हज कमेटी में पसमांदा मुस्लिम समाज की भागीदारी एक ऐतिहासिक कदम

हाल ही में उत्तर प्रदेश हज कमेटी के गठन में  5 सदस्यों को पसमांदा मुस्लिम समाज से शामिल किया गया है। यह निर्णय सामाजिक समावेशिता की दृष्टि से एक ऐतिहासिक कदम है, जो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की पसमांदा मुस्लिम समाज को मुख्यधारा में लाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने इस पहल के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ, और संबंधित विभागों के प्रति आभार व्यक्त किया है। संगठन का मानना है कि यह कदम पसमांदा समाज के सशक्तिकरण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।

पसमांदा मुस्लिम समाज और बीजेपी की रणनीति- पसमांदा मुस्लिम समाज भारत में मुस्लिम आबादी का लगभग 80-85% हिस्सा है। यह समुदाय आर्थिक, सामाजिक, और शैक्षिक रूप से पिछड़ा हुआ है। अंसारी, कुरैशी, सलमानी, मंसूरी, सैफी आदि जातियां इस समाज का हिस्सा हैं। बीजेपी ने पिछले कुछ वर्षों में इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए विभिन्न योजनाओं और नीतियों को लागू किया है। 2022 और 2024 के चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पसमांदा समाज के उत्थान का वादा किया था। हज कमेटी में पसमांदा समाज के 5 सदस्यों की नियुक्ति इसी दिशा में एक ठोस कदम है।

अशरफ नेतृत्व की विफलता और पसमांदा समाज की उपेक्षा- ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने उन अशरफ नेताओं पर निशाना साधा है, जो बीजेपी में उच्च पदों पर रहते हुए भी पसमांदा समाज के लिए कोई ठोस कार्य नहीं कर पाए। संगठन का मानना है कि ये नेता केवल अपने स्वार्थ तक सीमित रहे और समाज के उत्थान में बाधा बने। उदाहरणस्वरूप, पूर्व मंत्री मोहसिन रजा को हज कमेटी से बाहर का रास्ता दिखाया गया, जो अशरफ नेतृत्व की विफलता को दर्शाता है। संगठन ने इसे “खानापूरी” करार दिया, यानी जिम्मेदारियों को गंभीरता से न लेना।

भविष्य की संभावनाएं: पसमांदा समाज की बढ़ती भागीदारी- ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ को उम्मीद है कि हज कमेटी में पसमांदा समाज की भागीदारी केवल एक शुरुआत है। आने वाले समय में अन्य सरकारी आयोगों और कमेटियों में भी पसमांदा समाज को उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी की रणनीति इस समाज को न केवल मुख्यधारा में लाने, बल्कि उनके सशक्तिकरण पर भी केंद्रित है।

पसमांदा समाज का सशक्तिकरण: चुनौतियां और अवसर- हालांकि, पसमांदा समाज को मुख्यधारा में लाने की राह आसान नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, और पसमांदा समाज का एक बड़ा हिस्सा पार्टी के पक्ष में वोट देने से हिचकिचाया। इसका कारण यह है कि पसमांदा समाज केवल योजनाओं का लाभ नहीं चाहता, बल्कि सम्मान, समानता, और राजनीतिक भागीदारी की भी मांग कर रहा है।

बीजेपी की पसमांदा नीति को मजबूत करने के लिए संगठन ने सुझाव दिया है कि जातिगत जनगणना, आरक्षण, और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया जाए। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ का मानना है कि बीजेपी को कम्युनल राजनीति से दूरी बनाते हुए पसमांदा और अशरफ की राजनीति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

उत्तर प्रदेश हज कमेटी में पसमांदा समाज के 5 सदस्यों की नियुक्ति एक ऐतिहासिक कदम है, जो सामाजिक समावेशिता और पसमांदा सशक्तिकरण की दिशा में बीजेपी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ का यह विश्वास है कि यह कदम पसमांदा समाज और बीजेपी के बीच विश्वास को और मजबूत करेगा। भविष्य में पसमांदा समाज का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा और उसे वह सम्मान मिलेगा, जिसका वह हकदार है।