वक़्फ़ संशोधन क़ानून और मौलाना साद का बयान: पसमांदा समाज की संवैधानिक चेतना का विश्लेषण

हाल ही में सोशल मीडिया पर मौलाना साद, जो तबलीगी जमात के खानदानी अमीर माने जाते हैं, के एक बयान ने बहस को जन्म दिया है। उन्होंने कहा, “इस्लाम देश के कानून से बगावत की इजाज़त नहीं देता; देश के कानून को मानना होगा।” यह बयान वक़्फ़ संशोधन कानून 2024 के संदर्भ में आया है, जो वर्तमान में न्यायपालिका के विचाराधीन है। सतही तौर पर यह बयान संविधान और धार्मिक मूल्यों की एकजुटता को दर्शाता है, लेकिन इसके गहरे निहितार्थ, संदर्भ और संभावित प्रभावों की पड़ताल करने पर कई महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े होते हैं।
इस्लामी सिद्धांतों का अधूरा हवाला: नबी करीम स.अ. का आख़िरी खुतबा- मौलाना साद ने देश के कानून को मानने की बात तो की, लेकिन उन्होंने इस्लामी न्याय व्यवस्था की उस बुनियादी भावना की अनदेखी की जो नबी करीम स.अ. के आख़िरी खुतबे में स्पष्ट रूप से दर्ज है — “हाकिम की बात मानो, जब तक वह इस्लाम के उसूलों के खिलाफ न हो।” इस्लाम अंधे अधिनायकवाद को नहीं, बल्कि न्याय, नैतिकता और इंसाफ़ पर आधारित शासन को मान्यता देता है।
मौलाना साद का यह बयान इस्लामी विचारधारा का एक अधूरा रूप प्रस्तुत करता है और उसे एक विशिष्ट राजनीतिक उद्देश्य के लिए मोड़ता है। वक़्फ़ संशोधन कानून का विरोध करने वाले समूहों को इस्लाम विरोधी या देशद्रोही कहना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा के भी विरुद्ध है। संविधान हर नागरिक को विरोध, आलोचना और न्यायिक समीक्षा का अधिकार देता है।
वक़्फ़ संशोधन कानून और पसमांदा समाज का रुख- भारत की मुस्लिम आबादी का लगभग 85% हिस्सा पसमांदा तबके से आता है — जिनमें दलित, पिछड़े, कारीगर और मेहनतकश वर्ग शामिल हैं। ये वर्ग लंबे समय से हाशिए पर रहे हैं, फिर भी उन्होंने संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों पर अटूट विश्वास बनाए रखा है।
वक़्फ़ संशोधन कानून 2024 को पसमांदा समाज ने ज्यादातर सकारात्मक दृष्टि से देखा है, क्योंकि यह वक़्फ़ संपत्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है। ऐतिहासिक रूप से इन संपत्तियों पर तथाकथित अशरफ वर्ग का वर्चस्व रहा है, जिसने इन्हें अपने निजी हितों के लिए प्रयोग किया और वंचित वर्गों को इससे दूर रखा।
मौलाना साद का बयान: समय और सन्दर्भ की संवेदनशीलता-  जब वक़्फ़ संशोधन कानून न्यायपालिका के समक्ष लंबित है, उस समय इस प्रकार का बयान देना न केवल असंवेदनशील है, बल्कि यह एक व्यापक समुदाय को गुमराह करने का भी प्रयास है। यह बयान पसमांदा समाज की राष्ट्रवादी और संवैधानिक प्रतिबद्धता को संदेह के घेरे में डालता है।
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ का मानना है कि मौलाना साद का यह बयान केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से प्रेरित है। उनका अतीत भी विवादों से भरा रहा है — चाहे वह कोरोना महामारी में नियमों की अवहेलना हो, जमात में गुटबाजी या अनुशासनहीनता। ऐसे में उनके बयान को नैतिक या धार्मिक दिशानिर्देश मानना गंभीर भूल होगी।
संवैधानिक चेतना और पसमांदा समाज- पसमांदा समाज ने हमेशा संविधान को सर्वोपरि माना है। उन्होंने सामाजिक न्याय, धार्मिक सुधार और संस्थागत पारदर्शिता के लिए अपनी लड़ाई हमेशा लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर लड़ी है। वक़्फ़ संशोधन कानून पर उनका समर्थन इस बात का प्रमाण है कि वे जवाबदेही, समावेशिता और पारदर्शिता के पक्षधर हैं।
महाज़ का मानना है कि वक़्फ़ कानून में वक़्फ़ बाय यूज़र का प्रावधान होना चाहिए, साथ ही नॉन-मुस्लिम समुदाय से अधिकतम दो सदस्य केंद्र और राज्य वक़्फ़ बोर्डों में शामिल होने चाहिए। पसमांदा समाज की हिस्सेदारी भी उनकी जनसंख्या के अनुपात में सुनिश्चित की जानी चाहिए।

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ की स्पष्ट अपील
महाज़ निम्नलिखित बिंदुओं पर मौलाना साद के बयान का विरोध करता है:
1. राजनीतिक पक्षपात – यह बयान विशेष राजनीतिक और सामाजिक वर्ग के हितों को बढ़ावा देता है।
2. पसमांदा समाज की छवि पर आघात – यह उनकी संवैधानिक निष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगाता है, जो कि गलत है।
3. संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन – न्यायिक प्रक्रिया में भाग लेना या असहमति जताना बगावत नहीं, बल्कि लोकतंत्र की शक्ति है।
4. समुदाय की विविधता को नकारना – किसी एक वर्ग की राय को पूरे मुस्लिम समाज की राय मानना भ्रामक और ग़लत है।
भारत का मुस्लिम समाज, विशेषकर पसमांदा तबका, एक ज़िम्मेदार, संवैधानिक और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण रखता है। वे न केवल कानून का सम्मान करते हैं, बल्कि उसमें आवश्यक सुधारों के लिए भी तत्पर हैं। वक़्फ़ संशोधन कानून का विरोध केवल उन वर्गों तक सीमित है जो अपने विशेषाधिकारों के खोने से भयभीत हैं। महाज़ उन सभी धार्मिक नेताओं से अपील करता है कि वे अपने बयानों में संयम, विवेक और संवैधानिक समझदारी दिखाएँ, ताकि मुस्लिम समाज एकता और अधिकारों की रक्षा की दिशा में आगे बढ़ सके।

मुहम्मद युनुस
मुख्य कार्यकारी अधिकारी सीईओ
ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़