परिचय:
पसमांदा मुसलमान वे मुस्लिम समुदाय हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। यह समुदाय भारत के मुसलमानों का लगभग 85% हिस्सा है, जिनमें मुख्यतः अजलाफ़ (ओबीसी) और अरज़ाल (दलित) शामिल हैं। पसमांदा शब्द फ़ारसी भाषा का है जिसका मतलब होता है “पीछे छूटे हुए”।
इतिहास और पहचान:
पसमांदा आंदोलन मौलाना आसिम बिहारी रहमतुल्लाह अलैह के नेतृत्व में कोलकात्ता (1920) से शुरू हुआ था, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समाज में जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना था। इस आंदोलन ने मुस्लिम समाज में अशराफ (उच्च जाति के मुस्लिम) और पसमांदा के बीच की खाई को उजागर किया
चुनौतियाँ:
- सामाजिक भेदभाव:
पसमांदा मुसलमानों को मुस्लिम समाज में ही जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है। अशराफ समुदाय के लोग इन्हें नीची नजर से देखते हैं और सामाजिक तौर पर इनका बहिष्कार करते हैं। - शैक्षिक पिछड़ापन:
पसमांदा मुसलमानों की शैक्षिक स्थिति बहुत ही खराब है। गरीबी और जागरूकता की कमी के कारण यह समुदाय शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ है। - आर्थिक स्थिति:
आर्थिक दृष्टि से भी पसमांदा समुदाय दलित से भी कमजोर है। रोजगार के अवसरों की कमी और सरकारी योजनाओं का सही से लाभ न मिलने के कारण इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है - राजनीतिक उपेक्षा:
पसमांदा मुसलमानों को राजनीतिक क्षेत्र में भी सही प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। सेक्युलर राजनीतिक दल इनका उपयोग सिर्फ वोट बैंक के रूप में करते हैं, लेकिन इनके विकास के लिए ठोस कदम नहीं उठाते।
समाधान और मार्गदर्शन:
- शिक्षा और जागरूकता:
पसमांदा मुसलमानों को शिक्षा और जागरूकता के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा मदद दी जानी चाहिए। स्कॉलरशिप और मुफ्त शिक्षा जैसी योजनाओं का सही क्रियान्वयन जरूरी है। - आर्थिक सुधार:
रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएं बनाई जानी चाहिए। स्वरोजगार और छोटे उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए ऋण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन किया जाना चाहिए। - सामाजिक समरसता:
सामाजिक जागरूकता अभियान चलाकर मुस्लिम समाज में जातिगत भेदभाव को खत्म करने का प्रयास किया जाना चाहिए। धार्मिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। - राजनीतिक भागीदारी:
पसमांदा मुसलमानों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के लिए अन्य संवैधानिक उपाय किए जाने चाहिए। इससे न केवल इनकी समस्याओं को उठाने का मंच मिलेगा बल्कि समाधान भी संभव हो सकेगा।
पसमांदा मुसलमानों की स्थिति में सुधार लाने के लिए समाज के सभी वर्गों को मिलकर प्रयास करना होगा ताकि यह समुदाय भी मुख्यधारा में शामिल हो सके और अपने अधिकारों का पूरा लाभ उठा सके।
✍ सरफराज अंसारी