मेरे राष्ट्र भारत के पहले मुस्लिम पिछड़े ( पसमांदा ) तहरीक के बानी मुबानी ओर रूहे रवा फख्र ए कॉम गाज़ी ए मिल्लत मोहत रम अब्दुल कय्यूम अंसारी साहब की पैदाइश 1 जुलाई 1905 को सूबा बिहार के डेहरी ओन सुन के एक बाइज़्ज़त,तालीम याफता नामवर घराने में हुआ था.
मजहबी आजादी , कोमी यक जेहती , मज़हबी गैर जानिबदारी के लिए वोह हमेशा यकसूई के साथ लगे रहे उनको भारत में आज भी इस कोमी पैगाम के लिए जाना ओर पहचाना जाता है मुस्लिम लीग की भारत से अलग एक मुस्लिम देश बनाने की मांग का श्री अब्दुल कयूम अंसारी ने खुल कर विरोध किया ।
श्री अब्दुल कयूम अंसारी ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेंस के कोमी सदर ( राष्ट्रीय अध्यक्ष ) थे। उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के दो राष्ट्र फार्मूले की जबरदस्त मुखालिफत की, वह नहीं चाहते थे कि हमारे देश भारतवर्ष से अलग होकर कोई दूसरा मुल्क ( पाकिस्तान) बने! और वोह भी मजहब की बुनियाद पर।
ऐसा करने वाले वोह पूरे मुल्क के सियासी समाजी और मजहबी रहनुमाओं में पहले मुसिम रहनुमा थे।
इसी लिए उन्होंने ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस को सियासी पार्टी बनाते हुए मुस्लिम लीग के खिलाफ चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवार उतारे और जीत हासिल की!
1946 के आम चुनाव में बिहार के अंदर उन्होंने मुस्लिम लीग को धूल चटाते हुए बिहार प्रांत की 6 सीट जीत कर उस समय बिहार के मुख्य मंत्री बिहार केसरी श्री कृष्णा सिंह बाबू के मंत्रिमंडल में पहले मुस्लिम कैबिनेट मंत्री बने वह आजीवन पसमांदा समाज की सियासी ,समाजी ,फलाह ओ बहबुदी, तालीमी और इकतीसादी तरक्की के लिए हमेशा कोशा रहे !
सासाराम और डेहरी ऑन सोन से हाई स्कूल तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, कोलकाता यूनिवर्सिटी,और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ऊंची तालीम हासिल की।
लेकिन जंगे आजादी की तहरीक में हिस्सा लेने पर वक्त वक्त पर उनकी तालीम में रुकावट आती रही ।
लेकिन इस सब के बावजूद उन्होंने उसे दौर में ऊंची तालीम हासिल करके पसमांदा समाज को इस बात की फिक्र दिलाई की अगर मुस्लिम उच्च जातियों के मुकाबले पसमांदा बिरादरी को आगे बढ़ना है तो उसको लाज़मी तौर पर पढ़ना होगा क्योंकि तालीम ही एक ऐसा हथियार है जिससे अशराफवाद का मुकाबला किया जा सकता है
अंसारी साहब की शख्सियत अपने आप में एक अंजुमन थे वह हमेशा बहुत से इदारो के रूह ए रवा और सर परस्त थे
15 साल की उम्र में ही अंसारी साहब इलाहाबाद में लीडर्स कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए और कोलकाता के ऑल इंडिया कांग्रेस के इजलास में भी शिरकत की
16 साल की उम्र में ही आपकी नॉन कोऑपरेशन और खिलाफत मूवमेंट के सिलसिले में आपको कैद कर लिया
रिहाई के बाद आप रियाजुद्दीन एडवोकेट के साथ इलाहाबाद में आनंद भवन जाकर सर किरप्स से मिले और मिलकर 6 पॉइंट प्रोग्राम सर किरप्स के सामने पेश कर पूरे मुल्क में फैले हुए मुसलमानों में से उस वक्त 60% पसमांदा मुस्लिम के मसाइल के हल की मांग की ।
एक नौजवान कायद के रूप में सन 1928 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ कर कांग्रेस के कोलकाता के इजलास में हिस्सा लिया और कांग्रेस के स्टूडेंट मोमेंट से जुड़कर साइमन कमीशन की मुखालिफत करते हुए !
साइमन गो बैक के नारे लगाते हुए गिरफ्तार हुए ।
मुल्की आजादी के बाद अक्टूबर 1947 में कश्मीर पर जब पाकिस्तान ने हमला किया तो उस दौरान उस हमले की मजम्मत करने वाले वह भारत के पहले मुस्लिम नेता की शक्ल में सामने आए और भारत के एक अच्छे सपूत और सच्चे नागरिक के तरह पाकिस्तान हुकूमत का मुकाबला करने के लिए मुस्लिम आवाम को बेदार करने के लिए कड़ी मेहनत की इसी के नतीजे में उन्होंने मकबूजा कश्मीर को आजाद कराने के लिए 1957 में इंडियन मुस्लिम यूथ कश्मीर फ्रंट की बुनियाद डाली ।
1948 के दौरान उन्होंने हैदराबाद में हैदराबादी रजाकारों के भारत सरकार के खिलाफ बगावत में हिंदुस्तानी हुकूमत का खुल कर समर्थन किया और इस चीज के लिए भारतीय मुसलमान के अंदर बेदारी पैदा की ।
जिस के नतीजे में निज़ाम हैदराबाद को सरकार से समझोता करना पड़ा।
गाज़ी ए मिल्लत फखरे कॉम मोहतरम जनाब अब्दुल कयूम अंसारी साहब गरीबों मजलूम किसानों, बुनकरों ,और समाज के हर उस तबके के जिनके साथ ना इंसाफी हुई हो और जिनके साथ गैर बराबरी का सलूक , ऊंच नीच किया गया हो उनके साथ उनके लिए हामी और मददगार रहे उन्होंने तालीमी मैदान में और सियासी ,समाजी मैदान मे सभी के लिए काम किया वह बिहार सरकार में 17 साल तक लगातार कैबिनेट मंत्री रहे
एक वक्त सियासत में ऐसा भी आया कि जब उनको बिहार सूबे का मुख्य मंत्री के ओहदे से नवाजा जा रहा था तो इन्हीं अशराफ ने उनकी बेइंतहा मुखालिफत की ।
मुखालिफत करने वालों की उस वक्त बिहार में जो सरपरस्ती कर रहे थे वोह सर सैयद अहमद खान के बेटे सैयद महमूद थे।
अब्दुल कयूम अंसारी साहब की कोशिश के नतीजे में सन 1953 में हिंदुस्तान की मरकजी हुकूमत ने पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया ।
अब्दुल कयूम अंसारी साहब का इंतकाल 18 जनवरी 1973 को हो गया जब वह बिहार के अभियावर गांव में डेहरी आर नहर के देने से गांव के हुए नुकसान का जायजा ले रहे थे
और बेघर हुए लोगों को राहत देने और उनकी मदद के लिए मौके पर मौजूद थे।उनके रहने के इंतजाम में लगे हुए थे।
अल्लाह ताला ने 67 साल की उम्र में उस कॉम और मिल्लत के नायाब हीरे को हमारे दरमियान से वापस अपने पास बुला लिया।
उनकी इस अचानक मोत से पसमांदा समाज में एक बड़ा खला पैदा हुआ जो अब तक पूरा नहीं हो पा रहा हे !
अंसारी बिरादरी के साथ साथ दिगर मुस्लिम पसमांदा बिरादरी उनकी खिदमात ओर कुर्बानी को याद करके आंसू बहाती है !
उनकी कमी आज पूरे देश में महसूस हो रही है
मौत उसकी हे करे जिस का ज़माना अफसोस।
यूं तो आए हैं सभी दुनिया से जाने के लिए ।।
लेखक
# हाजी मोहम्मद अहमद अंसारी #
राष्ट्रीय संरक्षक/ राष्ट्रीय प्रभारी
ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़