पसमांदा मुस्लिम बिरादरियों के कायेदिन और रहनुमाओं की खिदमात

पसमांदा मुस्लिम बिरादरियाँ, जो भारतीय मुस्लिम समाज का लगभग 85% हिस्सा हैं, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से हाशिए पर रही हैं। इनमें जुलाहा (अंसारी), मंसूरी, कुरैशी, सलमानी, हलालखोर, राइन, सैफी, अल्वी जैसी बिरादरियाँ शामिल हैं। इन समुदायों ने स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक सुधार, और सांस्कृतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन अशराफ (उच्च वर्गीय मुस्लिम) वर्चस्व और ऐतिहासिक उपेक्षा ने इनके योगदान को गुमनामी में धकेल दिया। यह लेख पसमांदा कायेदिन और रहनुमाओं की खिदमात, उनके संघर्ष, और ज़िंदगी के हालात को उजागर करता है, जिसमें बाबा कबीर का जीवन परिचय, वीर अब्दुल हमीद की शहादत, और ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ (AIPMM) का योगदान शामिल है।

पसमांदा आंदोलन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: पसमांदा आंदोलन की नींव 15वीं सदी में बाबा कबीर के समय से देखी जा सकती है, जिन्होंने इस्लाम और हिंदू धर्म में व्याप्त जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई। 20वीं सदी में यह आंदोलन मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी, अब्दुल कय्यूम अंसारी जैसे नेताओं के नेतृत्व में संगठित हुआ। पसमांदा आंदोलन ने सामाजिक समानता, शिक्षा, और राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ (AIPMM) ने 1998 में इस आंदोलन को नई दिशा दी, जिसने पसमांदा समाज को एकजुट करने और उनकी मांगों को राष्ट्रीय मंच पर उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रमुख पसमांदा कायेदिन और रहनुमाओं की खिदमात
1. बाबा कबीर (1398/1440 – 1518/1545)
जीवन परिचय: बाबा कबीर का जन्म वाराणसी में जुलाहा बिरादरी में हुआ, हालांकि उनके जन्म की तारीख और पृष्ठभूमि पर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ मानते हैं कि वे एक हिंदू परिवार में जन्मे और बाद में मुस्लिम सूफी संत शेख तकी से दीक्षा ली, जबकि अन्य उन्हें जन्मजात मुस्लिम मानते हैं। कबीर ने हिंदू-मुस्लिम एकता, सामाजिक समानता, और जातिवाद के खिलाफ प्रखर आवाज़ उठाई। उनकी दोहों और भजनों में मानवता, प्रेम, और ईश्वर की एकता का संदेश है। उनकी रचनाएँ, जैसे “साधो, देखो जग बौराना” और “मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे”, आज भी प्रासंगिक हैं।
खिदमात:
– कबीर ने भक्ति और सूफी परंपराओं को जोड़कर एक समन्वयवादी दर्शन दिया।
– उन्होंने पसमांदा समाज को आत्मसम्मान और सामाजिक जागरूकता का संदेश दिया।
– उनकी शिक्षाएँ पसमांदा आंदोलन की वैचारिक नींव बनीं, जो बाद में 20वीं सदी में संगठित रूप ले सकी।

हालात-ए-ज़िंदगी: कबीर की ज़िंदगी सादगी और संघर्षों से भरी थी। एक जुलाहे के रूप में उन्होंने मेहनत-मजदूरी की और सामाजिक तिरस्कार का सामना किया। उनकी मृत्यु मगहर में हुई, जहाँ हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने उनके पार्थिव शरीर पर दावा किया, जो उनकी एकता की भावना को दर्शाता है।
2. मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी
जीवन परिचय: जुलाहा (अंसारी) बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले मौलाना अली हुसैन का जन्म बिहार में हुआ। वे पसमांदा आंदोलन के जनक और स्वतंत्रता सेनानी थे।

खिदमात:
– 1910 में उन्होंने मोमिन कॉन्फ्रेंस (जमीयतुल मोमिनीन) की स्थापना की, जो पसमांदा मुस्लिमों के अधिकारों के लिए समर्पित थी।
– मुस्लिम लीग के ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ का विरोध किया और सामाजिक एकता पर बल दिया।
– 1946 के चुनाव में मोमिन कॉन्फ्रेंस ने कई सीटें जीतीं।
– ‘मोमिन गैज़ेट’ शुरू कर पसमांदा समाज में जागरूकता फैलाई।

हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी बलिदान से भरी थी। उन्होंने अपने भाई की शादी के लिए रखा धन सामाजिक सम्मेलन में खर्च कर दिया, जिसके कारण वह शादी में शामिल नहीं हो सके। उनकी सादगी और समर्पण ने उन्हें जनता का प्रिय बनाया।
3. बत्तख मियां अंसारी जीवन परिचय: बत्तख मियां एक साधारण पसमांदा मुस्लिम थे, जो जुलाहा बिरादरी से थे।
खिदमात: – 1917 के चंपारण सत्याग्रह में उन्होंने महात्मा गांधी की जान बचाई। एक जमींदार के रसोइए के रूप में काम करते हुए उन्होंने गांधी को जहरीला भोजन परोसने की साजिश का खुलासा किया।
हालात-ए-ज़िंदगी: उनके साहस के बावजूद, मुख्यधारा के इतिहास ने उन्हें नजरअंदाज किया, और वे गुमनामी में खो गए। उनकी ज़िंदगी सादगी और सामाजिक भेदभाव से जूझने की कहानी है।
4. मौलाना अतीकुर्रहमान मंसूरी (डोमवा मौलाना)

जीवन परिचय: मंसूरी बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले मौलाना अतीकुर्रहमान एक समाजसुधारक थे। खिदमात: – शिक्षा और सामाजिक सुधार पर जोर दिया। – पसमांदा समाज में जागरूकता फैलाने के लिए संगठन बनाए।
हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी सादगी और समाजसेवा ने उन्हें लोकप्रिय बनाया, लेकिन अशराफ नेतृत्व ने उनके योगदान को दबाने की कोशिश की।
5. अब्दुल्ला जोलहा जीवन परिचय: जुलाहा बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले अब्दुल्ला 1922 के चौरी-चौरा कांड में शहीद हुए। खिदमात: असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और ब्रिटिश पुलिस थाने पर हमले के दौरान अपनी जान गंवाई। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी, लेकिन इतिहास में उनका नाम गुमनाम रहा।
6. मोहद्दीस कबीर मौलाना हबीबुर्रहमान आज़मी जीवन परिचय: धार्मिक विद्वान और पसमांदा नेता। खिदमात: – इस्लाम में जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई। – शिक्षा और सामाजिक समानता की वकालत की।
हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी विद्वता ने उन्हें ‘मोहद्दीस कबीर’ की उपाधि दिलाई, लेकिन उनकी ज़िंदगी सामाजिक उपेक्षा से भरी रही।
7. भैयाजी रशिदुद्दीन कुरैशी जीवन परिचय: कुरैशी बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले स्वतंत्रता सेनानी। खिदमात: – पसमांदा समाज को संगठित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूकता फैलाई।
हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी नेतृत्व क्षमता ने कई युवाओं को प्रेरित किया, लेकिन उनकी कहानी भी गुमनामी में खो गई।
8. मोहम्मद सिद्दीक अल्वी जीवन परिचय: अल्वी बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले समाजसेवी। खिदमात: शिक्षा और रोज़गार के अवसर बढ़ाने की वकालत की।
हालात-ए-ज़िंदगी: उनके प्रयासों से कई परिवार आर्थिक रूप से सशक्त हुए, लेकिन उनकी पहचान सीमित रही।
9. अब्दुल कय्यूम अंसारी जीवन परिचय: जुलाहा बिरादरी के स्वतंत्रता सेनानी और मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता। खिदमात: मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति का विरोध किया।
– पसमांदा समाज के सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों से भरी थी।
10. मौलाना रहमतुल्लाह उस्मानी जीवन परिचय: धार्मिक और सामाजिक सुधारक। खिदमात: शिक्षा और धार्मिक जागरूकता पर काम किया। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी सादगी और विद्वता ने उन्हें जनता का प्रिय बनाया।
11. मौलाना अब्दुस्सलाम मोबारकपुरी जीवन परिचय: धार्मिक सुधारक और समाजसेवी। खिदमात: जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई और सामाजिक सुधारों पर जोर दिया। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी समाजसेवा को समर्पित थी।
12. मुफ्ती-ए-आज़म मौलाना केफायेतुल्ला सलमानी जीवन परिचय: सलमानी बिरादरी के धार्मिक नेता और स्वतंत्रता सेनानी। खिदमात: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख नेता के रूप में स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया।
– शिक्षा और सामाजिक न्याय की वकालत की। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी विद्वता और साहस ने उन्हें सम्मान दिलाया।
13. मौलाना उस्मान फार क्लीत सैफी जीवन परिचय: सैफी बिरादरी के समाजसेवी। खिदमात: पसमांदा समाज को संगठित किया और उनके हक़ के लिए आवाज़ उठाई। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी सामाजिक सुधार के लिए समर्पित थी।
14. सर मियां मोहम्मद शफी रायनी जीवन परिचय: रायनी बिरादरी के स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी। खिदमात: शिक्षा और आर्थिक सशक्तीकरण पर काम किया। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी सामाजिक उत्थान के लिए समर्पित थी।
15. जियाउर्रहमान अंसारी जीवन परिचय: सामाजिक कार्यकर्ता। खिदमात: सामाजिक समानता और शिक्षा के प्रसार के लिए संघर्ष किया। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी सामाजिक भेदभाव से जूझने की कहानी है।
16. मोहम्मद यूसुफ खान (दिलीप कुमार) रायनी जीवन परिचय: रायनी बिरादरी के दिग्गज अभिनेता। खिदमात :भारतीय सिनेमा में सामाजिक एकता और भाईचारे का संदेश दिया।
हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी पसमांदा पृष्ठभूमि को अक्सर नजरअंदाज किया गया।
17. नौशाद अंसारी जीवन परिचय: अंसारी बिरादरी के महान संगीतकार। खिदमात: अपनी रचनाओं से पसमांदा समाज की प्रतिभा को दुनिया के सामने लाया। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी कला और मेहनत से भरी थी।
18. बिस्मिल्लाह खान (हलालखोर बिरादरी) जीवन परिचय: विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक। खिदमात: भारत रत्न से सम्मानित, भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक पहचान दिलाई। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी सादगी और कला ने उन्हें अमर बनाया।
19. सहर-ए-आफाक मसूर फेदाहुसैन बुनकर जीवन परिचय: बुनकर बिरादरी के साहित्यकार। खिदमात: अपनी रचनाओं में पसमांदा समाज की पीड़ा और संघर्ष को उजागर किया। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी साहित्य और समाजसेवा को समर्पित थी।
20. कामरेड मोलवी बाकी जीवन परिचय: कम्युनिस्ट नेता। खिदमात: सामाजिक और आर्थिक न्याय की लड़ाई लड़ी। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी सामाजिक संघर्षों से भरी थी।
21. हबीबुर्रहमान नुमानी (साबिक सांसद) जीवन परिचय: पसमांदा नेता और राजनेता। खिदमात: सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए काम किया। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी राजनीतिक और सामाजिक सेवा को समर्पित थी।
22. नेमतुल्लाह अंसारी जीवन परिचय: सामाजिक कार्यकर्ता।  खिदमात: अशराफ बनाम अरज़ाल के मुद्दे पर गोरखपुर में कानूनी लड़ाई लड़ी और हाईकोर्ट में जीत हासिल की।
हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी ज़िंदगी सामाजिक समानता के लिए समर्पित थी। 23. अब्दुल मजीद अदीब अंसारी जीवन परिचय: पसमांदा आंदोलन के प्रमुख नेता। खिदमात: ऑल इंडिया तबकाती पसमांदा फेडरेशन की स्थापना की।
– मोमिन कॉन्फ्रेंस को सशक्त किया।
– मुरादाबाद में विद्यालय स्थापित किया और दहेज-मुक्त सामूहिक विवाह को बढ़ावा दिया।
हालात-ए-ज़िंदगी: 29 अप्रैल को उनके निधन के बाद भी उनकी विरासत प्रेरणा देती है।
24. डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जीवन परिचय: भारत के 11वें राष्ट्रपति और वैज्ञानिक (15 अक्टूबर 1931 – 27 जुलाई 2015)। खिदमात: DRDO और ISRO में अग्नि, पृथ्वी मिसाइलों के विकास में योगदान।
– “मिसाइल मैन” के रूप में प्रसिद्ध। उनकी पुस्तकें जैसे “विंग्स ऑफ फायर” प्रेरणादायी हैं। हालात-ए-ज़िंदगी: रामेश्वरम में साधारण परिवार में जन्मे, उनकी ज़िंदगी मेहनत और समर्पण की मिसाल है।
25. वीर अब्दुल हमीद जीवन परिचय: परमवीर चक्र विजेता सैनिक (1 जुलाई 1933 – 10 सितंबर 1965)। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामपुर गाँव में कुरैशी बिरादरी में जन्मे। खिदमात: 1965 के भारत-पाक युद्ध में असल उत्तर (पंजाब) के मोर्चे पर सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट किया। – अपनी जीप से टैंकों पर ग्रेनेड दागे और वीरगति को प्राप्त हुए। मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित। हालात-ए-ज़िंदगी: उनकी सादगी और देशभक्ति पसमांदा समाज के लिए गर्व का विषय है।

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ (AIPMM) का योगदान स्थापना और उद्देश्य: AIPMM की स्थापना में हुई। इसका मुख्य उद्देश्य पसमांदा मुस्लिमों के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना और अशराफ वर्चस्व को चुनौती देना था।

प्रमुख योगदान:
1. जागरूकता अभियान: AIPMM ने पसमांदा समाज में शिक्षा, रोज़गार, और सामाजिक समानता के लिए जागरूकता फैलाई।
2. राजनीतिक प्रतिनिधित्व: संगठन ने पसमांदा नेताओं को राजनीतिक मंचों पर लाने की कोशिश की और उनकी मांगों को संसद तक पहुँचाया।
3. सामाजिक सुधार: दहेज, बाल विवाह, और सामाजिक भेदभाव जैसे मुद्दों पर काम किया।
4. कानूनी लड़ाई: AIPMM ने पसमांदा समाज के लिए आरक्षण और सामाजिक न्याय की मांग को लेकर कई कानूनी और सामाजिक आंदोलन चलाए।
5. साहित्य और प्रकाशन: संगठन ने पसमांदा इतिहास और नेताओं की जीवनी को प्रकाशित करने में योगदान दिया।
प्रभाव: AIPMM ने पसमांदा आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। इसने पसमांदा समाज को एकजुट करने और उनकी आवाज़ को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पसमांदा आंदोलन की चुनौतियाँ
1. अशराफ वर्चस्व: अशराफ नेतृत्व ने पसमांदा योगदान को नजरअंदाज किया और उन्हें सामाजिक-राजनीतिक रूप से हाशिए पर रखा।
2. प्रतिनिधित्व की कमी: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संस्थानों में पसमांदा प्रतिनिधित्व नगण्य है।
3. राजनीतिक शोषण: राजनीतिक दलों ने पसमांदा मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन उनके उत्थान के लिए ठोस कदम नहीं उठाए।
4. शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन: पसमांदा बिरादरियाँ आज भी शिक्षा और रोज़गार के अवसरों में पीछे हैं।

नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा और सुझाव
पसमांदा कायेदिन और रहनुमाओं की कहानियाँ नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। बाबा कबीर, मौलाना अली हुसैन, वीर अब्दुल हमीद, बिस्मिल्लाह खान जैसे लोग इस बात का सबूत हैं कि पसमांदा समाज में प्रतिभा और नेतृत्व की कमी नहीं। उनकी गुमनामी को दूर करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
1. शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल करना: पसमांदा नेताओं और शहीदों के योगदान को स्कूल-विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
2. साहित्य और मीडिया: उनकी जीवनी, संघर्ष, और उपलब्धियों पर किताबें, डॉक्यूमेंट्री, और लेख प्रकाशित किए जाएँ।
3. सामाजिक जागरूकता: सेमिनार और कार्यशालाओं के माध्यम से पसमांदा इतिहास को जन-जन तक पहुँचाया जाए।
4. राजनीतिक प्रतिनिधित्व: पसमांदा नेताओं को राजनीतिक मंच पर अवसर दिया।

पसमांदा मुस्लिम बिरादरियों के कायेदिन और रहनुमाओं ने स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक सुधार, और सांस्कृतिक क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया। बाबा कबीर ने सामाजिक समानता की नींव रखी, वीर अब्दुल हमीद ने देश की रक्षा में अपनी जान दी, और बिस्मिल्लाह खान जैसे कलाकारों ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने इस आंदोलन को नई दिशा दी और पसमांदा समाज की आवाज़ को मज़बूत किया। इन शख्सियतों की गुमनामी को दूर करना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है। लेखकों, इतिहासकारों, और बुद्धिजीवियों से अपील है कि वे पसमांदा समाज के गौरवशाली इतिहास को सामने लाएँ। यह लेख उन गुमनाम नायकों को समर्पित है, जिनकी विरासत आज भी जीवित है।

जय भारत, जय पसमांदा!