अज़ीम मुजाहिद-ए-आज़ादी शेख अहमद भिखारी

🌹 याद करो कुर्बानी 🌹
#पसमांदा_साथियों, आज हम उस अज़ीम शख़्सियत को याद करते हैं जिन पर पूरा #पसमांदा_समाज फख्र करता है —
शेख अहमद भिखारी अंसारी रहमतुल्लाह अलैह ✨

🌷 अज़ीम मुजाहिद-ए-आज़ादी शेख अहमद भिखारी 🌷
SHEIKH BHIKHARIशेख भिखारी का जन्म 2 अक्टूबर 1819 को झारखंड के राँची ज़िले में एक साधारण बुनकर (अंसारी) परिवार में हुआ। 20 वर्ष की उम्र में उन्होंने छोटानागपुर के महाराज के दरबार में नौकरी शुरू की और जल्द ही काबिलियत के बल पर ऊँचा मुक़ाम पाया। बाद में बड़कागढ़ (जगन्नाथपुर) के राजा ने उन्हें दीवान और फौज का सरदार नियुक्त किया।

🔸 1857 की जंग-ए-आज़ादी में उन्होंने ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के साथ मिलकर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला। राँची, चाईबासा और संथाल परगना में आज़ादी की चिंगारी भड़क उठी।

🔸 अंग्रेज जनरल मैकडोना की फौज जब रामगढ़ से राँची की तरफ़ बढ़ी तो शेख भिखारी ने चुट्टूपालू पहाड़ी पर डटकर मुकाबला किया। उन्होंने पुल तोड़ दिया, रास्ते जाम किए और अंग्रेजों पर गोलियों की बौछार कर दी। जब बारूद ख़त्म होने लगा तो पहाड़ों से पत्थर लुढ़काकर अंग्रेज फौज को भारी नुक़सान पहुँचाया।

🔸 लेकिन मुकामी ग़द्दारी से अंग्रेजों ने रास्ता निकाल लिया और 6 जनवरी 1858 को उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। फौजी अदालत ने 7 जनवरी को फाँसी की सज़ा सुना दी।

⚔ 8 जनवरी 1858 को बहादुर शेख भिखारी को चुट्टूपालू पहाड़ी पर बरगद के पेड़ से फाँसी दे दी गई।

उनकी शहादत आज़ादी की लड़ाई का सुनहरा अध्याय है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। 🌺

✍ मुहम्मद यूनुस, सीईओ
#ऑल_इण्डिया_पसमांदा_मुस्लिम_महाज़