भारत की विदेश नीति: पड़ोसियों के साथ संतुलन, गरिमा और कूटनीति

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का प्रसिद्ध कथन, “आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं,” भारत की विदेश नीति और भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का गहन सार प्रस्तुत करता है। यह न सिर्फ भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी रेखांकित करता है कि भौगोलिक निकटता के कारण पड़ोसियों के साथ संबंधों को अनदेखा करना असंभव है। हाल ही में, भारत ने अफगानिस्तान के 150 ट्रकों को पाकिस्तान के रास्ते भारत में प्रवेश की अनुमति दी। यह कदम भारत की कूटनीतिक कुशलता और भू-राजनीतिक विवशताओं के बीच संतुलन स्थापित करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। इस लेख में हम भारत की विदेश नीति के इस पहलू का विस्तार से विश्लेषण करेंगे, जिसमें कूटनीति, गरिमा, और रणनीतिक हितों की रक्षा पर जोर दिया जाएगा।

पड़ोसियों के साथ संबंध: मजबूरी और अवसर- भारत का भौगोलिक स्थान इसे दक्षिण एशिया का केंद्र बनाता है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार और सांस्कृतिक संबंध ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रहे हैं। प्राचीन काल में आर्यों, मंगोलों, और मुगलों ने खैबर दर्रे जैसे मार्गों का उपयोग कर भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश किया। वर्तमान में भी, पाकिस्तान अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ भारत के व्यापार के लिए सबसे छोटा और सस्ता मार्ग प्रदान करता है।

भारत-पाकिस्तान संबंधों का इतिहास तनाव, युद्ध, और अविश्वास से भरा रहा है, फिर भी भारत ने समय-समय पर कूटनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए इस मार्ग का उपयोग किया है। हालिया अफगान ट्रकों का मामला इसी कूटनीतिक संतुलन का उदाहरण है। यह स्थिति एक विरोधाभास को भी दर्शाती है: भारत और अफगानिस्तान के सामरिक और ऐतिहासिक संबंध मजबूत होने के बावजूद, पाकिस्तान का भौगोलिक महत्व भारत के व्यापार मार्गों में बाधा डाल सकता है।

कूटनीति का महत्व: रणनीतिक हितों की रक्षा- भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धांत राष्ट्रीय हितों की रक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता, और वैश्विक मंच पर प्रभाव बढ़ाने पर केंद्रित रहा है। अफगानिस्तान के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने का निर्णय, भले ही इसके लिए पाकिस्तान का मार्ग चुनना पड़े, भारत की कूटनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है। यह कदम न केवल अफगानिस्तान के साथ संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापारिक और सामरिक संबंधों का एक नया द्वार भी खोलता है।

इसके अतिरिक्त, भारत ने हमेशा दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया है। पंडित नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों की दीर्घकालिक रक्षा के रूप में देखा गया। शिमला समझौता और लाहौर घोषणा पत्र इसके उदाहरण हैं, जहां दीर्घकालिक शांति और स्थिरता के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।

राष्ट्रीय गरिमा: समझौते का आधार- राष्ट्रीय गरिमा भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण तत्व है। भारत ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि कूटनीतिक समझौते या सहयोग राष्ट्रीय सम्मान के साथ किए जाएं। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, शिमला समझौते के तहत 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों को रिहा करना भारत की शक्ति और उदारता का प्रतीक था। इसी प्रकार, अफगान ट्रकों को पाकिस्तान के रास्ते भारत आने देने का निर्णय भारत की कमजोरी नहीं, बल्कि कूटनीतिक परिपक्वता का प्रतीक है।

भू-राजनीति और वैकल्पिक मार्ग: दीर्घकालिक दृष्टिकोण- भू-राजनीतिक रणनीति के तहत भारत ने वैकल्पिक मार्गों की खोज भी की है। चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसे प्रोजेक्ट भारत की सामरिक स्वतंत्रता को मजबूत करते हैं। ये परियोजनाएँ पाकिस्तान पर निर्भरता को कम करने और मध्य एशिया तक सीधी पहुँच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाई गई हैं।

निष्कर्ष: कूटनीति, गरिमा, और दीर्घकालिक दृष्टिकोण- भारत की विदेश नीति पड़ोसियों के साथ संबंधों का संतुलन, राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा, और भू-राजनीतिक मजबूरियों का प्रबंधन करने में सफल रही है। अफगान ट्रकों का पाकिस्तान के रास्ते आगमन इस संतुलन का एक सटीक उदाहरण है। भारत ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखते हुए भी पड़ोसियों के साथ कूटनीति के माध्यम से संबंध प्रबंधित कर सकता है।

आगे की रणनीति के तहत भारत को अपनी वैकल्पिक व्यापारिक राहों को और मज़बूत करना चाहिए, जिससे उसकी भू-राजनीतिक स्थिति और सुदृढ़ हो सके।””

 

मुहम्मद युनुस
मुख्य कार्यकारी अधिकारी सीईओ