सब कुछ बदल चुका है। ज़मीन खिसक गई है। पाकिस्तान की रणनीतिक अहंकार को सहारा देने वाले भ्रम चकनाचूर हो चुके हैं। दक्षिण एशिया के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हो चुका है — एक ऐसा अध्याय जो स्पष्टता, सटीकता और शक्ति से परिभाषित है।
दशकों तक पाकिस्तान यह मानता रहा कि उसका परमाणु भंडार एक अभेद्य ढाल है — एक ऐसा डरावना अस्त्र जो भारत को कभी भी जवाबी कार्रवाई से रोके रखेगा, चाहे वह घुसपैठ हो या आतंकवाद। अब यह भ्रम पूरी तरह टूट चुका है।
इतिहास में पहली बार 1971 के युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान के भीतर गहराई तक सैन्य हमले किए हैं। यह केवल प्रतीकात्मक चेतावनी नहीं थी। लाहौर, कराची, रावलपिंडी और खैबर पख्तूनख्वा के समीपवर्ती क्षेत्र सहित कम से कम नौ शहरों को लक्षित किया गया। दो प्रांतीय राजधानियां और पाकिस्तान की सैन्य शक्ति का केंद्र GHQ रावलपिंडी भी भारत के ड्रोन की पहुंच में था।
ये हमले विनाश के लिए नहीं थे, बल्कि रणनीतिक इरादों का स्पष्ट संकेत थे — पाकिस्तान को यह संदेश देने के लिए कि भारत अब किसी भी उकसावे को सहन नहीं करेगा।
पाकिस्तान की परमाणु प्रतिरोधक नीति अब ध्वस्त हो चुकी है। बिना हथियार या हल्के हथियारों से लैस ड्रोन का उपयोग करके भारत ने अपनी मारक क्षमता, सटीकता और समय आने पर निर्णायक कार्रवाई की तत्परता को साबित कर दिया है। यह नया भारत है — निडर, सक्षम और संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: एक निर्णायक रेखा- 1947 में आज़ादी के बाद से पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ चार युद्ध और अनगिनत छद्म युद्ध लड़े हैं — जिनमें से अधिकांश कश्मीर को लेकर थे, जो भारत का अभिन्न हिस्सा है।
1947 की जनजातीय आक्रमण से लेकर 1965 का विफल ऑपरेशन जिब्राल्टर, 1971 में बांग्लादेश का निर्माण और 1999 की कारगिल घुसपैठ — हर बार पाकिस्तान की आक्रामक नीतियों ने उसे ही हार और शर्मिंदगी दी है। फिर भी पाकिस्तान ने अपने सबसे खतरनाक हथियार — आतंकवाद — को कभी नहीं छोड़ा।
2001 में भारतीय संसद पर हमला हो या 2008 के मुंबई हमले, पाकिस्तान की आतंकवादी संगठनों को दी गई पनाह और समर्थन अब किसी से छिपा नहीं है। उसने खुद को पीड़ित बताकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को धोखा दिया है। यह पाखंड अब और नहीं चलेगा।
एक साहसिक नई नीति- यह ड्रोन हमले युद्ध की शुरुआत नहीं हैं — ये भ्रम के अंत की घोषणा हैं। अब ‘रणनीतिक संयम’ का युग समाप्त हो चुका है। बलूचिस्तान से लेकर कराची तक, अब पाकिस्तान का कोई हिस्सा भारत की पहुंच से बाहर नहीं है।
DHA लाहौर पर हमला यह दर्शाता है कि अब सैन्य और राजनीतिक अभिजात्य वर्ग भी अछूता नहीं है। भारत का संदेश स्पष्ट है: आतंकवाद को उसकी जड़ों में ही कुचला जाएगा।
पाकिस्तान अब एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। उसके पास केवल दो विकल्प हैं:
1. आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले एक सुरक्षा राज्य की भूमिका छोड़कर एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक राष्ट्र बने,
2. या फिर ऐसे सर्वनाशकारी युद्ध का सामना करे जिसे वह कभी जीत नहीं सकता — और जो उसके आतंकवादी तंत्र को हमेशा के लिए समाप्त कर देगा।
भारत की इस कार्रवाई ने दशकों से चले आ रहे रणनीतिक भ्रम को समाप्त कर दिया है। यह अंधी आक्रामकता नहीं है — यह एक परिपक्व, सटीक और देश, नागरिकों और मूल्यों की रक्षा के लिए की गई निर्णायक कार्रवाई है। भारत की जड़ें शांति, लोकतंत्र और मानवाधिकारों में गहराई से जुड़ी हैं, लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि संयम को कमजोरी समझना एक घातक भूल होगी।
इस्लामाबाद और रावलपिंडी के लिए अब संदेश बिल्कुल स्पष्ट है:
उकसाओगे, तो भुगतोगे।
शरीक अदीब अंसारी
राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़