसीम अहमद राइनी, वकार अहमद हवारी, मुख्तार अंसारी, कलाम अंसारी एवं नूरुल ऐन मोमिन के जरिए मैंने अलीगढ़ में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज का रजिस्ट्रेशन करवा लिया। वकार अहमद हवारी, वसीम अहमद राइनी, मुख्तार अंसारी, कलाम अनसारी, नूरुल ऐन मोमिन आदि लोग संगठन की विचारधारा के विरूद्ध कार्य करना शुरु कर दिया इस लिए संगठन के अन्य पाधिकारियों के राय मशविरे से इन लोगों से माजरत कर लिया गया। इस प्रकार ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज की स्थापना से आज तक नरम-गरम, तेज-धीमा निरन्तर चलता रहा, किंतु साधन-संसाधन विहीन होने व अशराफ तुष्टिकरण के कारण सरकारों व राजनैतिक दलों द्वारा इसे हतोत्साहित करने के कारण ये आंदोलन अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में अक्सर नाकाम ही रहा है।
परंतु कोरोना के बाद श्री परवेज़ हनीफ साहब राष्ट्रिय अध्यक्ष, मुहम्मद युनुस चीफ एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, शरिक अदीब अंसारी कार्यकारी राष्ट्रिय अध्यक्ष, राष्ट्री उपाध्यक्ष, श्री शमीम अंसारी, नफीस मंसूरी, नेहाल अंसारी, सुहैलुद्दीन अंसारी,यूपी के प्रदेश प्रभारी श्री शाहीन अंसारी, झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष डॉ कलीम अंसारी आदि सभी पदाधिकारियों एवम् पसमांदा एक्टीविस्ट और लेखक के साथ मिलकर ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ निरंतर आगे बढ़ रहा है। सोने पर सुहागा ये रहा कि माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने बीजेपी के अनेकों फोरम से पसमांदा विमर्श पर अपने विचार रखे और पसमांदा मुस्लिम समाज की सामाजिक न्याय, समाजिक सुरक्षा, राजनीतिक हिस्सेदारी और सामूदायिक विकास में अपनी रुचि दिखाई ,जिससे संगठन आज समाज में अच्छा कार्य कर रहा है। मौजूदा लोकसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने पसमांदा मुसलमानों के सर्वकल्याण हेतु आह्वाहन करते हुए कहा कि पसमांदा मुसलमानों को वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने समाज के हाशियें पर ला खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि पसमांदा मुसलमानों का शोषण, उत्पीड़न देश में कभी चर्चा का विषय नहीं बना। देश के राजनीतिक इतिहास में यह पहली बार है, जब देश के प्रधानमंत्री ने पसमांदा समाज के लोगों को उनकी सामाजिक पहचान देने के साथ-साथ न केवल पसमांदा विषय को राष्ट्रीय विमर्श में बदल दिया, बल्कि उसे अन्तर्राष्ट्रीय विषय भी बना दिया, जिसके लिये पसमांदा समुदाय और आॅल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज प्रधानमंत्री जी का सदा आभारी रहेगा। ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महज़ उम्मीद करता है कि श्री नरेन्द्र मोदी जी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री की शपथ लेंगे और उनके नेतृत्व में देश का विकास होगा।
(मोहम्मद यूनुस)