परवेज़ हनीफ
स्वतंत्र भारत में इस्लाम धर्म अनुयाई मुस्लिम समाज के इतिहास में जहां कुल मुस्लिम को अल्पसंख्यक वर्ग से परिभाषित रहा,और सामाजिक अधिकारिता विकास में संवैधानिक वर्गीकरण में सभी भारतीय मूल के पिछड़े दलित धर्मांत्रितो को ओबीसी एसटी में अनु जाति को छोड़ कर वर्गीकृत कर अंगीकृत किया गया,लेकिन आज़ादी के दशकों बाद सरकार दर सरकार बनने बिगड़ने के बावजूद भारतीय संविधान की परिभाषा के अनुरूप सामाजिक न्याय अधिकारिता में जब भारतीय मूल देशज समाज की भागीदारी का सिंहावलोकन किया गया तो मुस्लिम नेतृत्व पर सवाल उठे जो खुद साखता अशराफ के रूप में धार्मिक और सियासी रूप में सामने आए और सत्ता का सेवन किया।जिन्होंने कौमजात आधारित ऊंच नीच अशराफ अरजाल अजलाल में इस्लामी बुनियादी सिद्धांतो से हटकर एक अलग समाज की अवधारणा खुद को लोकतांत्रिक ढांचे फिट करने को बना डाली जिसका सामाजिक आर्थिक धार्मिक समतामूलक चिंतन ने “पसमांदा मुस्लिम “शब्द विचार विमर्श बाद आया और इसमें उन सभी भारतीय मूल के ओबीसी दलित धर्मांतरित मुस्लिम को जाति से वर्ग की ओर जागरूक करने का सामाजिक राजनीतिक बेदारी का काम 90 के दशक में शुरू हुआ इसके नायक बिहार से राज्यसभा भी पहुंचे क्योंके इनके सियासी भागीदारी के रास्ते में वैसे ही अशराफी रोड़े अटकाए गए जैसे अंबेडकर के अटकाए गए।लेकिन यह ग्रास रूट पर पर उन 85% हिंदुस्तानी पसमांदा मुस्लिम की बेदारी तक अपनी पहुंच नही बना सका,और यह वर्ग अधिकांश अशराफी मसलको और इदारो के फरमान फतवों से उतना बाहर नही निकला जितना पसमांदा मुस्लिम समाज को सामाजिक न्याय अधिकारिता सत्ता समाज में में भागीदारी के लिए संघर्ष व लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए जागरूक होना था।इसके लिए इस 85% मुस्लिम समुदाय का लगातार वोट बैंक की तरह इकतरफा बीजेपी हराओ के नारे में यह वर्ग जिस कांग्रेस एसपी बीएसपी, राजद, जेडीयू,आदि राष्ट्रीय छेत्रीय दलो को सत्ता में लाया उसने ही उसकी भागीदारी की सुध नहीं ली ,और धार्मिक मसलक इदरो इमामों के फतवों और अशराफी तुष्टिकरण तक ही रहे।
2014 में बीजेपी जैसे धर्म विशेष की पहचान के साथ गैर कांग्रेसी दल ने एक अलग अंदाज में केंद्र की सत्ता में एक प्रभावशाली कदम रखा,और राज्यो में भी गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर आया,जिसके राष्ट्रीय नेता के रूप में नरेंद्र मोदी जी ने जन मानस को प्रभावित किया,आज से 3 साल पूर्व उन्होंने बीजेपी के राष्ट्रीय सम्मेलन हैदराबाद में पसमांदा मुस्लिम चिंतन पर देश के मुस्लिम इतिहास में पहली बार इस 85% कुल मुस्लिम के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं का आवाह्न किया के सबका साथ विकास के लिए पसमांदा मुस्लिम के बीच खुद पहुंच बनाए और उनकी समस्याओं जरूरतों को जाने सहभागिता भागीदारी के लिए उन्हें सामाजिक न्याय सहभागिता के लिए जागरूक करे। इस सियासी टास्क ने देश की मुस्लिम के बीच एक नई सामाजिक अधिकारिता सोच को पहल दी,पसमांदा मुस्लिम संगठनों को मानो संजीवनी मिल गई,यह आउटरीच कार्यक्रम एक बार नही दो बार अंतराल से जातिगत भेदभाव जाति से संबोधित करते हुए भोपाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं को मुस्लिम समाज में ऊंच नीच सामाजिक मुस्लिम समाज की भारतीय संरचना अशराफ मुस्लिम वर्ग द्वारा अरजाल अज़लाल यानी भारतीय ओबीसी जिसमे पिछड़े दलित मूल के सभी 85% मुस्लिम बताते हुए उनके सामाजिक न्याय की बात पहले से ज्यादा प्रभावी ढंग से दोहराई इसी आउटरीच का इंपैक्ट था के सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार ने एक गजेट जारी कर जस्टिस केजी बालाकृष्णन आयोग का गठन कर संविधान की धारा 341 में दलित मुस्लिम सहित धार्मिक प्रतिबंध 1950 को हटाने की संभावना कानूनी सामाजिक सर्वेक्षण के लिए टास्क दिया गया के इसकी रिपोर्ट बाद ही दलित मुस्लिम पर सरकार अपना शपथ पत्र सर्वोच्च न्यायालय में देगी।
इस सबका असर बीजेपी विरोधी सभी राष्ट्रीय राज्य स्तरीय राजनेतिक दलों और कार्यरत लगभग सभी अशरफी संस्थाओं जो पसमांदा मुस्लिम को स्थाई वोट बैंक मात्र समझते थे उन्हे अपने सियासी समाजी चक्रव्यूह पर इतना फिर भी भरोसा था के पसमांदा मुस्लिम बीजेपी वोट बैंक में नही बदलेगा,कहा गया के पसमांदा मुस्लिम बीजेपी पर नही जायेगा जैसा के प्रभावी मसलको गठित तथाकथित बोर्ड इदारो ने राजनेतिक आकाओं ने अपनी राजनेतिक धार्मिक मस्लकी चिंतन बैठकों में कहा।
इधर बीजेपी में भी 1% से भी कही काम मुस्लिम वोट शाख पर जमे शिया अशराफ नेतृत्व को बीजेपी की उत्पत्ति से सत्ता में सहभागी रहा वोह भी चिंतित हुआ जिसका गठजोड़ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड धार्मिक एनजीओ में देखा का सकता है उसे भी मोदी पसमांदा मुस्लिम आउट रीच ने प्रभावित किया बीजेपी में इस अति नाम के अल्पसंख्यक की जगह यूपी में 2017 में 8से10 % पसमांदा वोट का विकास योजनाओं में बिना पक्षपात सहभागिता, मुफ्त महिला नाम पर आवास,5 लाख रु मुफ्त इलाज,मुफ्त राशन करोना महामारी में वर्षो वितरण,पहले से ज्यादा मुस्लिम नौकरी ओबीसी में जाति विशेष की जगह ओबीसी मुस्लिम सहभागिता ,3 तलाक आदि पर पसमांदा मुस्लिम महिला उत्पीडन अनावश्यक फतवों से अधिकांश शिकार पसमांदा मुस्लिम का शरई सामाजिक संरक्षण पसमांदा आउट रीच ने एक अलग अधिकारों के प्रति जागरूकता देखी गई जिसके साथ 16 करोड़ मुस्लिम यूपी जैसे प्रदेश में पसमांदाओबीसी सुन्नी मुस्लिम मंत्री और सरकारी पदों पर राज्य मंत्री स्तर पद उर्दू अकादमी, अल्पसंख्यक आयोग आदि के साथ जनजाति कश्मीर से राज्यसभा में सदस्य भेजा,पूर्व में सालो से केंद्र राज्य में मंत्री बने शिया अशरफ के छेत्र में जब 4 वोट बीजेपी को दिलाने वाले दोबारा उनकी परंपरागत जगह को खत्म कर दिया गया जो पसमांदा आउट रीच का सरकारी इंपैक्ट कहा जा सकता है।
हांलाके इस मोदी पसमांदा आउट रीच से अधिकांश lअशराफी धार्मिक इदारे जो पसमांदा मुस्लिम को धर्म, गैर मुस्तनद हदीस के नाम पर उनके बीच साजिशन एक धार्मिक रूलर किं तरह अज्ञानता शिक्षा में कमी और पसमांदा मुस्लिम सियासी समाजी नेतृत्व के कुल जानबूझ कर क्रतिम अभाव के चलते हुजूर पैगंबर मोहम्मद स o अo के समता मूलक आखिरी खुतबे की जगह जातिगत ऊंच नीच के पोषक,पसमांदा आधुनिक शिक्षा विरोध के चलते उनके लिए अधिकांश मस्लकी शिक्षा के अघोषित लड़ाके तैयार करने मदरसे चलाते होभालके उसका खर्च भी घुमाफिराकर पसमांदा की जेब से ही अधिकांश होता है आज पसमांदा विमर्श की सरकारी लगाव चिंतन ने एक दूसरे को मुसलमान नही मानने वाले हिंसक परस्पर उपदेश हिंसक तक तकरीर करने वाले मसलको को भी मजबूर कर दिया के अब ऐलान सोशल मीडिया पर कर रहे है के हम कितने भी अलग विचार धारा के हो लेकिन हम को अगर छेड़ा गया तो हम एक है,जो चर्चा मेवाई के आपका मतभेद सिर्फ पसमांदा मुस्लिम की घेराबंदी खेमा बंदी तक सीमित आप शिया सुन्नी सभी मसलक पसमांदा मुस्लिम जागरूकता के खिलाफ एक है।
गौर तलब है के मसमंदा मुस्लिम के बुनियादी सामाजिक न्याय संवैधानिक दलित समान अधिकारों के संरक्षण में जस्टिस केजी बालाकृष्णन रिपोर्ट आ जानी चाहिए वोह अनेक रिपोर्ट होने के बावजूद अभी नहीं आ पाई है, संविधान की धारा 340 जो ओबीसी पिछड़ों के आरक्षण का संवैधानिक अधिकार 54%में 27% है जिसमे राज्य स्तर जहां पसमांदा मुस्लिम किंप्रभावी भागीदारी है वह गैर कांग्रेसी सामाजिक न्याय और पसमांदा मुस्लिम बैंक समझने वाली सामाजिक न्याय का दावा करने वाली जाति विशेष द्वारा ओबीसी मुस्लिम नवजवानों को अवसर आरक्षण के नही मिल रहे है जातिगत आबादी के आधार उनका आरक्षण में आरक्षण की बात कहि जाती है पर कोई केंद्र राज्यो से डबल इंजन सरकार का यह मांग जो सभी उपेक्षित ओबीसी की है अभी नहीं हो पाई है जिसमे पसमांदा मुस्लिम का हॉट भी संरक्षित है।
पसमांदा मुस्लिम अपने परंपरागत रोज़ी रोटी हस्त शिल्प खेत मजदूरी के चलते शिक्षा में पिछड़े है ,शाला त्यागी,ड्रॉपआउट ज्यादातर हो जाते है,यूनिसेफ रिपोर्ट में डेंजर जोन में पसमांदा मुस्लिम इलाके चिन्हित है, मजबूरी में कुछ साल मस्लकी मदरसों में मस्लकी शिक्षा के बाद बाल मजदूर तकनीकी काम में चले जाते है या युवा अधिकांश मस्लकी इमाम बनकर रोज़ी जुटाते है और मसलकी एजेंट की तरह एक रोल होता है इनको ब्रिज कोर्स टेक्निक एजुकेशन के साथ 2010 में बंद किए गए शिक्षा प्रोग्राम को फिर चालू किया जाए ,शिक्षा अधिकार कानून मुफ्त कॉन्वेंट शिक्षा से अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाएं मुक्त है,जिससे महगी मुफ्त सरकारी शिक्षा से पसमांदा मुस्लिम दूर है जिसका संज्ञान बीजेपी मोदी आउट रीच या उसके थिंक टैंक को लेना चाहिए विधायक सांसद निधि मुस्लिम अधिकांश अशरफ संसद विधायक के चलते निजी छेत्र में वोह शिक्षा माफिया बन गए ,उसमे आरटीई के कानूंन के तहद दाखिला नही हो सकता,क्रिश्चियन संस्थाएं जिन्हे अच्छी शिक्षा का एकाधिकार रहा है वोह भी अनिवार्य शिक्षा से मुक्त है इसके लिए भी संशोधन विधेयक हो जिसमे 25% बच्चे निशुल्क सरकारी फीस पर शिक्षा दे ,इस योजना से पसमांदा अधिकांश अपने हि इदारो में बाहर है।
बावजूद इन सब के जिस टास्क को मोदी मंत्र ने पसमांदा मुस्लिम आउट रीच को लाल किला उद्बोधन तक पहुंचाया उस पर अपेक्षित कार्य जो रिसर्च एनालिसिस का होना था बीजेपी के थिंक टैंक पसमांदा मुस्लिम आयोग का गठन न होना,पसमांदा मुस्लिम देश भक्त भारतीय मुस्लिम समाज की अराजनैतिक संगठन से राज्यव सभा एमएलसी में जाना बुनियादी जरूरत थी जिनकी पहल के साथ विश्व विद्यालय ओबीसी मुस्लिम एसटी आरक्षण जैसे कार्य जरूरी है,पसमांदा मुस्लिम थिंक टैंक , पंजीकृत सक्रिय राज्यो तक गठित संगठनों की सरकार के साथ देश कि एकता , अखंडता,आधुनिक शिक्षा,महिला सशक्तिकरण ,युवा राजगार के लिए आधिकारिक फॉलोअप बैठके हो अल्पसंख्यक मंत्रालय के साथ” पसमांदा रोशनी”कार्यक्रम विकास योजनाओं की सहभागिता पर आयोजित हो जिससे सहभागिता उजागर हो I
इसमें कोई दो राय नही की मोदी के अलावा कोई दल का ऐसा नेता जो पसमांदा मुस्लिम आउटरीच विमर्श के 2 साल बाद भी इस वर्ग का अतीत में 99% वोट बैंक होने के बावजूद नही चेता और न ही इस पर अपना कोई सकारात्मक रुख बयान स्पष्ट किया मोदी ही मात्र ऐसे नेटाक्राहे जिन्होंने पसमांदा विमर्श को जन्म भारत ने दिया जो तथाकथित सेक्युलर सियासी दलों सामाजिक न्याय चिंतकों के लिए ऐतिहासिक चुनौती है इससे भारतीय मूलनका मुस्लिम और विदेशी मूल के मुस्लिम का समूचा रिपोर्ट कार्ड अब मंजरे आम है,मोदी को इस विमर्श के लिए पिछले पसमांदा मुस्लिम योगदान से अधिक समर्थन मिलना चाहिए जिसकी बीजेपी हकदार है,लेकीन गंभीरता से बीजेपी अल्पसंख्यक संगठनों ने मोदी मंत्रा को अपनी कार्य योजना में विश्लेषण मुद्दो अनुभव आधारित लिया होता तो और बेहतर परिणाम की अपेक्षा की जा सकती थी, संसदीय चुनाव की घोषणा होने जा रही है देशवका मुस्लिम अब सिर्फ बीजेपी हराओ के ऋणात्मक सोच से पसमांदा सोच ने बाहर निकाला है,देश केवितिहास में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ आज का अराजनैतिक सिर्फ पसमंदा मुस्लिम हितार्थ सामाजिक न्याय अधिकारिता के लिए कोविड वर्ष से सोशल मीडिया के चलते वेबिनोर सेमिनार से शुरू होकर आज 12 राज्यो विशेष कर यूपी ,बिहार, झारखंड, दिल्ली, उत्तराखंड हरियाणा,तथा अब बंगाल राज्य तक में अपनी सामाजिक न्याय गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभा रहा है,के अब इससे अनेक जातिवादी संगठन भी जाति , मसलको के भेदभाव से ऊपर उठ कर इस गैर सियासी संगठन के पसमांदा विमर्श को अंगीकृत कर रहे है, धर्म के नाम पर साजिशो के प्रति जागरूक भी हो रहे है
परवेज़ हनीफ
राष्ट्रीय अध्यक्ष
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़