परिचय- पसमांदा मुस्लिम समाज, जो भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा और विविध हिस्सा है, ऐतिहासिक रूप से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से हाशिए पर रहा है। “पसमांदा” का अर्थ है “जो पीछे रह गए हैं,” और यह शब्द मुख्य रूप से दलित, पिछड़ी जातियों और आदिवासी मुस्लिम समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है। इनका शोषण और उपेक्षा मुख्य रूप से अशरफ (मुख्यतः सैयद, शेख, पठान और मुगल) वर्ग द्वारा की गई, जिसने सत्ता और संसाधनों पर प्रभुत्व बनाए रखा।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य- इस्लाम में समानता का आदर्श प्रचारित होने के बावजूद, भारतीय संदर्भ में इस्लाम के स्थानीयकरण ने जाति आधारित भेदभाव को मुस्लिम समाज में स्थान दिया। अशरफ वर्ग ने खुद को उच्च जाति के रूप में स्थापित किया और पसमांदा समाज को “अजलाफ” और “अरजाल” जैसी श्रेणियों में बांटा। इस भेदभाव ने शिक्षा, आर्थिक अवसरों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व से पसमांदा समुदाय को वंचित रखा।
वर्तमान परिदृश्य- पिछले कुछ दशकों में पसमांदा समुदाय के मुद्दे चर्चा में आए हैं। 2000 के दशक में अली अनवर जैसे नेताओं ने इस समुदाय की पहचान को राजनीतिक विमर्श में लाने का प्रयास किया। हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पसमांदा समुदाय की उपेक्षा पर सवाल उठाते हुए इनके सशक्तीकरण की बात की है। बीजेपी की रणनीति में पसमांदा मुसलमानों को साथ जोड़ने की कोशिश को देखा जा रहा है, जो मुस्लिम समाज में अशरफ के प्रभुत्व को चुनौती देने वाला कदम माना जा सकता है
प्रधानमंत्री मोदी और पसमांदा मुस्लिम विमर्श_ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों की उपेक्षा को उजागर करते हुए उनके विकास की जरूरत पर बल दिया है। उनका कहना है कि मुस्लिम समाज को समरूप इकाई के बजाय विविधता के साथ देखा जाना चाहिए। यह रणनीति केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए भी है। मोदी ने यह भी कहा कि धार्मिक आधार पर मुस्लिम समाज में भय पैदा करने की कोशिशों को रोकना होगा, जो उनके पिछड़ेपन का कारण बनी हैं।
आगे का रास्ता 1. शिक्षा पर जोर: शिक्षा पसमांदा समाज के उत्थान का सबसे बड़ा साधन है।
2. राजनीतिक जागरूकता: अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान बनाकर पसमांदा समुदाय को एकजुट होना होगा।
3. सामाजिक एकता: विभिन्न जातियों और समूहों में समन्वय स्थापित करना होगा।
4. धार्मिक शोषण का विरोध: धर्म के नाम पर शोषण और भेदभाव को समाप्त करना आवश्यक है।
निष्कर्ष: पसमांदा मुस्लिम समाज का उत्थान भारतीय समाज में समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। चाहे ऐतिहासिक शोषण का मुद्दा हो या वर्तमान राजनीतिक रणनीतियां, पसमांदा समाज को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और संगठित होना आवश्यक है। नरेंद्र मोदी का इस विमर्श को उठाना और भाजपा द्वारा इसे अपने एजेंडे में शामिल करना, पसमांदा समुदाय के लिए एक नई शुरुआत का संकेत हो सकता है【7】【9】【10】।