“पसमांदा मुस्लिम समाज के महान नेता और उलमा थे मौलाना ग़ुलाम मोहम्मद वस्तानवी
मौलाना ग़ुलाम मोहम्मद वस्तानवी (1 जून 1950 – 4 मई 2025) भारतीय मुस्लिम समुदाय, विशेष रूप से पसमांदा मुस्लिम (अंसारी) समुदाय, के एक प्रख्यात विद्वान, शिक्षाविद, और समाज सुधारक थे। उन्होंने इस्लामी शिक्षा को आधुनिक युग की आवश्यकताओं के साथ जोड़कर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसने न केवल भारत, बल्कि वैश्विक स्तर पर मुस्लिम समुदाय को प्रेरित किया। उनके निधन की खबर ने विश्व भर में शोक की लहर दौड़ा दी। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर उनके योगदान की प्रशंसा और शोक संदेशों की बाढ़ उनकी शख्सियत की विशालता और प्रभाव का प्रमाण है। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने उनके निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए उन्हें “पसमांदा मुस्लिम समाज का महान नेता और उलमा” बताया, जो उनके सामाजिक और धार्मिक योगदान की गहराई को रेखांकित करता है। इस लेख में उनके जीवन, योगदान, और विशेष रूप से पसमांदा समुदाय के प्रति उनकी भूमिका पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा- मौलाना ग़ुलाम मोहम्मद वस्तानवी का जन्म 1 जून 1950 को गुजरात के सूरत जिले के कोसादी गांव में एक साधारण अंसारी परिवार में हुआ था। 1952 या 1953 में उनका परिवार वस्तान में स्थानांतरित हो गया, जिसके कारण उन्हें “वस्तानवी” उपनाम मिला। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कोसादी के मदरसा क़ुव्वत-उल-इस्लाम में शुरू हुई, जहां उन्होंने क़ुरआन को हिफ़्ज़ (याद) किया। इसके बाद, उन्होंने बड़ौदा के मदरसा शम्स-उल-उलूम और सहारनपुर के मज़ाहिर उलूम में उच्च इस्लामी शिक्षा प्राप्त की। इन संस्थानों में उन्होंने क़ुरआन, हदीस, फ़िक़्ह, और अन्य इस्लामी विज्ञानों में गहन अध्ययन किया। साथ ही, उन्होंने आधुनिक विषयों में भी रुचि दिखाई, जो उनके बाद के शैक्षिक सुधारों का आधार बना। उनकी विद्वता, दूरदर्शिता, और परंपरा-आधुनिकता के बीच संतुलन बनाने की क्षमता ने उन्हें एक असाधारण विद्वान के रूप में स्थापित किया।
दारुल उलूम देवबंद और विवाद- 2011 में मौलाना वस्तानवी को दारुल उलूम देवबंद, भारत के सबसे प्रतिष्ठित इस्लामी शिक्षण संस्थानों में से एक, का कुलपति (मोहतमिम) नियुक्त किया गया। उनकी नियुक्ति ने व्यापक उम्मीदें जगाई थीं, क्योंकि वह एक ऐसे विद्वान थे, जो पारंपरिक इस्लामी शिक्षा को आधुनिक विषयों, जैसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी, के साथ जोड़ने के पक्षधर थे। उनकी नियुक्ति को पसमांदा समुदाय ने विशेष रूप से उत्साह के साथ देखा, क्योंकि यह उनके लिए सामाजिक और शैक्षिक प्रगति का प्रतीक थी।
हालांकि, उनका कार्यकाल विवादों से घिर गया। कुछ लोगों ने दावा किया कि उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जो आज भारत के प्रधनमंत्री हैं,की प्रशंसा की थी, जिसे दारुल उलूम के कुछ रूढ़िवादी वर्गों ने अस्वीकार्य माना। उनको हटाने के पीछे उनकी जाति पसमांदा ( अंसारी ) भी एक वजह थी।लेकिन इस विवाद ने उनके कार्यकाल को छोटा कर दिया। वह दारुल उलूम के इतिहास में पहले ऐसे कुलपति बने, जिन्हें स्वेच्छा से इस्तीफा देने या मृत्यु से पहले पद से हटाया गया।
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने स्पष्ट रूप से कहा कि “दारुल उलूम ने उनकी कद्र नहीं की,” और संगठन का मानना है कि उनकी सुधारवादी दृष्टि को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। यह घटना पसमांदा समुदाय के लिए विशेष रूप से दुखद थी, क्योंकि उन्होंने मौलाना वस्तानवी को अपने समुदाय के उत्थान के लिए एक प्रगतिशील नेतृत्व के रूप में देखा था। X पर कई पोस्ट में इस बात का जिक्र है कि उनकी दूरदर्शिता और योगदान को नजरअंदाज किया गया, जिसने उनके समर्थकों में निराशा पैदा की।
शैक्षिक योगदान और जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम- मौलाना वस्तानवी का सबसे महत्वपूर्ण और दूरगामी योगदान महाराष्ट्र के अक्कलकुवा में जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम की स्थापना थी। यह संस्था भारत का पहला अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेज है, जिसे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) से मान्यता प्राप्त है। इस संस्था के तहत मेडिकल, इंजीनियरिंग, नर्सिंग, पॉलिटेक्निक, और अन्य आधुनिक विषयों के साथ-साथ इस्लामी शिक्षा प्रदान की जाती है। मौलाना वस्तानवी का यह दृष्टिकोण पारंपरिक मदरसा शिक्षा को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ने का एक अनूठा और क्रांतिकारी मॉडल था, जिसने विशेष रूप से पसमांदा और अन्य पिछड़े मुस्लिम समुदायों के हजारों छात्रों को लाभान्वित किया।
उनके नेतृत्व में, जामिया इस्लामिया ने न केवल शैक्षिक क्षेत्र में, बल्कि सामाजिक और आर्थिक उत्थान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2018 में, महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड ने उनकी संस्था को अहमदनगर में अतिरिक्त जमीन आवंटित की, जिससे उनके शैक्षिक मिशन को और विस्तार मिला। X पर एक पोस्ट में उन्हें “विख्यात शिक्षाविद” के रूप में संबोधित करते हुए कहा गया कि उन्होंने अक्कलकुवा में मेडिकल, इंजीनियरिंग, और आधुनिक शिक्षा के दर्जनों संस्थान स्थापित किए, जो आज भी उनके मिशन को जीवंत रखे हुए हैं।
जामिया इस्लामिया ने न केवल शैक्षिक अवसर प्रदान किए, बल्कि सामाजिक समावेशिता और आर्थिक सशक्तिकरण को भी बढ़ावा दिया। इसने पसमांदा समुदाय के युवाओं को चिकित्सा, इंजीनियरिंग, और अन्य पेशेवर क्षेत्रों में प्रवेश करने का अवसर दिया, जिससे उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ और वे मुख्यधारा में शामिल हो सके।
पसमांदा मुस्लिम समुदाय के लिए योगदान- मौलाना ग़ुलाम मोहम्मद वस्तानवी पसमांदा मुस्लिम समुदाय, के लिए एक प्रेरणादायक और दूरदर्शी नेता थे। पसमांदा, एक फारसी शब्द जिसका अर्थ “पीछे छूट गए लोग” है, भारत के उन मुस्लिम समुदायों को संदर्भित करता है जो सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं, जैसे अंसारी, कुरैशी, सलमानी, और अन्य। मौलाना वस्तानवी, जो स्वयं अंसारी समुदाय से थे, ने इन समुदायों की शिक्षा, सामाजिक उत्थान, और सशक्तिकरण के लिए अथक प्रयास किए।
उनके द्वारा स्थापित जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम ने पसमांदा समुदाय के लिए शिक्षा को सुलभ और समावेशी बनाया। इस संस्था ने आधुनिक और धार्मिक शिक्षा का ऐसा संयोजन प्रदान किया, जिसने पसमांदा युवाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनका जाना “पसमांदा मुस्लिम समाज की बहुत बड़ी हानि” है। यह बयान उनकी इन समुदायों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता और प्रभाव को दर्शाता है। X पर कई पोस्ट में उन्हें “उम्मत का सच्चा रहनुमा” और “क़ौम-ओ-मिल्लत का बड़ा खसारा” बताया गया, जो उनके पसमांदा समुदाय के बीच अपार सम्मान को रेखांकित करता है।
मौलाना वस्तानवी ने पसमांदा समुदाय के लिए केवल शैक्षिक अवसर ही नहीं प्रदान किए, बल्कि सामाजिक समानता और एकता के लिए भी कार्य किया। उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं का उपयोग सामाजिक सुधार के लिए किया और पसमांदा समुदाय को यह विश्वास दिलाया कि शिक्षा और मेहनत के माध्यम से वे समाज में अपनी जगह बना सकते हैं। उनकी यह विरासत आज भी पसमांदा समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
इस्लाम और समाज के लिए सेवाएं- मौलाना वस्तानवी की सेवाएं केवल शिक्षा तक सीमित नहीं थीं। उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं को सामाजिक सुधार, समावेशिता, और एकता के साथ जोड़ने का अनूठा प्रयास किया। उनके भाषणों और लेखन में इस्लाम की उदार, समावेशी, और प्रगतिशील व्याख्या पर जोर दिया गया, जिसने विभिन्न समुदायों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह इस्लाम को केवल धार्मिक शिक्षाओं तक सीमित नहीं मानते थे, बल्कि इसे सामाजिक प्रगति और मानवीय मूल्यों का आधार मानते थे।
X पर उन्हें “आफ़ताब-ए-हिंद” (भारत का सूरज), “ख़ादिम-ए-कुरआन” (कुरआन का सेवक), और “रहनुमा-ए-मिल्लत” जैसे सम्मानजनक उपनामों से संबोधित किया गया, जो उनकी आध्यात्मिक और सामाजिक प्रभावशीलता को दर्शाता है। उनके प्रशंसकों का मानना है कि उनकी सेवाएं इतनी व्यापक और गहन थीं कि उन्हें बयान करने के लिए “समंदर को स्याही और सरखंडों को कलम” बनाना पड़ता। उन्होंने न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर इस्लामी शिक्षा, सामाजिक सुधार, और सामुदायिक एकता के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी।
विशेष रूप से, उन्होंने अल्पसंख्यक समुदायों के लिए सामाजिक सहिष्णुता, एकता, और प्रगति का संदेश दिया। एक X पोस्ट में उनके योगदान को “सामाजिक सहिष्णुता और एकोप्य” के लिए महत्वपूर्ण बताया गया, जो उनकी समावेशी दृष्टि को रेखांकित करता है। उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि इस्लाम और आधुनिकता एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं, और इस दृष्टिकोण ने उन्हें एक युग-प्रवर्तक विद्वान बनाया।
व्यक्तित्व और प्रभाव- मौलाना ग़ुलाम मोहम्मद वस्तानवी का व्यक्तित्व करिश्माई, सादगीपूर्ण, और प्रेरणादायक था। वह एक ऐसे विद्वान थे, जो परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाना जानते थे। उनकी विद्वता, समाज के प्रति समर्पण, और सादगी ने उन्हें लाखों लोगों का प्रिय बना दिया। वह न केवल एक विद्वान और शिक्षक थे, बल्कि एक मार्गदर्शक और समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने अपने कार्यों और विचारों से समाज को नई दिशा दी।
X पर कई लोगों ने उन्हें “सदियों में एक बार पैदा होने वाली शख्सियत” बताया, जो उनके असाधारण योगदान को रेखांकित करता है। उनकी शख्सियत का प्रभाव पसमांदा समुदाय से लेकर व्यापक मुस्लिम समाज और उससे भी आगे तक फैला हुआ था। उनकी शिक्षाएं, तालीमात, और सामाजिक सुधार के लिए उनका दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।
निधन और शोक संदेश- 4 मई 2025 को लंबी बीमारी के बाद मौलाना ग़ुलाम मोहम्मद वस्तानवी का निधन हो गया। उनके निधन ने उनके अनुयायियों, विशेष रूप से पसमांदा समुदाय, में गहरा शोक पैदा किया। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने उनके निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनका जाना पसमांदा समाज और समग्र मुस्लिम समुदाय के लिए एक अपूरणीय क्षति है। X पर कई पोस्ट में उनके लिए दुआएं मांगी गईं, जैसे “अल्लाह उनकी मग़फिरत फरमाए और जन्नतुल फिरदौस में आला मुकाम अता फरमाए।” उनके निधन को “मुस्लिम उम्मत के लिए एक नायाब हीरे का खो जाना” बताया गया।
उनके निधन पर व्यक्त शोक संदेशों में उनकी सादगी, विद्वता, और समाज के प्रति समर्पण की प्रशंसा की गई। पसमांदा समुदाय ने उन्हें अपने समुदाय के उत्थान के लिए एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में याद किया, जबकि व्यापक मुस्लिम समुदाय ने उन्हें एक ऐसे विद्वान के रूप में सम्मान दिया, जिसने इस्लाम और आधुनिकता को एकजुट करने का ऐतिहासिक कार्य किया।
मौलाना ग़ुलाम मोहम्मद वस्तानवी एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने इस्लामी शिक्षा को आधुनिकता के साथ जोड़कर एक नया युग शुरू किया। दारुल उलूम देवबंद के साथ उनके विवादास्पद संबंधों के बावजूद, उनकी शैक्षिक और सामाजिक सेवाओं, विशेष रूप से पसमांदा मुस्लिम और अंसारी समुदाय के लिए, ने उन्हें एक अमर विरासत प्रदान की। जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम जैसे उनके संस्थान आज भी उनके मिशन को जीवंत रखे हुए हैं, जो पसमांदा और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिए शिक्षा और सशक्तिकरण का प्रतीक हैं।
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ की श्रद्धांजलि इस बात का प्रमाण है कि वह पसमांदा समुदाय के लिए एक सच्चे मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत थे। उनकी मृत्यु से न केवल भारत, बल्कि विश्व का मुस्लिम समुदाय एक महान विद्वान, समाज सुधारक, और मानवतावादी को खो चुका है। उनकी सेवाएं और शिक्षाएं हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी। अल्लाह उनकी मग़फिरत फरमाए, उनके सग़ीर-ओ-कबीर गुनाहों को माफ फरमाए, और उन्हें जन्नतुल फिरदौस में आला मुकाम अता करे। आमीन।
मुहम्मद युनुस
मुख्य कार्यकारी अधिकारी सीईओ
ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़