पसमांदा मुस्लिम समुदाय को संयम और समझदारी से काम लेना चाहिए था
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज की अपील! केवल दोषियों को ही दंडित किया जाए
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने 20 अक्टूबर को रात 10 बजे जूम मीटिंग का आयोजन किया जिसकी अध्क्षता राष्ट्रीय अध्यक्ष परवेज हनीफ और मुहम्मद युनुस (चीफ एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर) के समन्वय से आयोजित हुई। मीटिंग में महाराजगंज बहराइच की घटना और उसके बाद के हालात पर विचार-विमर्श हुआ। संगठन ने महाराजगंज बहराइच की घटना, जिसमें एक युवा की जान चली गई और दंगाइयों द्वारा मकान, दुकान और घरों में आग लगाकर संपत्ति का नुकसान किया गया, की निंदा की है।
मीटिंग में में कहा गया हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है, इसलिए संयम से काम लेना है और कानून को हाथ में नहीं लेना चाहिए। लखनऊ से ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज का एक प्रतिनिधिमंडल महाराजगंज, बहराइच जाएगा और वहां के हालात का जायजा लेकर एक रिपोर्ट तैयार करेगा। संगठन स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर ऐसे मौकों पर आपसी सौहार्द और भाईचारा बनाए रखने में मदद करेगा। अक्सर ऐसी घटनाएं धर्म के आधार पर राजनीति से प्रेरित हो सकती हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों के बीच विभाजन कर अपना स्वार्थ साधना भी हो सकता है। कुछ संगठन इस प्रकार की हिंदू-मुस्लिम बाइनरी बनाकर समाज में शत्रुता की भावना फैलाकर अपना हित साधना चाहते हैं।
जहां तक डीजे पर आपत्तिजनक गाने बजाने, नारे लगाने, झंडा उतारने या अन्य इस प्रकार की घटनाओं का सवाल है, पसमांदा मुस्लिम समुदाय को संयम और समझदारी से काम लेना चाहिए। हिंसा या बदले की भावना से किसी समस्या का समाधान नहीं होता। इसके बजाय, आपसी सौहार्द और भाईचारे से ही समस्याओं का हल निकाला जा सकता है। हमें नबी करीम द्वारा ऐसे हालात में उठाए गए कदमों को याद करना चाहिए। जब मक्का के लोगों ने नबी करीम और कुरैश मक्का के साथ बहुत ही खराब हालात बना दिए थे, तब उन्होंने मक्का छोड़कर मदीना की ओर हिजरत की। वहां उन्होंने आपसी सहमति और सौहार्द बनाए रखने के लिए सुलह-ए-हुदैबिया और मिसाक-ए-मदीना जैसे कदम उठाए। हमें भी हालात के अनुसार सोच-समझकर कार्य करने की आवश्यकता है। हमें किसी प्रकार के पूर्वाग्रह से बचना चाहिए और देश के बहुसंख्यक लोगों के साथ प्रेम और सौहार्द से रहना चाहिए। संगठन का स्पष्ट मत है कि किसी भी परिस्थिति में हत्या करना गलत है। प्रेम और संवाद की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। घृणा का जवाब घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से दिया जाना चाहिए। इससे न केवल समाज में स्थिरता बनी रहेगी, बल्कि कट्टरपंथी तत्वों की योजनाएं भी असफल होंगी।
अंत में, मुस्लिम और हिंदू समाज के लोगों से यह सवाल है कि इस घटना से किसको फायदा हुआ? क्या उस मृतक युवक की बूढ़ी मां और उसके बूढ़े पिता खुश हैं? क्या उसकी जवान पत्नी खुश हैं? क्या जिन लोगों ने आवेश में आकर गोली चलाई, वे और उनके परिवार खुश हैं? क्या उस शहर, मोहल्ले और इर्दगिर्द के लोग खुश हैं? निहित स्वार्थी और असामाजिक तत्वों को छोड़कर इस प्रकार की घटना से किसी को कोई लाभ नहीं होता। इसलिए जब कभी ऐसे हालात पैदा हो जाएं, तो हमेशा सब्र और संयम के साथ स्थिति को काबू में करने की कोशिश होनी चाहिए। घृणा और गुस्से से सिर्फ नुकसान होता है। कानून को हाथ में किसी भी हालत में नहीं लेना चाहिए। उस युवक को या तो पकड़कर पुलिस के हवाले करना चाहिए था या फिर उसे समझाया जाता कि यह गलत है, ऐसा न करें।
संगठन सरकार से अपील करता है कि इस घटना में केवल दोषी लोगों को ही दंडित किया जाए। चूंकि इस घटना में दोनों पक्षों की गलती है, इसलिए दोनों पक्षों के दोषी लोगों को ही सजा मिलनी चाहिए। निर्दोष लोगों को किसी भी परिस्थिति में दंडित नहीं किया जाना चाहिए। संगठन का मानना है कि प्रशासन को न्यायपूर्ण कार्रवाई सुनिश्चित करते हुए निष्पक्षता से काम करेगा, ताकि निर्दोष व्यक्तियों को परेशान न किया जाए और केवल वही लोग दंडित हों जो वास्तव में इस घटना के लिए जिम्मेदार हैं। मीटिंग में संगठन के संयोजक शमीम अंसारी, शाकिर, सलाहकार इबादुल हक, राष्ट्रीय प्रभारी मोहम्मद अहमद, डाॅ. हारून राइन, इरफान मीर, वाहिद सलमानी, सिकन्दर सलमानी, कोषाध्यक्ष मोहम्मद इदरीस, परवलेज अंसारी, असलम कुरैशी, शाइस्ता सलमानी, मोहम्मद इरफान, शकील लेड़ी आदि लोग उपस्थित रहे।